|
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ अर्थात विश्व का सर्वाधिक
विशाल गैर राजनैतिक, सामाजिक संगठन। एक ऐसा
संगठन जिसे व्यक्ति निर्माण की पाठशाला कहा
जाता है। 88 वर्षों से अधिक समय से सक्रिय
इस संगठन ने राष्ट्र निर्माण, देशभक्ति,
सेवा और भारतीय पुरातन मूल्यों की स्थापना
का कार्य कभी नहीं छोड़ा। इस संगठन के
इतिहास में कई ऐसे उतार-चढ़ाव आए जब इसके
स्वयंसेवकों को असीम कठिनाइयों का सामना
करना पड़ा, गांधी हत्या का झूठा आरोप भी
संघ पर लगाया गया और आपातकाल के दौरान संघ
स्वयंसेवकों को जेलों में ठूंस दिया गया
लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद संघ सभी
अग्नि परिक्षाओं से बेदाग होकर निकला और
अपने मूल कार्य में आज भी जुटा हुआ है।
संघ न तो सीधे राजनीति में कूदता है और न
राजनीति में उसकी प्रत्यक्ष भूमिका रही है
लेकिन ऐसा भी नहीं कि संघ की अच्छे और बुरे
पर नजर नहीं रहती। देश को किस बात से
नुकसान हो रहा है और देश को कैसे मजबूती
मिलेगी इसका आंकलन संघ सदैव करता है। संघ
द्वारा वर्ष में दो बार आयोजित अखिल
भारतीय प्रतिनिधि सभा और अखिल भारतीय
कार्यकारी मंडल की बैठकों में बाकायदा
राष्ट्र के ज्वलंत विषयों पर न केवल
चिन्तन-मंथन होता है बल्कि उस पर प्रस्ताव
भी पास किए जाते हैं। इन प्रस्तावों में
संघ का नजरिया क्या है इसकी झलक देखने को
मिलती है। वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम का
विश्लेषण किया जाए तो देश में राजनीतिक
व्यवस्था परिवर्तन और भारत के नए
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर संघ
मीडिया सहित देश में उसके समर्थकों,
विरोधियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ
है। जैसा कि विदित ही है नरेन्द्र मोदी
मूलतरू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के
प्रचारक रहे हैं। उन्होंने राजनीति में
प्रवेश किया और पहले संगठन और फिर सत्ता
में रहकर राजनीति में अपनी विशिष्ट पहचान
स्थापित की। 2013 में उन्हें प्रधानमंत्री
पद का उम्मीदवार घोषित किया गया, कड़ी
मेहनत और अपनी प्रस्तावित नीतियों के चलते
मोदी ने देशवासियों का विश्वास और दिल जीता
तथा प्रधानमंत्री की कुर्सी प्राप्त की।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक या प्रचारक
राजनीति में आया हो या प्रधानमंत्री के पद
तक पहुंचा हो। हां इतना अवश्य है कि देश
की जनता ने जितना प्यार मोदी पर लुटाया
उतना आज तक किसी भी गैर कांग्रेस नेता को
नहीं मिला। मोदी से पूर्व भाजपा के अटल
बिहारी वाजपेयी भी देश के प्रधानमंत्री रहे
और वह भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के
प्रचारक रहे। उनसे पहले श्यामाप्रसाद
मुखर्जी और पं. दीनदयाल उपाध्याय भी संघ
क्षेत्र से राजनीति में भेजे गए। अतरू यह
कोई नई बात नहीं कही जा सकती, हां इतना
जरूर है कि श्यामाप्रसाद मुखर्जी रहे हो,
पं. दीनदयाल उपाध्याय हों, अटल बिहारी
वाजपेयी हों इन सभी को लेकर भी समाज और
मीडिया में उसी प्रकार का चिंतन-मंथन और
विश्लेषण चलता रहा है जैसा कि वर्तमान में
नरेन्द्र मोदी को लेकर दिखाई दे रहा है।
श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय
और अटल बिहारी वाजपेयी हों या फिर
नरेन्द्र मोदी इन सभी ने राजनीति में आने
के बावजूद राजनीति की रपटीली राहों से
स्वयं को न केवल अछूता रखा बल्कि संघ
संस्कारों की छाप भी राजनीति में छोड़ी।
दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद का
महामंत्र भारतीय राजनीति को दिया तो श्यामा
प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर के लिए अपने
प्राणों की आहुति दे दी। अटल बिहारी
वाजपेयी की बात की जाए तो उनके व्यक्तित्व
को भारतीय राजनीति का सूर्य कहा जाए तो
अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए। यू.एन.ओ में
