महत्त्वपूर्ण तिथियां
o
11
मई,
1998
को बाबरी मस्जिद मूवमेंट समन्वय समिति
के संयोजक सैयद शहाबुद्दीन ने कहा कि
उसे विवादित स्थल के करीब मन्दिर
निर्माण में कोई आपत्ति नहीं है।
o
21
मई,
1998
को उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने
सी.बी.आई. के विशेष न्यायाधीश जे. पी.
श्रीवास्तव को निर्देश दिया कि वह
अगस्त के महीने में आरोपियों के खिलाफ
आरोप तय कर दें।
o
25
मई,
1998
को विशेष अदालत ने
10
अगस्त की तारीख निश्चित कर दी और श्री
लालकृष्ण आडवाणी,
मुरली मनोहर जोशी तथा उमा भारती सहित
49
लोगों के खिलाफ आरोप तय कर दिए।
o
7
जून,
1998
को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
ने सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा,
जिसमें उन्होंने कहा कि चूंकि अयोध्या
मुद्दा अदालत में है,
इसलिए सरकार किसी को भी धर्मस्थल की
पवित्रता का उल्लंघन नहीं करने देगी।
o
10
जून,
1998
को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के
तत्कालीन सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र
सिंह ने स्पष्ट रूप में कहा कि संघ
अयोध्या मामले को लेकर किसी प्रकार का
टकराव नहीं चाहता। हाँ,
मन्दिर अयोध्या में हर हाल में उसी
स्थान पर बनाया जाएगा।
o
6
जुलाई,
1998
को केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल ने
केन्द्र सरकार से आग्रह किया कि वह
मन्दिर स्थल को श्रीराम जन्मभूमि
न्यास को सौंप दे जिससे वहाँ मन्दिर
बनाया जा सके।
o
3
दिसम्बर,
1998
को अयोध्या में विवादित स्थल पर दैनिक
पूजा-अर्चना के अलावा बाकी अन्य
कार्यक्रमों पर उत्तर प्रदेश सरकार ने
रोक लगा दी।
o
15
दिसम्बर,
1998
को ढाँचा गिराने में शामिल
49
लोगों के आरोप तय करने के लिए विशेष
अदालत ने
20
जनवरी,
1999
की तारीख रखी।
o
1
फरवरी,
1999
को अयोध्या के दिगम्बर अखाड़े में
आयोजित सन्त सम्मेलन ने श्रीराम
जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण की
प्रतिबद्धता दोहराते हुए तीन प्रस्ताव
पारित किए।
o
4
जून,
1999
को लखनऊ में विशेष अदालत के न्यायाधीश
ने श्री लालकृष्ण आडवाणी,
एम. एम. जोशी,
उमा भारती,
कल्याण सिंह और बाल ठाकरे को
व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित
होने का आदेश दिया। अदालत ने कुल
48
लोगों को तलब किया।
o
7
दिसम्बर,
1999
को प्रधानमंत्री वाजपेयी ने लोकसभा
में गृहमंत्री आडवाणी सहित तीन
केन्द्रीय मंत्रियों के इस्तीफे की
माँग को नामंजूर कर दिया। तीनों
मंत्रियों,
यथा- आडवाणी,
जोशी और उमा भारती ने अपने इस्तीफे
प्रधानमंत्री को सौंप दिए थे।
o
21
जून,
2000
को लिब्राहन आयोग ने ढाँचा गिराए जाने
में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को
मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया और
उनसे
20
जुलाई को पेश होने को कहा।
o
17
जुलाई,
2000
को अयोध्या प्रकरण के विशेष न्यायाधीश
एस. के. शुक्ल ने लखनऊ में बाबरी
मस्जिद ध्वंस के आपराधिक वाद में
47अभियुक्तों
की हाजिरी माफी का आवेदन खारिज करते
हुए लालकृष्ण आडवाणी,
बाल ठाकरे,
कल्याण सिंह सहित सभी अभियुक्तों को
15
सितम्बर,
2000
को आरोप तय किए जाने हेतु व्यक्तिगत
रूप से अदालत में उपस्थित होने का
आदेश दिया।
o
27
जुलाई,
2000
को अयोध्या ने उत्तर प्रदेश के
तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को
आयोग के समक्ष पेश होने के वास्ते
जमानती वारण्ट जारी किया।
o
16
सितम्बर,
2000
को लखनऊ में विशेष सत्र न्यायाधीश एस.
