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मुजफ्फरनगर दंगा: सवालों के घेरे में सपा सरकार
- सहाय जांच आयोग की रिपोर्ट में सरकार को बचाने की कवायद
- आरोपियों को छुड़ाने का असली दोषी कौन?
सर्वेश कुमार सिंह
Publised on : 11 March 2016 Time: 22:21                        Tags: Muzaffarnagar riots, Justice Vishnu Sahay

उत्तर प्रदेश के पश्चिमी जिले मुजफ्फरनगर में वर्ष 2013 में हुए भीषण दंगे के एक सदस्यीय जांच आयोग की रिपोर्ट सरकार ने छह मार्च (रविवार) को विधान सभा में प्रस्तुत कर दी। हालांकि,जस्टिस विष्णु सहाय जांच आयोग ने रिपोर्ट में सपा सरकार को ‘क्लीन चिट’ दी है, किन्तु इस रिपोर्ट के आने के साथ ही प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार सवालों के घेरे में आ गई है। क्योंकि, आयोग ने तमाम ‘अनुत्तरित प्रश्न’ छोड़ दिये हैं।
दंगों के लिए सरकार की ‘लापरवाही और एकपक्षीय कार्रवाई’ मुख्य रूप से जिम्मेदार थी, इसलिए आयोग ने इसकी जिम्मेदारी एक पुलिस अफसर और एक दरोगा पर डाल कर रिपोर्ट में ‘लापापोती’ कर दी। रिपोर्ट में आयोग ने यह तो माना कि घटना के दिन यानि, 27 अगस्त की रात में कवाल काण्ड के दोषी 14 लोगों को छोड़ने और दो मृतक हिन्दू युवकों के परिजनों को अभियुक्त बनाने के बाद दंगे भड़के, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन था? इसका कोई उत्तर आयोग नहीं ढ़ूंठ सका। आयोग ने जांच में यह पाया कि युवकों को छोड़ने के लिए ‘फोन’ क्षेत्राधिकारी जगतराम जोशी ने किया था। किन्तु जोशी ने किसके कहने पर फोन किया था, यह आयोग ने नहीं खोजा? जबकि दंगे का मुख्य कारण यही था। इसके अलावा दंगा भड़कने के लिए मुजफ्फरनगर की वह घटना भी जिम्मेदार है जब जुमे की नमाज के बाद शहीद चौक पर मुस्लिम नेताओं के नेतृत्व में बड़ी सभा हुई। इस सभा को बसपा सांसद कादिर राणा, बसपा विधायक नूर सलीम राणा, विधायक जमील अहमद, पूर्व सांसद सईदुज्जमा (कांग्रेस) समेत कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं ने संबोधित किया । इसके बाद एक ज्ञापन जिलाधिकारी ने मौके पर जाकर लिया। जबकि शहर में धारा 144 लगी हुई थी, फिर इतना बड़ा जमाबड़ा कैसे हो गया? जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा ने किसके इशारे पर यह सभा होने दी। इसमें भड़काऊ भाषण हुए, हिन्दुओं को खुलेआम चेतावनी दी गई। हिन्दुओं के नगला मण्डौर में एक सितम्बर को प्रस्तावित ‘बहु - बेटी की इज्जत बचाओ’ सम्मेलन रोकने अन्यथा अंजाम भुगतने का अल्टीमेटम दिया गया था। यह सब होने के बावजूद जिलाधिकारी ने उन लोगों का ज्ञापन ले लिया। आयोग ने जांच रिपोर्ट में इसे गलत तो माना है किन्तु यह भी कहा कि जिला मजिस्ट्रेट के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था।
इस जांच रिपोर्ट के आने के बाद सरकार इस कारण भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि इसमें इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि दंगों के दौरान कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए सरकार कीभी कोई भूमिका होती या नहीं? सरकार क्या कर रही थी, मुजफ्फरनगर जिले के प्रभारी मंत्री की क्या भूमिका थी? क्या पुलिस और प्रशासन किसी मंत्री के इशारे पर काम कर रहा था? आखिर क्या कारण था कि घटना के तत्काल बाद कड़ी कार्रवाई करने वाले अधिकारियों अपर पुलिस महानिरीक्षक मेरठ जोन भावेश कुमार सिंह, जिलाधिकारी मुजफ्फरनगर सुरेन्द्र सिंह, एसएसपी मुजफ्फरनगर मंजिल सैनी, अपर पुलिस अधीक्षक मुजफ्फनगर राजकमल यादव का तबादला आनन-फानन में क्यों किया गया?इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस विष्णु सहाय ने अपनी रिपोर्ट में मुख्य रूप से दंगे के लिए मुजफ्फरनगर के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और स्थानीय अभिसूचना इकाई (एलआईयू) के एक निरीक्षक को दोषी मानकर कार्रवाई की सिफारिश की है। वैसे दंग
भड़कने के लिए जिम्मेदारी के तौर पर पांच लोगों को चिन्हित किया है। इनमें तत्तकालीन प्रमुख सचिव (गृह) आर.एम.श्रीवास्तव, मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सु•ााष चन्द्र दुबे, क्षेत्राधिकारी जानसठ जगतराम जोशी और एलआईयू के निरीक्षक प्रबल प्रताप सिंह शामिल हैं। लेकिन आयोग ने वि•ाागीय कार्रवाई की सिफारिश सिर्फ एसएसपी और इंस्पेक्टर के खिलाफ की है। आयोग दंगों के भड़कने के लिए सोशल, प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को भी दोषी माना है। आयोग का निष्कर्ष है कि मीडिया ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को ठीक से नहीं निभाया। घटनाओं को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया। इससे माहौल बिगड़ गय। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर बायरल हुए एक पुराने वीडियो ने आग में घी का काम किया। इसके लिए भाजपा  के एक नेता की ओर उंगली उठाई गई है। किन्तु आयोग ने कहा कि उनके खिलाफ पहले ही रिपोर्ट दर्ज हो गई है इसलिए और कार्रवाई की जरूरत नहीं है।
ज्ञातव्य है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुड़ और गल्ले की सबसे बड़ी मण्डी मुजफ्फरनगर में 27 अगस्त 2013 को दोपहर बाद ड़ेढ़ बजे जानसठ थाना क्षेत्र में चौभट्टा चौराहे पर तीन युवकों की हत्या हुई थी। घटना ग्राम मलिकपुरा मजरा कवाल थाना जानसठ की एक हिन्दू (जाट बिरादरी) की लड़की से छेड़छाड़ के फलस्वरूप हुई थी। कवाल गांव के कुछ मुस्लिम लड़के लड़की को स्कूल आते जाते छेड़छाड़ करते थे। इससे उत्तेजित लड़की के दो भाइयों सचिन (23) पुत्र किशन और गौरव (18) पुत्र रवीन्द्र ने चौराहे पर पहुंच कर छेड़छाड़ करने के आरोप में कवाल गांव के शाहनवाज (20) पुत्र सलीम पर चाकू से हमला कर दिया था। हमले में घायल शाहनवाज की गंभीर रूप से घायल होने पर घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गई। घटना की जानकारी जैसे ही गांव कवाल में पहुंची तो भरी संख्या में एकत्रित हुए दूसरे समुदाय के लोगों ने हमलावर युवकों सचिन और गौरव को लाठी डण्डों से पीट-पीट कर मार डाला। इस घटना ने बाद में इतना उग्र रूप ले लिया कि 27 अगस्त से लेकर 15 सितम्बर 2013 तक मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, मेरठ और सहारनपुर जिलों में भीषण दंगे हुए। दंगों में लगभग 60 लोगों को जान गई। हजारों लोग बेघर हुए, आजादी के बाद पहली बार गांव-गांव में साम्प्रदायिक दंगे हुए। मुस्लिम समुदाय के तमाम लोगों को गांव छोड़कर शिविरों में रहना पड़ा। स्थिति अनियंत्रित होने पर क्षेत्र में सेना बुलानी पड़ी थी।
