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श्रीरामजन्मभूमि संघर्ष की प्रमुख तिथियां

........क्या हैं राम मन्दिर आन्दोलन से जुड़ी खास-खास तारीखें

Publised on : 06.11.2019    Time 22:28     Tags: SRI RAMJANMBHOOMI ANDOLAN HISTORY

 

महत्त्वपूर्ण तिथियां

 

o   11 मई, 1998 को बाबरी मस्जिद मूवमेंट समन्वय समिति के संयोजक सैयद शहाबुद्दीन ने कहा कि उसे विवादित स्थल के करीब मन्दिर निर्माण में कोई आपत्ति नहीं है।

o   21 मई, 1998 को उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने सी.बी.आई. के विशेष न्यायाधीश जे. पी. श्रीवास्तव को निर्देश दिया कि वह अगस्त के महीने में आरोपियों के खिलाफ आरोप तय कर दें।

o   25 मई, 1998 को विशेष अदालत ने 10 अगस्त की तारीख निश्चित कर दी और श्री लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी तथा उमा भारती सहित 49 लोगों के खिलाफ आरोप तय कर दिए।

o   7 जून, 1998 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि चूंकि अयोध्या मुद्दा अदालत में है, इसलिए सरकार किसी को भी धर्मस्थल की पवित्रता का उल्लंघन नहीं करने देगी।

o   10 जून, 1998 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह ने स्पष्ट रूप में कहा कि संघ अयोध्या मामले को लेकर किसी प्रकार का टकराव नहीं चाहता। हाँ, मन्दिर अयोध्या में हर हाल में उसी स्थान पर बनाया जाएगा।

o   6 जुलाई, 1998 को केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल ने केन्द्र सरकार से आग्रह किया कि वह मन्दिर स्थल को श्रीराम जन्मभूमि न्यास को सौंप दे जिससे वहाँ मन्दिर बनाया जा सके।

o   3 दिसम्बर, 1998 को अयोध्या में विवादित स्थल पर दैनिक पूजा-अर्चना के अलावा बाकी अन्य कार्यक्रमों पर उत्तर प्रदेश सरकार ने रोक लगा दी।

o   15 दिसम्बर, 1998 को ढाँचा गिराने में शामिल 49 लोगों के आरोप तय करने के लिए विशेष अदालत ने 20 जनवरी, 1999 की तारीख रखी।

o   1 फरवरी, 1999 को अयोध्या के दिगम्बर अखाड़े में आयोजित सन्त सम्मेलन ने श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण की प्रतिबद्धता दोहराते हुए तीन प्रस्ताव पारित किए।

o   4 जून, 1999 को लखनऊ में विशेष अदालत के न्यायाधीश ने श्री लालकृष्ण आडवाणी, एम. एम. जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और बाल ठाकरे को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया। अदालत ने कुल 48 लोगों को तलब किया।

o   7 दिसम्बर, 1999 को प्रधानमंत्री वाजपेयी ने लोकसभा में गृहमंत्री आडवाणी सहित तीन केन्द्रीय मंत्रियों के इस्तीफे की माँग को नामंजूर कर दिया। तीनों मंत्रियों, यथा- आडवाणी, जोशी और उमा भारती ने अपने इस्तीफे प्रधानमंत्री को सौंप दिए थे।

o   21 जून, 2000 को लिब्राहन आयोग ने ढाँचा गिराए जाने में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया और उनसे 20 जुलाई को पेश होने को कहा।

o   17 जुलाई, 2000 को अयोध्या प्रकरण के विशेष न्यायाधीश एस. के. शुक्ल ने लखनऊ में बाबरी मस्जिद ध्वंस के आपराधिक वाद में 47अभियुक्तों की हाजिरी माफी का आवेदन खारिज करते हुए लालकृष्ण आडवाणी, बाल ठाकरे, कल्याण सिंह सहित सभी अभियुक्तों को 15 सितम्बर, 2000 को आरोप तय किए जाने हेतु व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया।

