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क्या हम बुलेट रेल के लिये तैयार हैं?
- शिवाजी सरकार -
Publised on : 28 May 2014 Time: 22:53                         Tags: Bullet Rail in India, Shivaji Sarkar

रीब आदमी भी तेज गति का षौकीन है। आने वाली नई सरकार ने उसमें उम्मीदें भी जगा दी हैं। स्वाभाविक है कि वह भी धरती पर तेज गति से दौड़ती बुलेट रेल में यात्रा करने का सपना देख रहा है। लेकिन क्या हमें तुरन्त बुलेट रेल की आवष्यकता है? षायद नहीं। देष अभी कुछ ओर साल भारतीय रेल में गुजार सकता है। भले ही हर दिन उसकी कार्य प्रणाली में आरक्षित टिकटें दलालों के माध्यम से मिलती हों, कई घंटों की देरी से लाखों लोंगो की यात्रा समाप्त होती हों और आरक्षण रदद कराते वक्त यात्री को काफी पैसे दंड के रूपमें चुकाने पड़ते हों।
बुलेट रेल के लिए 70 हजार करोड़ रूपये की जरूरत है जिससे उसकी गति के अनुसार नया ढांचा खड़ा किया जा सके। चलाने के लिए कुषल कर्मचारी रखें जा सके और अन्य दूसरी जरूरी आवष्यकताओं को सफलतापूर्वक पूरा किया जा सके। हमारी रेल बरसों से अपनी बनाई योजनाओं के अनुसार पैसा खर्च करने में असफल रही है जिसमें 2013-14 का प्रस्तावित योजना बजट 63 हजार 363 करोड़ रूपये भी षामिल है। हम विष्व की सर्वश्रेश्ठ रेल-जापान और फरांस के साथ मुकाबले करने की नैसार्गिक इच्छा का स्वागत करते हैं। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि ये दोंनो छोटे देष है, इनकी समस्याएं कम हैं, इनकी आबादी भी कम है। षक्तिषाली अमेरिका और इग्ंलैंड ने भी अभी तक बुलेट रेल को लेकर कोई प्रयोग नहीं किया है।जापान और फरांस के मुकाबले भारत बहुत सी समस्याओं से जूझ रहा है। हर स्तर पर कार्य संस्कृति में गिरावट देखने में आ रही है। भारतीय रेल में भी यही सब देखने में आ रहा है। गंदगी से भरे डिब्बे, इंजन, गंदे स्टेषन और पटरियां। सुपरफास्ट की संस्कृति, फिर बात राजधानी की हो या षताब्दी की, भारतीय रेल के लिए किसी षाप से कम नहीं है। जिन रेलों को सुपर फास्ट कहा जाता है उनके कारण चलने वाली बरसों तक भारतीय रेल का गौरव रही मेल - एक्सप्रेस और पैसंजर रेल गाड़िया आज धीमी गति से चल रही हैं। इसको एक उदाहरण से समझते हैं कि कुछ प्रतिश्ठित रेल गाड़ियां जैसे 11 अप और 12 डाउन जिसे आज कल लालकिला एक्सप्रैस-दिल्ली से कलकत्ता-आज कल तीन घंटा ज्यादा समय लेकर अपने गंतव्य स्थल पर पंहुचती है जबकि आजादी के पूर्व चलने वाली इस रेलगाड़ी में ऐसा नहीं था। ऐसा ही कुछ 39 अप और 40 डाउन जिस आजकल जनता एक्सप्रैस कहा जाता है और जिसमें केवल तीसरी श्रेणी ही होती है, 1950 में भारतीय रेल का गौरव थी। इसमें गाड़ी के अंत तक तब केबिननुमा डिब्बे जुड़े हुए थे आज अगर रदद न हो जाए तो दिल्ली और कलकत्ता के बीच यात्रा पूरी करने में 5 घंटा ज्यादा समय लेती है। ऐसा ही कुछ हाल महान तूफान एक्सप्रैस का है जिसके उपर हिन्दी फिल्मों में कई गाने लिखे जा चुके हैं। कोई नहीं जानता कि ये रेल गाड़िया अपने गंतव्य स्थल पर कितने घंटों की देरी से पहंुचती है, रदद हो जाती है आते वक्त आदि आदि।
तीन दषक पहले गोमती एक्सप्रेस को बड़े गौरव के साथ यह कहकर षुरू किया गया था कि दिल्ली और लखनउ की आने और जाने की एक हजार किलोमीटर की यात्रा अब संभव है। लेकिन अब यह 4 या 5 घंटे देरी से चलती है। कभी-कभी तो इससे भी ज्यादा समय ले लेती है। पष्चिम बंगाल में लालगोला फास्ट पैसेंजर पहले आरामदायक यात्रा के लिए जानी जाती थी। अब केवल पष्चिम बंगाल में जहां आज भी विष्वभारती फास्ट पैंसेंजर आज भी सुविधाजनक समझी जाती है, बाकी सभी आज इतिहास हो गई हैं। तेज गति के जुनून के कारण ऐसी कुछ सुपरफास्ट गाड़िया बढ़ा दी गई है। पर पहले से चलने वाली इन रेलों ने अपनी गति में कुछ भी परिवर्तन नहीं किया है, अब अपनी यात्रा लंबे समय लेकर पूरा करती है। बहुत सी पैंसेजंर और उपनगरीय रेल गाड़िया ऐसे ही हालात से गुजर रही हैं।असल में इन्हें गरीबों की रेलगाड़िया कहा जाता है जिसके कारण किसी को इनकी चिंता नहीं रहती। देष के कुछ हिस्सों जैसे बिहार, ओडिसा, उत्तरप्रदेष और मध्यप्रदेष में आजादी के 67 साल बाद भी पैसे न होने की सूरत में जनता भगवान भरोसे इन रेल गाड़ियों का इंतजार करती रहती हैं।
