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बड़े
नेताओं के नामांकन मंे भारी भीड़ का होना
सामान्य बात है। कई दबंग, माफिया प्रत्याशी
अपनी दम पर भी भीड़ जुटाने की क्षमता रखते
हैं। फिल्मी कलाकारों के नाम पर सड़कें जाम
हो जाती हैं। लेकिन चैबीस अप्रैल को
वाराणसी से भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी के
नामांकन का नजारा बिल्कुल अलग ढंग का था।
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस दिन
वाराणसी मोदीमय थी। इसे भीड़ नहीं कहा जा
सकता। यह तो कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय
और आप के अरविन्द केजरीवाल के नामांकन में
भी कम नहीं थी। जबकि यहां के अन्य सभी
प्रत्याशी एक ही जगह से चुनाव लड़ रहे हैं।
वाराणसी के लोग जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी
दो जगह से चुनाव लड़ रहे हैं। इसमंे से एक
क्षेत्र उनके ग्रह प्रान्त गुजरात का है।
वाराणसी के लोग यह नहीं जानते कि मोदी दोनों
स्थानों से जीतने के बाद कहां से बने रहें।
वह नहीं जानते कि मोदी वाराणसी मंे रहेंगे
या नहीं। इसके बाद भी उनके उत्साह में कमी
नहीं। ऐसा लग रहा था कि वाराणसी के लोग
लम्बे समय से मोदी का इंतजार कर रहे थे।
चैबीस अप्रैल को उनकी मुराद पूरी हुई। वह
घरों से बाहर निकलकर स्वागत के लिये उमड़
पड़े। मोदी अभिभूत थे। यह जनसैलाब बिल्कुल
अलग ढंग का था। पहले हुए नामांकनों के समय
से भिन्न था। बड़ा अन्तर था। इसे शब्द देना
मुश्किल है। जिसने देखा वह इसका अनुभव कर
सकता था।
नरेन्द्र मोदी ने इस अन्तर को आत्मसात किया।
यह बात उनके संक्षिप्त सम्बोधन से
अभिव्यक्त हुईं इसके पहले अन्य पार्टियों
के प्रत्याशियों ने अपने नामांकन के बाद
सीधे नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाया था।
सभी ने कहा कि उन्हें कहीं भी मोदी की लहर
दिखाई नहीं दे रही है। लेकिन उन्होंने अपने
बयानों में इसके अनुरूप सावधानी नहीं
दिखाई। मोदी लहर दिखाई न देने की बात कर
रहे थे, तो उन्हें इस नाम के प्रति
लापरवाही का प्रदर्शन करना चाहिए था।
लेकिन प्रयास के बावजूद वह ऐसा नहीं कर सके।
सभी के भाषण नरेन्द्र मोदी पर केन्द्रित
थे। सभी अपने को नरेन्द्र मोदी के साथ
मुख्य मुकाबले में दिखाने का प्रयास कर रहे
थे। अरविन्द केजरीवाल ने मोदी और भाजपा पर
अनेक आरोप लगाए। उनके सहयोगी सोमनाथ भारती
भी पीछे नहीं थे। उन्होंने आरोप लगाया कि
भाजपा समर्थकों ने उनकी पिटाई की। जैसा वह
वर्णन कर रहे थे, उसका अनुमान लगाना कठिन
था। उन्हांेने अपनी कमीज की टूटी बटन
दिखाई और बहुत मार-पीट कर आरोप लगाया।
लेकिन संबंधित क्षेत्र के पुलिस अधिकारी
ने ऐसी किसी मारपीट की बात को अस्वीकार कर
दिया। जाहिर है कि मोदी के प्रतिद्वन्द्वी
प्रत्याशी उनके विरोध का कोई अवसर हाथ से
जाने नहीं दे रहे थे।
नरेन्द्र मोदी भी अपनी जनसभाओं मंे विरोधी