दंगों की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में दलीय सीमाएं तोड़कर दोनों समुदाय आपस में बंट गए थे। चूंकि मुस्लिम समुदाय के लोगों का विवाद पश्चिम की प्रमुख जाति जाटों के साथ हुआ था, इसलिए स•ाी दलों के जाट नेता एकजुट हो गए थे। उधर किसी भी दल में शामिल मुस्लिम नेता एक जैसी भाषा बोल रहे थे। पूरा पश्चिम उत्तर प्रदेश दो समुदायों में बंटा नजर आ रहा था। पुलिस और प्रशासन पूरी तरह से फेल था। सरकार की कोई भूमिका नजर ही नहीं आ रही थी। घटनाएं एक के बाद एक घटित हो रही थीं। सात सितम्बर को नगला मण्डौर में हुई सर्वजातीय महापंचायत के बाद स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई थी। इस पंचायत में शामिल होने के लिए जा रहे ग्रामीणों की ट्रैक्टर ट्रालियां रोककर हमले किये गए। कस्बों में जहां मुस्लिम बहुतायत में थे, वहां भीषण हमले किये गए। लोग ट्रैक्टर ट्रालियां छोड़कर भाग गए। पंचायत से लौटते समय फिर हमले हुए। इन घटनाओं की जानकारी जब गांवों में हुई तो पूरा पश्चिम सुलग उठा था। इन घटनाओं के बाद ही सरकार ने फैसला किया था कि मामले की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जाएगा। इसके लिए नौ सितम्बर को प्रदेश सरकार ने न्यायमूर्ति विष्णु सहाय को एक सदस्यीय आयोग की जिम्मेदारी सौंपी। आयोग ने 700 पृष्ठों की रिपोर्ट मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौंप दी। इस रिपोर्ट का संक्षिप्त विवरण मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को विधान सभा में प्रस्तुत कर दिया।
सीबीआई जांच हो: भाजपा

ारतीय जनता पार्टी ने मुजफ्फरनगर दंगे की सीबीआई जांच की मांग की है। ाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा है कि जस्टिस बिष्णु सहाय की रिपोर्ट में जांच के नाम पर लीपापोती की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार की साम्प्रदायिक नीतियों के कारण जन-धन की व्यापक हानि हुई है। सीबीआई जांच के बाद असली अभियुक्तों को सजा मिल सकेगी। पाठक ने कहा कि विष्णु सहाय की रिपोर्ट दंगों के तत्संबंधी तथ्यों का खुलासा नहीं करती। आयोग को सौंपे गए चार बिन्दुओं में प्रथम बिन्दु ‘तथ्यों को सुनिश्चित करना और घटनाओं के कारणों का पता लगाना’ था। आयोग ने इस प्रमुख बिन्दु ‘तथ्य और कारण’ पर लीपापोती की है। ाजपा का सुनिश्चित मत है कि दंगों की दोषी सपा सरकार है। सरकार और प्रशसन तंत्र के बीच लगातार संचार सम्पर्क हुआ है। वरिष्ठ मंत्रियों और राजधानी में बैठे नौकरशाहों ने स्थानीय प्रशासन तंत्र को पंगु बनाया। आयोग ने जांच के दौरान ‘काल डिटेल’ को जांचना ी जरूरी नहीं समझा।
विष्णु सहाय रिपोर्ट ने निराश किया: मायावती
बसपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने मुजफ्फरनगर दंगों की जांच रिपोर्ट को सिर्फ लीपापोती करार दिया है। उन्होंने कहा कि जस्टिस विष्णु सहाय ने इंसाफ पसंद लोगों को निराश किया है। उन्होंने कहा कि आयोग ने राज्य सरकार को बचाया है। इससे यह साबित होता है कि केन्द्र की
ाजपा सरकार और प्रदेश में सपा सरकार में गरीबों, महिलाओं, किसानों और बेरोजगारों के साथ-साथ दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को ‘जान माल व मजहब की सुरक्षा व न्याय’ मिल पाना कितना कठिन हो गया है।

News source: U.P.Samachar Sewa

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