पूर्वोतर भारत की यात्रा पूरी करने के लिए सुपरफास्ट गाड़ियां तय समय से 15 से 20 घंटे देरी से चलती हैं। कुछ रेलगाड़िया, उत्तर प्रदेष के सुल्तानपुर से गुजरात के ओखा के बीच चलती है। इसके चलने और पहुचने का समय भगवान ही जानते हैं।भारतीय रेल अभी तक आरक्षण में भ्रश्टाचार को समाप्त नहीं कर पाया है। कंप्यूटर तक को भ्रश्ट बना लिया गया है। डायनैमिक किराया एक योजनाबद्व लूट है। आने वाले नए रेल मंत्री क्या रेल यात्रियों के लिए बिना आरक्षण, बिना सुपरफास्ट आरक्षण षुल्क और डायनैमिक किराए के आरामदायक यात्रा संभव करा सकते हैं?
हर नया रेल मंत्री नए-नए अमीर बने नौकरषाहों की बनाई उस योजना में फंस जाता है जो पुरानी रेलों को नए नाम देता है,नई सुपर फास्ट रेल गाड़ी को और उनके चुनाव क्षेत्रों से जोड़ देता है। मंत्री खुष हो जाता है यह सोचकर कि उसने कुछ नया किया है। जैसे ही वह मंत्रालय से हटता है उसकी चलाई रेलगाड़ी अपनी चमक, गति और प्रतिश्ठा खो बैठती है। इसकी सबसे बड़ी मिसाल स्व ललित नारायण मिश्र द्वारा चलाई गई जयंती जनता एक्सप्रैस है। बाद में जिसका नाम वैषाली रखकर बिहार से बने दूसरे रेलमंत्री को प्रसन्न किया गया। पिछले कई दषकों से बहुत से रेल मंत्रियों ने नई रेलगाड़ी चलाने की घोशणा की लेकिन आज तक वे चल न सकी।
लंबे समय बाद एक जनप्रिय सरकार षपथ लेने जा रही है। आम आदमी उम्मीद लगाए बैठा है कि जादू भरे कदमों के उठाने से उसकी जिंदगी और यात्रा में परिवर्तन हो जाएगा। बुलेट रेल जैसा जादू वे नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि 13 हजार 530 मानव रहित रेल क्रासिंग, जो मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में ही है, समाप्त कर दी जाए। सैकड़ो आदमी मारे जा चुके है और बहुत से दुर्धटनाएं इन रेल क्रासिंग के कारण होती रही है। इसके अलावा 18 हजार 316 दूसरी तरह की क्रासिंग है जो राजमार्गो और ग्रामीण सड़को को जोडती है। घंटो तक इनके बंद रहने से यातायात में जाम लग जाता है और यात्रा में विलंब हो जाता है। जनता आज हरदिन होने वाली इन समस्याओं से निजात चाहता है। रेल आधिकारी कहते हैं कि रेल क्रासिंग पर होने वाली दुर्घटनाओं के लिए और लंबे इंतजार के लिए वे जिम्मेदार नहीं है।
जनता समझ रही है कि इन तेज गति वाली रेलों से उनका इंतजार बढे़गा। रेल, जिसे बड़ा गर्व रहता है कि वे देष को जोड़ती है, विभाजन और असमानता भी फैलाती है। जनता इस का तुरन्त समाधान चाहती है। बजट वक्तव्य, जो इसी वर्श 28 फरवरी को पढ़ा गया, में रेल के खराब भंडारण, पटरियों की बुरी हालत, सिग्नल व्यवस्था में गड़बडी और गंदगी पर चिंता व्यक्त की गई। रेल मंत्रालय हमेषा धन की कमी का रोना रोता रहा है। क्या यह बुलेट रेल की बहुत बढ़ी जिम्मेदारी उठा सकता है जो कुछ हजार लोंगो को ही फायदा देगी?
नौकरषाहों पर सपनों भरे बजट पेष करने पर कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। नई सरकार को इस मामले में सावधान रहना होगा। नौकरषाह बुलेट रेल के मामले में सरकार का नाम खराब कर सकते हैं। भारत में तेज गति से यात्रा करना अब बहुत आवष्यक हो गया है। लेकिन यह गरीबों पर खर्च होने वाले करोड़ों में से निकाल कर नहीं होना चाहिए। सबसे पहले तो फरेट कारिडोर तेजी से बनाना चाहिए। यह भारत की आर्थिक वृद्वि में मदद करेगा। नई सरकार को योजनाबद्व तरीके से रेल संबंधी समस्याओं को सुलझाना होगा जिसने देषवासियों का जीना दूभर कर दिया है। धीमी गति से चलने वाली पैसंजर गाड़िया हो या उपनगरीय रेल जरूरत है कि वे निष्चित समय पर चले। इससे लोंगो की कार्यक्षमता में इजाफा होगा। यही मोदी सरकार का नारा भी है। बुलेट रेल कुछ वर्श इंतजार कर सकती है। तब तक रेलों में बहुत सुधार हो चुका होगा। हमें बुलेट रेल को दूसरी गोमती एक्सप्रैस नहीं बनने देना है।

   

News source: U.P.Samachar Sewa

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