सर्वप्रथम हिन्दी में भाषण देकर राष्ट्र
भाषा का पूरी दुनिया में मान बढ़ाने तथा
प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद
पोखरण अणु परीक्षण करके भारत के सोए
स्वाभिमान को जगाने का काम अटलजी ने किया।
उनके छह वर्ष के शासनकाल को आज तक पूरा
देश याद करता है। प्रधानमंत्री जैसे उच्च
पद पर पहुंचने के बावजूद अटलजी ने संघ
संस्कारों की मर्यादा को न केवल कायम रखा
बल्कि उसके लिए कोई समझौता नहीं किया।
जहां तक नरेन्द्र मोदी का सवाल है वे भी
लगातार चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे
चुके हैं। इस दौरान गुजरात ने न केवल
चैतरफा विकास किया बल्कि राजनीति में
शुचिता, सुशासन और अनुशासन के आयाम
स्थापित किए जिसका लोहा पूरा देश मानता
है। आज जो प्रचंड जनसमर्थन उन्हें प्राप्त
हुआ है उसके पीछे भी यही बात निहित है।
देश की जनता को मोदी के रूप में अपनी अपार
समस्याओं, पिछली सरकार की तमाम जन विरोधी
नीतियों के कारण पैदा परेशानियों का
समाधान दिखाई दे रहा है। इसी आशा और
विश्वास का परिणाम है मोदी को मिला अपार
जनसमर्थन निश्चित ही मोदी की इस सफलता का
श्रेय संघ कोजाता है। वास्तव में संघ की
पाठशाला में जो व्यक्ति निर्माण का पाठ
पढ़ाया जाता है मोदी उसी का प्रमाण हैं।
विविध क्षेत्रों में संघ के ऐसे स्वयंसेवक
समाज निर्माण, राष्ट्र निर्माण के कार्य
में सक्रिय हैं। इसे मीडिया और इस देश के
कथित बुद्धिजीवियों का मतिभ्रम ही कहना
चाहिए कि उन्हें केवल राजनीतिक क्षेत्र
में इस तरह के स्वयंसेवक दिखाई देते हैं।
उनके देखने का नजरिया भी इतना दूषित है कि
वह जब भी स्वयंसेवक के श्रेष्ठ कार्य का
उसकी सफलता का विश्लेषण करते हैं तो इसके
पीछे उन्हें संघ ही नजर आता है। वह शुद्ध
मन से कभी यह विचार नहीं करते कि संघ तो
वास्तव में व्यक्ति निर्माण के कार्य में
जुटा है और जब संघ पाठशाला में गढ़े गए
व्यक्तित्व विविध क्षेत्रों जिसमें कि
राजनीति भी शामिल है वहां पहुंचते हैं तो
श्रेष्ठ व्यक्तित्व और श्रेष्ठ संघ
संस्कारों के चलते वे सफलता की सीढियां
चढ़ते चले जाते हैं और मोदी भी उनमें से एक
हैं।
हां इतना जरुर है कि इस राष्ट्र को परम
वैभव पर पहुंचाने के लिए संघ श्रेष्ठ
व्यक्तियों का समर्थन करता है और उनकी
सफलता के लिए अपना सहयोग भी करता है जैसा
कि इस बार चुनाव में भी संघ ने किया उसने
मतदान प्रतिशत बढ़ाने और भारत में श्रेष्ठ
जीवन मूल्यों वाली सरकार कायम हो इसके लिए
अपना सहयोग दिया। इसका मतलब यह कदापि नहीं
है कि संघ भाजपा के लिए काम करता है या
फिर मंत्रीमंडल में किसे शामिल किया जाए
अथवा सरकार का एजेंडा क्या हो यह संघ तय
करता है। जो लोग अथवा मीडिया इस नजरिए से
संघ को देख रहे हैं वह पूर्णतरू गलत है।
इस बारे में संघ के अखिल भारतीय सम्पर्क
प्रमुख राम माधव ने परिणाम आने के बाद
मीडिया में जो बात कही वह ध्यान देने
योग्य हैं। श्रीराम माधव ने साफ तौर पर कहा
कि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की अगुआई
वाली सरकार के गठन में उसका कोई दखल नहीं
होगा। उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि
चुनाव में संघ ने एक जागरुक नागरिक के नाते
संघ के स्वयंसेवकों को कहा था कि आज देश
को परिवर्तन की जरुरत है इसलिए परिवर्तन
के लिए चुनाव में जरुर भाग लें और बड़ी
संख्या में वोट दें इतना ही जागरण करने का
काम संघ ने किया। वह काम अब पूरा हो गया
है और अब हम वापस हमारे संगठन के मूल काम
चरित्र निर्माण, व्यक्ति निर्माण और देश
सेवा के काम में समय देंगे।
साफ है संघ को राजनीति से कोई लेना देना
नहीं है उसने तो व्यक्ति निर्माण योजना
में गढ़े मोदी को देश के लिए समर्पित कर
दिया है। अब इसमें कोई संदेह नहीं कि वे
देशवासियों की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे और
भारत एक बार पुनरू विश्व गुरु बनेगा।
|