के. शुक्ल ने सुनवाई की तिथि
15
नवम्बर,
2000
रखी।
o
3
अक्टूबर,
2000
को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री
कल्याण सिंह ने लम्बित मामलों के
स्थानान्तरण के लिए सर्वोच्च न्यायालय
में याचिका दायर की।
o
31
अक्टूबर,
2000
को भाजपा ने कहा कि श्रीराम मन्दिर
निर्माण उनकी पार्टी के कार्यक्रम में
नहीं है। इसलिए इस मामले में किसी को
सहयोग देने का सवाल ही नहीं उठता।
o
9
नवम्बर,
2000
को बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने सरकार
से मस्जिद के पुनर्निर्माण की अपील
की। उसने संघ परिवार द्वारा दिए जा
रहे बयानों पर रोक लगाने की भी माँग
की।
o
3
दिसम्बर,
2000
को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने
कहा कि राज्य सरकार विवादित ढाँचे के
बारे में कुछ नहीं कर सकती।
o
6
दिसम्बर,
2000
को प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा कि
अयोध्या में मन्दिर निर्माण राष्ट्रीय
भावनाओं का प्रकटीकरण है। भाजपा
अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण ने कहा कि
पार्टी
6
दिसम्बर,
1992
को हुए बाबरी मस्जिद के ध्वंस को लेकर
किसी भी समुदाय से माफी नहीं माँगेगी,
क्योंकि उसने कोई गलती नहीं की है।
o
12
दिसम्बर,
2000
को केन्द्र सरकार ने अयोध्या मुद्दे
पर नियम
184
के तहत लोकसभा में चर्चा कराने की
सहमति दे दी,
जिसको लेकर
7
दिनों से लोकसभा में गतिरोध बना हुआ
था।
o
19, 20, 21
जनवरी,
2001
को प्रयाग में महाकुम्भ के अवसर पर
आयोजित नवम् धर्मसंसद में सन्त समाज
ने केन्द्र सरकार का आह्वान करते हुए
12
मार्च,
2002
तक श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण
के मार्ग में आने वाली सभी प्रकार की
बाधाएँ दूर करने को कहा। साथ ही यह भी
कहा कि इसके बाद किसी भी दिन मन्दिर
निर्माण का कार्य प्रारम्भ कर दिया
जाएगा और अयोध्या से दिल्ली तक की
सन्त चेतावनी यात्रा का आयोजन किया
जाएगा।
o
20-21
जून,
2001
को श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण
समिति ने अपनी दिल्ली की बैठक में
जन-प्रतिनिधियों से मिलकर उन्हें
श्रीराम जन्मभूमि से सम्बंधित सभी
तथ्य समझाने का निर्णय लिया।
o
प्रधानमंत्री ने लखनऊ में पत्रकारों
से कहा कि
12
मार्च,
2002
तक श्रीराम जन्मभूमि का हल खोज लिया
जाएगा। इसी प्रकार के वाक्य
प्रधानमंत्री द्वारा
10
अक्टूबर को पूज्य महंत परमहंस
रामचन्द्रदास जी से भी भेंट के समय
दिल्ली में कहे गए।
o
श्रीराम जन्मभूमि पर दर्शनार्थियों को
श्रीरामलला के सार्थक दर्शन कराने के
उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के स्पष्ट
आदेशों के बावजूद ऐसा नहीं हो रहा था।
17
अक्टूबर,
2001
को श्री अशोक सिंहल एवं श्री
श्रीशचन्द्र दीक्षित लोहे की
बेरिकेटिंग को पार कर गर्भगृह के बाहर
दर्शन करने के लिए कुछ फीट अन्दर चले
गए,
इसे अपराध माना गया।
o
21
जनवरी,
2002
को अयोध्या से चलकर लखनऊ,
