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यूं तो सभी एकादशी मानवजगत को
श्रेष्ठ फल देने वाली तथा उसके कष्टों को
निवारण करने वाली हैं। कि्तु इसमें भी
मोक्षा एकादशी का महत्व सबसे ज्यादा है।
यह मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी
है, जोकि मोक्षा एकादशी के नाम से जानी
जाती है। इसे गीता जयंती भी कहते हैं।
क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने
महाभारत के दौरान कुरुक्षेत्र के मैदान
में गीता का प्रवचन किया था। मोक्षा एकादशी
के बारे में युधिष्ठिर ने भगवान श्री
कृष्ण से शुक्लपक्ष की मोक्षा एकादशी का
महात्म पूछा था। इस पर श्रीकृष्ण ने
कहा-नृपश्रेष्ठ मार्गशीर्ष मास के
शुक्लपक्ष की एकादशी के श्रवण मात्र से
वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इसका नाम है
मोक्षा एकादशी यह सब पापों का हरण करने
वाली है। राजन् उस दिन यत्नपूर्वक तुलसी
की मंजरी तथा धूप दीपादि से भघवान दामोदर
का पूजन करना चाहिए। पूर्वोक्त विधि से ही
दशमी और एकादशी के नियम का पालन करना
चाहिए। मोक्षा एकादशी बड़े बड़े पातकों को
नाश करने वाली है। उसदिन रात्रि मे मेरी
प्रसंन्नता के लिए नृत्य, गीत और स्तुति
के द्वारा जागरण करना चाहिए। जिसके पितर
पापवश नीच योनि में पड़े हों। वे इसका
पुण्य दान करने से मोक्ष को प्राप्त होते
हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
ब्रह्मपुराण
के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का
बहुत बड़ा महत्व है। द्वापर युग में भगवान
श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद् गीता
का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि गीता
जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसके बारे
में गया है कि शुद्धा, विद्धा और नियम आदि
का निर्णय यथापूर्व करने के अनन्तर
मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को मध्याह्न में जौ
और मूँग की रोटी दाल का एक बार भोजन करके
द्वादशी को प्रातः स्नानादि करके उपवास रखें।
भगवान का पूजन करें और रात्रि में जागरण
करके द्वादशी को एक बार भोजन करके पारण करें।
यह एकादशी मोह का क्षय करनेवाली है। इस
कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है। इसीलिए
भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली
इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते हैं
मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूँ।
इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी
के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता
का उपदेश हुआ था।
(साभार
कल्याण)
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