o   27 जुलाई, 2000 को अयोध्या ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को आयोग के समक्ष पेश होने के वास्ते जमानती वारण्ट जारी किया।

o   16 सितम्बर, 2000 को लखनऊ में विशेष सत्र न्यायाधीश एस. के. शुक्ल ने सुनवाई की तिथि 15 नवम्बर, 2000 रखी।

o   3 अक्टूबर, 2000 को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने लम्बित मामलों के स्थानान्तरण के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की।

o   31 अक्टूबर, 2000 को भाजपा ने कहा कि श्रीराम मन्दिर निर्माण उनकी पार्टी के कार्यक्रम में नहीं है। इसलिए इस मामले में किसी को सहयोग देने का सवाल ही नहीं उठता।

o   9 नवम्बर, 2000 को बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने सरकार से मस्जिद के पुनर्निर्माण की अपील की। उसने संघ परिवार द्वारा दिए जा रहे बयानों पर रोक लगाने की भी माँग की।

o   3 दिसम्बर, 2000 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार विवादित ढाँचे के बारे में कुछ नहीं कर सकती।

o   6 दिसम्बर, 2000 को प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा कि अयोध्या में मन्दिर निर्माण राष्ट्रीय भावनाओं का प्रकटीकरण है। भाजपा अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण ने कहा कि पार्टी 6 दिसम्बर, 1992 को हुए बाबरी मस्जिद के ध्वंस को लेकर किसी भी समुदाय से माफी नहीं माँगेगी, क्योंकि उसने कोई गलती नहीं की है।

o   12 दिसम्बर, 2000 को केन्द्र सरकार ने अयोध्या मुद्दे पर नियम 184 के तहत लोकसभा में चर्चा कराने की सहमति दे दी, जिसको लेकर 7 दिनों से लोकसभा में गतिरोध बना हुआ था।

o   19, 20, 21 जनवरी, 2001 को प्रयाग में महाकुम्भ के अवसर पर आयोजित नवम् धर्मसंसद में सन्त समाज ने केन्द्र सरकार का आह्वान करते हुए 12 मार्च, 2002 तक श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण के मार्ग में आने वाली सभी प्रकार की बाधाएँ दूर करने को कहा। साथ ही यह भी कहा कि इसके बाद किसी भी दिन मन्दिर निर्माण का कार्य प्रारम्भ कर दिया जाएगा और अयोध्या से दिल्ली तक की सन्त चेतावनी यात्रा का आयोजन किया जाएगा।

o   20-21 जून, 2001 को श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण समिति ने अपनी दिल्ली की बैठक में जन-प्रतिनिधियों से मिलकर उन्हें श्रीराम जन्मभूमि से सम्बंधित सभी तथ्य समझाने का निर्णय लिया।

o   प्रधानमंत्री ने लखनऊ में पत्रकारों से कहा कि 12 मार्च, 2002 तक श्रीराम जन्मभूमि का हल खोज लिया जाएगा। इसी प्रकार के वाक्य प्रधानमंत्री द्वारा 10 अक्टूबर को पूज्य महंत परमहंस रामचन्द्रदास जी से भी भेंट के समय दिल्ली में कहे गए।

o   श्रीराम जन्मभूमि पर दर्शनार्थियों को श्रीरामलला के सार्थक दर्शन कराने के उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के स्पष्ट आदेशों के बावजूद ऐसा नहीं हो रहा था। 17 अक्टूबर, 2001 को श्री अशोक सिंहल एवं श्री श्रीशचन्द्र दीक्षित लोहे की बेरिकेटिंग को पार कर गर्भगृह के बाहर दर्शन करने के लिए कुछ फीट अन्दर चले गए, इसे अपराध माना गया।

o   21 जनवरी, 2002 को अयोध्या से चलकर लखनऊ, कानपुर और इटावा होते हुए 26 जनवरी, 2002 रात्रि तक सन्त यात्रा दिल्ली पहुँची। पूरे मार्ग में स्थान-स्थान पर सन्तों के स्वागत और प्रवचनों के कार्यक्रम होते रहे। इस यात्रा में 6500 सन्त सम्मिलित हुए।