कानपुर और इटावा होते हुए
26
जनवरी,
2002
रात्रि तक सन्त यात्रा दिल्ली पहुँची।
पूरे मार्ग में स्थान-स्थान पर सन्तों
के स्वागत और प्रवचनों के कार्यक्रम
होते रहे। इस यात्रा में
6500
सन्त सम्मिलित हुए।
o
27
जनवरी,
2002
को रामलीला मैदान,
दिल्ली में बृहद् धर्मसभा का आयोजन
हुआ। यह धर्मसभा
4
अप्रैल,
1991
को दिल्ली के वोट क्लब पर हुए विशालतम
प्रदर्शन के समान ही ऐतिहासिक रही।
o
27
जनवरी,
2002
को दोपहर को सन्तों के प्रतिनिधि
मण्डल ने प्रधानमंत्री से भेंट की।
प्रधानमंत्री ने सन्तों से कह दिया कि
उन्होंने
12
मार्च तक श्रीराम जन्मभूमि का हल
निकालने के लिए कोई वायदा नहीं किया
था।
o
10
फरवरी,
2002
को अयोध्या में पूज्य महंत परमहंस
रामचन्द्रदास जी ने घोषणा कर दी कि वे
मन्दिर निर्माण के लिए क्रेन से पत्थर
ले जाएंगे।
o
15
फरवरी,
2002
को परमहंस जी ने प्रधानमंत्री को
न्यास की भूमि को वापस करने के लिए
पत्र लिखा।
o
17
फरवरी,
2002
को वसन्त पंचमी के दिन रामघाट स्थित
कार्यशाला में शिलाओं का पूजन हो जाने
के बाद श्रीराम महायज्ञ प्रारम्भ हुआ।
यह यज्ञ
24
फरवरी,
2002
तक चला।
o
24
फरवरी,
2002
को प्रातः
8000
रामसेवकों ने यज्ञ में पूर्णाहुति दी।
o
25
फरवरी को
6000
की संख्या में रामसेवक और आ गए।
o
26
फरवरी,
2002
से रामसेवकों के अयोध्या जाने वाले
मार्ग प्रशासन द्वारा अवरुद्ध किए
जाने लगे। अयोध्या की सीमाएँ सील कर
दी गईं। वाहनों को रोका जाने लगा।
o
27
फरवरी,
2002
को गोधरा में रेल के डिब्बे में
बर्बरतापूर्ण ढंग से
57
से अधिक रामसेवकों को जला डाला गया।
o
27
फरवरी,
2002
को गठबन्धन सरकार ने श्रीराम जन्मभूमि
आन्दोलन को पूरी शक्ति से कुचलने की
घोषणा की। अयोध्या में
20,000
अर्द्ध सैनिक बलों की तैनाती कर दी
गई।
o
3
मार्च,
2002
को अयोध्या में चलाए जा रहे दमन चक्र
की जानकारी लिखित रूप में केन्द्रीय
गृहमंत्री को पहुँचाई गई किन्तु दमन
चक्र बढ़ता ही गया।
o
3
मार्च,
2002
को श्री अशोक सिंहल ने जनता से देश
में शान्ति बनाए रखने और देश की
आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा के लिए मिल
रही चुनौती के प्रति सजग रहने की अपील
की।
o
4
मार्च,
2002
को कांची कामकोटि पीठ के पूज्य
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र
सरस्वती ने श्रीराम जन्मभूमि के हल के
संदर्भ में प्रयास शुरू किए।
o
4
मार्च,
2002
को दिल्ली में सर्वश्री पूज्य परमहंस
जी,
स्वामी प्रकाशानन्द जी (बोस्टन),
अवेद्यनाथ जी,
नृत्यगोपाल दास जी,
सत्यमित्रानन्द जी,
युगपुरुष परमानन्द जी,
स्वामी चिन्मयानन्द जी,
रामविलासदास वेदान्ती जी,
सन्तोषी माता जी आदि सन्त एकत्रित
हुए। केन्द्र सरकार से कहा गया कि
अयोध्या में खड़ी सभी बाधाओं को हटाया
जाए,
अयोध्यावासियों पर लगाए गए प्रतिबन्ध
हटाए जाएं। अविवादित भूमि पर
15
मार्च को निर्माण सामग्री ले जाने की
अनुमति दी जाए।
2
जून,
2002
के पूर्व ही अविवादित भूमि श्रीराम
