|
|
31 जुलाई बलिदान दिवस पर विशेष |
|
महान क्रांतिकारी-ऊधम सिंह |
|
मृत्युंजय दीक्षित |
|
Publised on : 31 July 2016
Time: 11:10
Tags: Mratunjai
Dixit, Udham Singh
|
|
जलियांवाला
बाग हत्याकांड का प्रतिशोध लेने वाले
क्रांतिकारी ऊधम सिंह का जन्म 29 दिसम्बर
1869 को सरदारटहल सिंह के घर पर हुआ था।
ऊधम सिंह के माता -पिता का देहांत बहुत ही
कम अवस्था मंे हो गया था। जिसके कारण
परिवार के अन्य लोगो ने उन पूरा ध्यान नहीं
दिया। काफी समय तक भटकने के बाद अपने छोटे
भाई के साथ अमृतसर के पुतलीघर में शरण ली
जहां एक समाजसेवी संस्था ने उनकी सहायता
की।
मात्र 16 वर्ष की अवस्था में ही उन्होनें
बैशाखी के पर्व पर अमृतसर के जलियावाला
बाग में हुए नरसंहार को अपनी आंखों से देखा।
सभी लोगोें के घटनास्थल से चले जाने के
बाद वे वहां फिर गये और वहां की मिट्टी को
अपने माथे पर लगाकर कांड के खलनायकांे से
बदला लेनेे की प्रतिज्ञा की। उन्होनें
अमृतसर मंे एक दुकान भी किराये पर ली। अपने
संकल्प को पूरा करने के लिए वे अफ्रीका से
अमरीका होते हुए 1923 मंे इंग्लैंड पहुंच
गये। वहीं क्रांतिकारियों से उनका संपर्क
हुआ। 1928 में वे भगत सिंह के कहने पर
भारत वापस आ गये। लेकिन लाहौर में उन्हें
शस्त्र अधिनियिम के उल्लंघन के आरोप में
पकड़ लिया गया और चार साल की सजा सुनायी
गयी। इसके बाद वे फिर इंग्लैंड चले गये।
13 मार्च 1940 को वह शुभ दिन आ ही गया जब
ऊधम सिंह को अपना संकल्प पूरा करने का
अवसर मिला। इंग्लैंड की राजधानी लंदन के
कैक्स्ट्रन हाल में एक सभा होने वाली थी ।इसमें
जलियावांला बाग कांड के दो खलनायक सर
माइकेल ओ डायर तथा भारत के तत्कालीन
सेक्रेटरी आफ स्टेट लार्ड जेटलैंड आने वाले
थे। ऊधम ंिसंह चुपचाप मंच की कुछ दूरी पर
बैठ गये और उचित अवसर की प्रतीक्षा करने
लग गये। सर माइकेल ओ डायर ने भारत के
खिलाफ खूब जहर उगला। जैसे ही उनका भाषण
पूरा हुआ ऊधम सिंह ने गोलियां उनके सीने
पर उतार दीं। वह वहीं गिर गये । लेकिन
किस्मत से दूसरा खलनायक भगदड़ की वजह से
बचने में कामयाब हो गया। लेकिन भगदड़ का
लाभ उठाकर ऊधम सिंह भगे नहीं अपितु स्वयं
ही अपने आप को गिरफ्तार करवा लिया।
न्यायालय में ऊधम सिंह ने सभी आरोपों को
स्वीकार करते हुए कहाकि मैं गित 21 वर्षों
संे प्रतिशोध की ज्वाला में जल रहा था।
डायर और जैटलैंड मेेरे देश की आत्मा को
कुचलना चाहते थे। इसका विरोध करना मेरा
कर्तव्य था। न्यायालय के आदेश पर 31 जुलाई
1940 को पेण्टनविला जेल में ऊधम को फांसी
दी गयी।
स्वतत्रता प्राप्ति के 27 साल बाद 16
जुलाई 1974 को उनके भस्मावशेषों को भारत
लाया गया तथा पांच दिन बाद हरिद्वार में
प्रवाहित किया गया ।
Mratunjai Dixit
Freelance
Journalist
|
|
|
|
|
News
source: U.P.Samachar Sewa |
|
News & Article:
Comments on this
upsamacharsewa@gmail.com
|