o   27 जनवरी, 2002 को रामलीला मैदान, दिल्ली में बृहद् धर्मसभा का आयोजन हुआ। यह धर्मसभा 4 अप्रैल, 1991 को दिल्ली के वोट क्लब पर हुए विशालतम प्रदर्शन के समान ही ऐतिहासिक रही।

o   27 जनवरी, 2002 को दोपहर को सन्तों के प्रतिनिधि मण्डल ने प्रधानमंत्री से भेंट की। प्रधानमंत्री ने सन्तों से कह दिया कि उन्होंने 12 मार्च तक श्रीराम जन्मभूमि का हल निकालने के लिए कोई वायदा नहीं किया था।

o   10 फरवरी, 2002 को अयोध्या में पूज्य महंत परमहंस रामचन्द्रदास जी ने घोषणा कर दी कि वे मन्दिर निर्माण के लिए क्रेन से पत्थर ले जाएंगे।

o   15 फरवरी, 2002 को परमहंस जी ने प्रधानमंत्री को न्यास की भूमि को वापस करने के लिए पत्र लिखा।

o   17 फरवरी, 2002 को वसन्त पंचमी के दिन रामघाट स्थित कार्यशाला में शिलाओं का पूजन हो जाने के बाद श्रीराम महायज्ञ प्रारम्भ हुआ। यह यज्ञ 24 फरवरी, 2002 तक चला।

o   24 फरवरी, 2002 को प्रातः 8000 रामसेवकों ने यज्ञ में पूर्णाहुति दी।

o   25 फरवरी को 6000 की संख्या में रामसेवक और आ गए।

o   26 फरवरी, 2002 से रामसेवकों के अयोध्या जाने वाले मार्ग प्रशासन द्वारा अवरुद्ध किए जाने लगे। अयोध्या की सीमाएँ सील कर दी गईं। वाहनों को रोका जाने लगा।

o   27 फरवरी, 2002 को गोधरा में रेल के डिब्बे में बर्बरतापूर्ण ढंग से 57 से अधिक रामसेवकों को जला डाला गया।

o   27 फरवरी, 2002 को गठबन्धन सरकार ने श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन को पूरी शक्ति से कुचलने की घोषणा की। अयोध्या में 20,000 अर्द्ध सैनिक बलों की तैनाती कर दी गई।

o   3 मार्च, 2002 को अयोध्या में चलाए जा रहे दमन चक्र की जानकारी लिखित रूप में केन्द्रीय गृहमंत्री को पहुँचाई गई किन्तु दमन चक्र बढ़ता ही गया।

o   3 मार्च, 2002 को श्री अशोक सिंहल ने जनता से देश में शान्ति बनाए रखने और देश की आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा के लिए मिल रही चुनौती के प्रति सजग रहने की अपील की।

o   4 मार्च, 2002 को कांची कामकोटि पीठ के पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती ने श्रीराम जन्मभूमि के हल के संदर्भ में प्रयास शुरू किए।

o   4 मार्च, 2002 को दिल्ली में सर्वश्री पूज्य परमहंस जी, स्वामी प्रकाशानन्द जी (बोस्टन), अवेद्यनाथ जी, नृत्यगोपाल दास जी, सत्यमित्रानन्द जी, युगपुरुष परमानन्द जी, स्वामी चिन्मयानन्द जी, रामविलासदास वेदान्ती जी, सन्तोषी माता जी आदि सन्त एकत्रित हुए। केन्द्र सरकार से कहा गया कि अयोध्या में खड़ी सभी बाधाओं को हटाया जाए, अयोध्यावासियों पर लगाए गए प्रतिबन्ध हटाए जाएं। अविवादित भूमि पर 15 मार्च को निर्माण सामग्री ले जाने की अनुमति दी जाए। 2 जून, 2002 के पूर्व ही अविवादित भूमि श्रीराम जन्मभूमि न्यास को हस्तान्तरित कर दी जाए और न्यायालय का निर्णय दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर शीघ्र कराया जाए।