पार्टियों पर हमला कर रहे हैं। लेकिन
वाराणसी का अन्दाज अलग था। जैसा छन्नूलाल
मिश्र कहते हैं- ‘वाराणसी अर्थात् बना रहे
रस’। मोदी के समर्थन मंे जो सैलाब दिखाई
दे रहा था वह ‘बना रहे रस’ की अभिव्यक्ति
थे। मोदी ने इसका मान रखा। उन्हांेने
नामांकन के बाद किसी की आलोचना नहीं की।
किसी पर हमला नहीं किया। कहा कि गंगा मईया
ने बुलाया, इसलिए आया। यह कहते समय मोदी
राजनीति से ऊपर थे। पार्टी लाइन से ऊपर
थे। पार्टी लाइन तो यह होती कि उन्हें
प्रत्याशी बनाया गया, इसलिए वह नामांकन
करने वनारस आये हैं। नरेन्द्र मोदी ने
हुजूम का मिजाज समझा और रस बनाए रखा।
नरेन्द्र मोदी को वनारस से लड़ाने का भाजपा
को कितना चुनावी लाभ होगा, यह परिणाम आने
के बाद पता चलेगा। यह किसी एक जगह से लड़कर
लोकसभा पहुंच जाने का सामान्य मामला नहीं
है। मोदी गुजरात से लोकसभा में पहुंचने का
निर्विवाद दम रखते हैं। उनके
प्रतिद्वन्द्वियों को पिछले तीन चुनावों
में इसका अनुभव भी हुआ होगा। प्रश्न मोदी
को लोकसभा पहुंचाने का नहीं था। प्रश्न
उत्तर प्रदेश मंे भाजपा को मजबूत बनाने का
था। दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता
है। लेकिन लखनऊ मंे ही भाजपा के लिये
रास्ता आसान नहीं था। इसलिए पिछले दो आम
चुनाव मंे भाजपा दिल्ली नहीं पहुंच चुकी।
पिछले आम चुनाव मंे तो भाजपा उत्तर प्रदेश
मंे चैथे पायदान पर आ गयी थी। जबकि उस समय
भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उत्तर
प्रदेश से थे। जाहिर है कि भाजपा के सामने
चुनौती बहुत बड़ी थी। नम्बर चार से उठकर
पहली चुनौती मुख्य मुकाबले में आने की थी।
यहां लम्बे समय से सपा और बसपा मुख्य
मुकाबले में है। अन्य कोई विकल्प ही नजर
नहीं आ रहा था। मतदाता एक से नाराज हुए तो
दूसरा विकल्प ही नजर आता था। यह उत्तर
प्रदेश की राजनीति का स्थायी तत्व बनता जा
रहा था। उत्तर प्रदेश से संबंधित भाजपा का
कोई भी प्रान्तीय या राष्ट्रीय नेता इस
स्थिति को बदलने में समर्थ दिखाई नहीं दे
रहा था।
इसीलिए गुजरात से लाकर नरेन्द्र मोदी को
लड़ाने का निर्णय हुआ। उत्तर प्रदेश के नेता
पार्टी को सम्भाल लेते तो इस फैसले की
जरूरत ही नहीं होती। मोदी ने चुनौती
स्वीकार की। वह जानते थे कि पूरे देश मंे
व्यस्तता के चलते वह वनारस को पर्याप्त
समय नहीं दे सकेंगे। यहां तक कि नामांकन
के दिन भी उनकी वनारस से बाहर तीन जनसभाएं
लगी थीं। उत्तर प्रदेश में पार्टी का
ग्राफ उठाने के लिये ही मोदी वनारस से लड़
रहे हैं। यह माना गया कि उनके लड़ने का
उत्तर प्रदेश और बिहार की कई सीटों पर
प्रभाव पड़ेगा।
पार्टी हित के लिये नरेन्द्र मोदी ने आरोप
झेले। विरोधियों ने कहा- यदि मोदी लहर चल
रही है तो वह दो जगहों से क्यों लड़ रहे
हैं। लेकिन नामांकन का रंग देखने के बाद
सभी को वास्तविकता समझ आ रही होगी।
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