ऊं भद्रं
कर्णेभिः, श्रृणुयाम देवाः
भद्रं
पश्येमाक्षभिर्यजत्राः
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः
र्व्यशेम
देवहितं यदायुः॥
ऊं शांति। ऊं शांति।
ऊं शांति।
अर्थः हे देवों हम
कानों से कल्याणकारक वचन सुनें, हे पूजनीय
देवो हम आंखों से कल्याणकारक दृश्य देखें।
जब तक हमारी आयु होगी, तब तक सुदृढ़
शरीरावयवों से युक्त होकर, हम दिव्य विबुधों
के गुणों का वर्णन गाते रहें।
व्यक्ति में शांति,
राष्ट्र में शांति और विश्व में शांति।
(साभारः माण्डूक्य
उपनिषद्- भाषा भाष्य, लेखकः पं. श्रीपाद
दामोदर सातवलेकर-अध्यक्ष स्वाध्याय मंडल,
आनंदाश्रम, किला पारडी, जिला सूरत,
प्रकाशन वर्ष लन् 1952, संवत 2008)
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