o   7 मार्च, 2002 को उत्तर प्रदेश के 14 सांसद दिल्ली में एकत्रित हुए। स्वामी चिन्मयानन्द जी पैड पर उन्होंने अपनी अयोध्या की पीड़ा को लिखित रूप प्रदान करके प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा।

o   7 मार्च, 2002 को असलम भूरे नामक व्यक्ति ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की कि अयोध्या में 15 मार्च को कोई शिलादान न हो।

o   8 मार्च, 2002 को प्रधानमंत्री जी की ओर से पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती को रात्रि भोज पर मौखिक आश्वासन दिए गए कि अयोध्या में सभी बाधाएँ हटा ली जाएंगी। 15 मार्च, 2002 का कार्यक्रम होने दिया जाएगा, 2 जून तक अविवादित भूमि न्यास को दे दी जाएगी। प्रधानमंत्री के आश्वासनों से सभी आश्वस्त हो गए।

o   8 मार्च, 2002 को केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री आई. डी. स्वामी अयोध्या पहुँचे। वे अनेक जगह गए और अनेक लोगों से मिले। उनके रुख से आशा बंधी कि राहत मिलेगी किन्तु सरकारी दमन चक्र कठोर से कठोरतम होता गया।

o   11 मार्च, 2002 को प्रातः पूज्य महंत रामचन्द्रदास परमहंस जी अखाड़ा छोड़कर कार्यशाला में पहुँच गए और 15 मार्च तक वहीं रहने की घोषणा कर दी क्योंकि अखाड़े में उन्हें अपनी नजरबन्दी का अन्देशा था।

o   12 मार्च, 2002 को दिन में कार्यशाला पर ताला डाल दिया गया। चारों ओर अर्द्ध सैनिक बल तैनात कर दिया गया। परमहंस जी ने घोषणा कर दी कि यदि मुझे यहाँ से नहीं निकलने दिया तो मैं रसायन खाकर शरीर त्याग दूँगा। उनका कहना था कि मैं अपनों से ठगा गया हूँ। 92 वर्ष की आयु में अपनों से नहीं लड़ सकता।

o   12 मार्च, 2002 को शिवरात्रि थी। अयोध्या में कोई भी पूजा करने के लिए मन्दिर न आ सका। रात्रि को पुलिस महानिरीक्षक सरदार हरभजन सिंह की पहल पर शिवजी की बारात निकली। कहीं, कोई अशान्ति नहीं फैली।

o   13 मार्च, 2002 को सर्वोच्च न्यायालय ने 15 मार्च के शिलादान पर रोक लगा दी किन्तु लिखित में आदेश कुछ और ही कह रहा था।

o   14 मार्च, 2002 को सर्वोच्च न्यायालय ने बिना किसी दूसरे के प्रार्थना किए स्वयं ही अपना निर्णय पुनः लिखाया। न्यायपालिका के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व मानी जाएगी।

o   समाचार पत्रों के माध्यम से अयोध्या के बारे में देशभर में आतंक का वातावरण खड़ा कर देने के बाद भी रामसेवक अयोध्या आते रहे और घर वापस जाते रहे। 14 मार्च को 130 कि. मी. पैदल चलकर पुणे की एक माता अयोध्या पहुँची थी। इसी दौरान ग्रामीण जनता का इस कार्य में पूरा सहयोग रहा।

o   14 मार्च, 2002 को सन्तों को अयोध्या बुलाया गया किन्तु साधनों के अभाव में वे न पहुँच सके। कुछ लखनऊ तक पहुँचे भी तो उन्हें अयोध्या की सीमा पर ही रोक दिया गया। अयोध्या एक जेल में परिवर्तित हो चुकी थी। परमहंस जी की शरीर त्याग की घोषणा से ही सरकार कुछ हिली।