जन्मभूमि न्यास को हस्तान्तरित कर दी
जाए और न्यायालय का निर्णय दस्तावेजी
साक्ष्य के आधार पर शीघ्र कराया जाए।
o
7
मार्च,
2002
को उत्तर प्रदेश के
14
सांसद दिल्ली में एकत्रित हुए। स्वामी
चिन्मयानन्द जी पैड पर उन्होंने अपनी
अयोध्या की पीड़ा को लिखित रूप प्रदान
करके प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा।
o
7
मार्च,
2002
को असलम भूरे नामक व्यक्ति ने
सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की
कि अयोध्या में
15
मार्च को कोई शिलादान न हो।
o
8
मार्च,
2002
को प्रधानमंत्री जी की ओर से पूज्य
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र
सरस्वती को रात्रि भोज पर मौखिक
आश्वासन दिए गए कि अयोध्या में सभी
बाधाएँ हटा ली जाएंगी।
15
मार्च,
2002
का कार्यक्रम होने दिया जाएगा,
2
जून तक अविवादित भूमि न्यास को दे दी
जाएगी। प्रधानमंत्री के आश्वासनों से
सभी आश्वस्त हो गए।
o
8
मार्च,
2002
को केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री आई.
डी. स्वामी अयोध्या पहुँचे। वे अनेक
जगह गए और अनेक लोगों से मिले। उनके
रुख से आशा बंधी कि राहत मिलेगी
किन्तु सरकारी दमन चक्र कठोर से
कठोरतम होता गया।
o
11
मार्च,
2002
को प्रातः पूज्य महंत रामचन्द्रदास
परमहंस जी अखाड़ा छोड़कर कार्यशाला में
पहुँच गए और
15
मार्च तक वहीं रहने की घोषणा कर दी
क्योंकि अखाड़े में उन्हें अपनी
नजरबन्दी का अन्देशा था।
o
12
मार्च,
2002
को दिन में कार्यशाला पर ताला डाल
दिया गया। चारों ओर अर्द्ध सैनिक बल
तैनात कर दिया गया। परमहंस जी ने
घोषणा कर दी कि यदि मुझे यहाँ से नहीं
निकलने दिया तो मैं रसायन खाकर शरीर
त्याग दूँगा। उनका कहना था कि मैं
अपनों से ठगा गया हूँ।
92
वर्ष की आयु में अपनों से नहीं लड़
सकता।
o
12
मार्च,
2002
को शिवरात्रि थी। अयोध्या में कोई भी
पूजा करने के लिए मन्दिर न आ सका।
रात्रि को पुलिस महानिरीक्षक सरदार
हरभजन सिंह की पहल पर शिवजी की बारात
निकली। कहीं,
कोई अशान्ति नहीं फैली।
o
13
मार्च,
2002
को सर्वोच्च न्यायालय ने
15
मार्च के शिलादान पर रोक लगा दी
किन्तु लिखित में आदेश कुछ और ही कह
रहा था।
o
14
मार्च,
2002
को सर्वोच्च न्यायालय ने बिना किसी
दूसरे के प्रार्थना किए स्वयं ही अपना
निर्णय पुनः लिखाया। न्यायपालिका के
इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व मानी
जाएगी।
o
समाचार पत्रों के माध्यम से अयोध्या
के बारे में देशभर में आतंक का
वातावरण खड़ा कर देने के बाद भी
रामसेवक अयोध्या आते रहे और घर वापस
जाते रहे।
14
मार्च को
130
कि. मी. पैदल चलकर पुणे की एक माता
अयोध्या पहुँची थी। इसी दौरान ग्रामीण
जनता का इस कार्य में पूरा सहयोग रहा।
o
14
मार्च,
2002
को सन्तों को अयोध्या बुलाया गया
किन्तु साधनों के अभाव में वे न पहुँच
सके। कुछ लखनऊ तक पहुँचे भी तो उन्हें
अयोध्या की सीमा पर ही रोक दिया गया।
अयोध्या एक जेल में परिवर्तित हो चुकी
