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सात नवम्बर को ही इस साल •ाी गोपाष्टमी
है। यह गो रक्षा के संकल्प का दिन है। इस
दिन पचास साल पहले भी गोपाष्टमी थी। गाय
के प्राणों की रक्षा के लिए इस दिन दिल्ली
में संसद •ावन पर विशाल प्रदर्शन हुआ था।
एक लाख से अधिक एकत्रित हुए संतों पर
तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने गोली चलवा दी
थी। अनेकों साधू और गो भक्त मारे गए थे।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह संत शक्ति
का अभी तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन था। देश
भर के साधू पुरी के शंकराचार्य निरंजनदेव
तीर्थ और प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, स्वामी
करपात्री जी तथा सुशील मुनि के नेतृत्व
में सात नवम्बर को संसद भवन पर एकत्रित
हुए थे। संत समाज ने मांग की थी कि गो
हत्या निषेध के लिए केन्द्रीय कानून बनाया
जाए। संतों के बलिदान के पचास पूरे होने
के बाद भी यह मांग ज्यों की त्यों बरकरार
है। बल्कि गो हत्या पहले की तुलना में और
अधिक बढ़ गई है। यांत्रिक कत्लखाने खोलकर
निरीह गो वंश की हत्या की जा रही है। दस
राज्यों में गो हत्या रोकने के लिए कोई
कानून नहीं है। कुछ राज्यों ने पूर्ण तो
कुछ ने आशिंक रूप से गो हत्या पर प्रतिबंध
लगा है। केन्द्र सरकार को संविधान की भावना
के अनुरूप केन्द्रीय कानून बनाकर देशभर
में गो हत्या रोकनी चाहिए। संविधान का
अनुच्छेद-48 स्पष्ट कहता है कि गो हत्या
निषेध के उपाय किये जाएं। अनुच्छेद में कहा
गया है ‘राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक
और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने
का प्रयास करेगा और विशिष्टत: गायों और
बछड़ों तथा अन्य दुधारु और वाहक पशुओं की
नस्लों के परीरक्षण और सुधार के लिए और
उनकी हत्या का प्रतिषेध करने के लिए कदम
उठाएगा।’ गो हत्या रोकने के लिए केन्द्रीय
कानून बनाने के अलावा यह भी आवश्यक है कि
देश से गो मांस का निर्यात पूर्णत:
प्रतिबंधित किया जाए, सामूदायिक चारागाह
का विकास हो तथा इनसे अवैध कब्जे हटाए जाएं।
राष्ट्रीय चारा नीति बने और कृषि नीति में
पशुधन के समुचित संरक्षण के प्रावधान जोड़े
जाएं। विदेश से आने वाले दूध पाउडर, बटर
आयल के आयात पर रोक लगाई जाए। गो पालन पर
किसानों को अनुदान प्रदान किया जाए। यह
अनुदान किसानों को भारत सरकार द्वारा हाल
ही में लगाए गए किसान सेस टैक्स से दिया
जा सकता है। केन्द्र की वर्तमान भाजपा
सरकार के पास स्पष्ट बहुमत है। वह यह काम
कर सकती है। यदि केन्द्र सरकार संतों के
बलिदान के पचास साल पूरे होने के अवसर पर
गो हत्या निषेध का केन्द्रीय कानून बनाती
है तो यह बलिदानी संतों को सच्ची
श्रद्धांजलि होगी।
सर्वेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
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Sarvesh Kumar Singh
Freelance
Journalist
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