o   14 मार्च, 2002 को लखनऊ से एक अधिकारी आए और महंत जी से कई बार मिले। रात्रि तक यह स्पष्ट हो गया कि सरकार शिलादान स्वीकार करेगी। शिलादान महंत जी के इच्छित स्थान पर होगा।

o   15 मार्च, 2002 को यह तय हुआ कि शिलादान के लिए पहली टोली में पूज्य परमहंस जी और अशोक जी के साथ कुछ 25 लोग चलेंगे। शिलादान होने के पश्चात 25-25 की टोलियों में सभी को जन्मभूमि के दर्शनों के लिए भेजा जाएगा, भले ही रात्रि के 12.00 ही क्यों न बज जाए।

o   15 मार्च, 2002 को परमहंस जी ने कार्यशाला में शिलाओं का पूजन किया। शिलाएँ जैसे ही आगे बढ़ीं, भीड़ एकत्रित हो गई और जैसे-जैसे शिलाएँ आगे चलती गईं, भीड़ बढ़ती ही गई। अनियंत्रित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा।

o   15 मार्च, 2002 को एक समाचार फैजाबाद के कमिश्नर के वक्तव्य के रूप में छपा कि वे आयुक्त के रूप में शिलाएँ प्राप्त करेंगे जन्मभूमि के रिसीवर के रूप में नहीं। यह बात नितान्त आपत्तिजनक थी। अतः यह निर्णय हुआ कि शिलाएं भारत सरकार के अयोध्या सेल के प्रमुख को दी जाएगी। उनके दिल्ली से आने में देरी हो जाने से जनता की उत्तेजना चरम पर पहुँच गई और आशंका होने लगी कि कहीं 2 नवम्बर, 1990 की पुनरावृत्ति न हो जाए। फैजाबाद के कमिश्नर ने जनता को दर्शन करने के लिए जाने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। सरकार की यह वायदा खिलाफी थी।

o   अन्ततोगत्वा 15 मार्च, 2002 को भारत सरकार के अयोध्या सेल के प्रमुख शत्रुघ्न सिंह ने शिलादान स्वीकार किया।

o   16 मार्च, 2002 को प्रातः लोग दर्शन के लिए आए किन्तु रोका गया। अयोध्या के विधायक प्रतिबन्धों के विरुद्ध अनशन पर बैठ गए। इसी दिन अशोक जी ने गृहमंत्री को फोन से सूचित किया कि 24 घण्टे में रेलगाड़ियों और बसों का आवागमन प्रारम्भ नहीं हुआ तो वे भी अनशन पर बैठ जाएंगे।

o   17 मार्च, 2002 को रात्रि को राजनाथ सिंह श्री अशोक जी से मिलने आए। सरकार दबाव में आई और यातायात व्यवस्था पूर्ववत हो गई। धीरे-धीरे अर्द्ध सैनिक बल भी वापस चले गए।

o   25 अप्रैल, 2002 को दोपहर बाद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी ने अयोध्या आकर मुसलमान नेताओं से बातचीत की।

o   26 अप्रैल, 2002 को प्रेस कान्फ्रेन्स हुई। तत्पश्चात वे सन्तों से मिले। सन्त अपने पूर्व मत पर दृढ़ रहे। बातचीत समाप्त हो गई। शंकराचार्य जी वापस चले गए।

o   31 मई, 2002 को पूर्णाहुति से पूर्व 58 मजिस्ट्रेट सुरक्षा के बहाने बुलाए गए। अखबारों के माध्यम से प्रशासन ने पुनः आतंक का वातावरण बनाया।

o   1 जून, 2002 को आयोजित सार्वजनिक सभा में 1000 सन्त और 4000 रामसेवक उपस्थित रहे।

o   2 जून, 2002 को सरयू जी में अवभृथ स्नान किया गया। इसी दिन 100 दिवसीय यज्ञ सम्पूर्ण हुआ।

 ( समस्त तथ्य साभार विहिप)

 
 
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