थी। परमहंस जी की शरीर त्याग की घोषणा
से ही सरकार कुछ हिली।
o
14
मार्च,
2002
को लखनऊ से एक अधिकारी आए और महंत जी
से कई बार मिले। रात्रि तक यह स्पष्ट
हो गया कि सरकार शिलादान स्वीकार
करेगी। शिलादान महंत जी के इच्छित
स्थान पर होगा।
o
15
मार्च,
2002
को यह तय हुआ कि शिलादान के लिए पहली
टोली में पूज्य परमहंस जी और अशोक जी
के साथ कुछ
25
लोग चलेंगे। शिलादान होने के पश्चात
25-25
की टोलियों में सभी को जन्मभूमि के
दर्शनों के लिए भेजा जाएगा,
भले ही रात्रि के
12.00
ही क्यों न बज जाए।
o
15
मार्च,
2002
को परमहंस जी ने कार्यशाला में शिलाओं
का पूजन किया। शिलाएँ जैसे ही आगे
बढ़ीं,
भीड़ एकत्रित हो गई और जैसे-जैसे
शिलाएँ आगे चलती गईं,
भीड़ बढ़ती ही गई। अनियंत्रित भीड़ को
नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बल
प्रयोग करना पड़ा।
o
15
मार्च,
2002
को एक समाचार फैजाबाद के कमिश्नर के
वक्तव्य के रूप में छपा कि वे आयुक्त
के रूप में शिलाएँ प्राप्त करेंगे
जन्मभूमि के रिसीवर के रूप में नहीं।
यह बात नितान्त आपत्तिजनक थी। अतः यह
निर्णय हुआ कि शिलाएं भारत सरकार के
अयोध्या सेल के प्रमुख को दी जाएगी।
उनके दिल्ली से आने में देरी हो जाने
से जनता की उत्तेजना चरम पर पहुँच गई
और आशंका होने लगी कि कहीं
2
नवम्बर,
1990
की पुनरावृत्ति न हो जाए। फैजाबाद के
कमिश्नर ने जनता को दर्शन करने के लिए
जाने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। सरकार
की यह वायदा खिलाफी थी।
o
अन्ततोगत्वा
15
मार्च,
2002
को भारत सरकार के अयोध्या सेल के
प्रमुख शत्रुघ्न सिंह ने शिलादान
स्वीकार किया।
o
16
मार्च,
2002
को प्रातः लोग दर्शन के लिए आए किन्तु
रोका गया। अयोध्या के विधायक
प्रतिबन्धों के विरुद्ध अनशन पर बैठ
गए। इसी दिन अशोक जी ने गृहमंत्री को
फोन से सूचित किया कि
24
घण्टे में रेलगाड़ियों और बसों का
आवागमन प्रारम्भ नहीं हुआ तो वे भी
अनशन पर बैठ जाएंगे।
o
17
मार्च,
2002
को रात्रि को राजनाथ सिंह श्री अशोक
जी से मिलने आए। सरकार दबाव में आई और
यातायात व्यवस्था पूर्ववत हो गई।
धीरे-धीरे अर्द्ध सैनिक बल भी वापस
चले गए।
o
25
अप्रैल,
2002
को दोपहर बाद जगद्गुरु शंकराचार्य
स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी ने
अयोध्या आकर मुसलमान नेताओं से बातचीत
की।
o
26
अप्रैल,
2002
को प्रेस कान्फ्रेन्स हुई। तत्पश्चात
वे सन्तों से मिले। सन्त अपने पूर्व
मत पर दृढ़ रहे। बातचीत समाप्त हो गई।
शंकराचार्य जी वापस चले गए।
o
31
मई,
2002
को पूर्णाहुति से पूर्व
58
मजिस्ट्रेट सुरक्षा के बहाने बुलाए
गए। अखबारों के माध्यम से प्रशासन ने
पुनः आतंक का वातावरण बनाया।
o
1
जून,
2002
को आयोजित सार्वजनिक सभा में
1000
सन्त और
4000
रामसेवक उपस्थित रहे।
o
2
जून,
2002
को सरयू जी में अवभृथ स्नान किया गया।
इसी दिन
100
दिवसीय यज्ञ सम्पूर्ण हुआ।
(
समस्त तथ्य साभार विहिप) |