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आज अधीश जी की पुण्य तिथि है। वर्ष 2007 की 5 जुलाई ( गुरुवार) । इसी दिन दिल्ली में झण्डेवाला स्थित संघ कार्यालय में अधीश जी हम सबसे दूर चले गए। अधीश जी को गए आज तेरह वर्ष व्यतीत हो गए। किन्तु, उनकी स्मृति से एक क्षण भी हम सबके लिए अलग नहीं हुआ जाता। इस लखनऊ में और समूचे उत्तर प्रदेश में जहां-जहां भी अधीश
ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के नाते दायित्य का निर्वहन किया, वहां उनके स्नेही कार्यकर्ता और सामान्य स्वयंसेवक हर समय चर्चा करते मिल जाएंगे।
अधीश जी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनके अन्दर आत्मीयता का असीमित भाव था। एक बार जो उनसे मिल लेता था, वह उनका हो जाता। किसी के साथ भेदभाव नहीं, कोई ऊंच - नीच नहीं। छोटा हो या बड़ा, सबका समान रूप से आदर करते थे। हाथ जोड़कर अभिभावदन करना, कोई मिलने आया तो उसे द्वार के बाहर तक विदा अवश्य करते थे। चाहे वह व्यक्ति दैनिक रूप से ही
विश्व संवाद केन्द्र पर क्यों न आता हो। हम सब कार्यकर्ता के रूप में आने वालों को भी हर रोज जाते समय दरवाजे तक आकर विदा करते थे।
सदैव दूसरे की चिंता
स्वयं के प्रति उनका हमेशा उपेक्षा का भाव रहा। कभी अपने खाने, पहनने या स्वास्थ्य की चिंता नहीं की। किन्तु दूसरों का पूरा ध्यान रखते थे। जितने लोग उस समय प्रचार विभाग और विश्व संवाद केन्द्र के साथ जुड़े थे। सबकी पूरी चिंता करते थे। सबके परिवार की कुशलक्षेम की जानकारी रखते थे। कार्यकर्ता की आवश्यकता क्या है? उसकी क्या जरूरत है अथवा
क्या सहयोग चाहिए ? इसको वह बगैर कहे जान लेते थे। यही वजह है कि उनके व्यक्तिगत जुड़ाव के कारण लखनऊ के तत्कालीन डी-2, पार्क रोड़-6 विधायक निवास स्थित विश्व संवाद केन्द्र में दिनभर लोगों का तांता लगा रहता था।
आदर्श विश्व संवाद केन्द्र की रचना
अधीश जी पश्चिम उत्तर प्रदेश से 1997 में लखनऊ आये थे। उन्हें क्षेत्र का सह प्रचार प्रमुख बनाया गया था। तब प्रचार प्रमुख श्री वीरेश्वर द्विवेदी थे। कुछ समय बाद अधीश जी प्रचार प्रमुख बने। उस समय उत्तर प्रदेश में एक ही क्षेत्र था। दो क्षेत्रों पूर्व और पश्चिम की रचना बाद में हुई। विश्व संवाद केन्द्र पर उनका केन्द्र तय हुआ। यहां आकर
उन्होंने अनेक गतिविधियां आरम्भ कीं। उन्होंने विश्व संवाद केन्द्र के लिए व्यापक कल्पना की। बृहद स्तर पर इसके विस्तार के लिए नए-नए लोगों को जोड़ा। वे जो भी नई गतिविधि शुरु करते उसके लिए व्यक्ति की तलाश करते थे, और फिर व्यक्ति पर पूरा विश्वास करके काम में लगाते थे। यही वजह थी कि अनेक नए लोग भी जुड़े। नए पत्रकारों या पत्रकारिता में
आने के लिए प्रयासरत युवाओं को वे प्रेरित करते, उन्हें सहयोग करते थे। आज उस टोली के आधा दर्जन से अधिक पत्रकार जो प्रमुख समाचार माध्यमों में सेवारत हैं, अधीश जी की प्रेरणा और प्रोत्साहन से आगे बढ़े हैं। ये पत्रकार राजधानी के प्रमुख समाचार पत्रों अमर उजाला, हिन्दुस्तान, नव भारत टाइम्स, दैनिक जागरण आदि में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत
हैं। कई पत्रकार टीवी चैनल में भी गए।
विश्व संवाद केन्द्र बुलेटिन
विश्व संवाद केन्द्र की भूमिका क्या हो? उसकी रचना और संरचना कैसी हो, गतिविधियां क्या-क्या हो सकती हैं? इसका माडल उन्होंने लखनऊ विश्व संवाद पर खड़ा करके दिखाया। लखनऊ विश्व संवाद केन्द्र उनके मार्गदर्शन में देश के लिए कुछ ही समय में आदर्श केन्द्र बन गया था। अधीश जी जब लखनऊ विश्व संवाद केन्द्र पर आये और इसकी जिम्मेदारी उन्हें मिली
तो यहां से एक बुलेटिन जारी होता था। यह बुलेटिन था ‘मीडिया फोरम फीचर्स’ और इसके संस्थापक संपादक वरिष्ठ पत्रकार श्री रामशंकर अग्निहोत्री थे। बुलेटिन को संपादन करने की जिम्मेदारी सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग से सेवानिवृत्त उप निदेशक जनार्दन राव पावगी (जेआर पावगी) के पास थी। कालांतर में उन्होंने इस बुलेटिन का विस्तार किया और विश्व
संवाद केन्द्र के नाम से ही साप्ताहिक बुलेटिन शुरु किया। इसका विधिवत भारत सरकार के समाचार पत्रों के रजिस्ट्रार के यहां पंजीकरण कराकर आरएनआई नम्बर प्राप्त किया। यह उत्कृष्ट बुलेटिन था। इसमें कम से कम दो सम सामयिक आलेख, एक विशेष रिपोर्ट, सप्ताह के प्रमुख समाचार, सुभाषित प्रकाशित होता था। देशभर के लगभग एक हजार से अधिक समाचार पत्रों
को यह डाक से भेजा जाता था। इस बुलेटिन में उन्होंने देशभर के प्रमुख स्तंभ लेखकों, पत्रकारों को जोड़ा था। यही कारण है कि उक्त बुलेटिन अनेक पत्र पत्रिकाओं को उपयोगी सामग्री उपलब्ध कराने का एक माध्यम बन गया था। पावगी जी के अस्वस्थ होने के बाद इस बुलेटिन को संपादित करने की जिम्मेदारी वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र भारत के पूर्व संपादक
नन्दकिशोर श्रीवास्तव को दी गई थी। वह बुलेटिन की जिम्मेदारी को अधीश जी के जाने के बाद तक निभाते रहे।
त्रैमासिक पत्रिका
विश्व संवाद केन्द्र ने महत्वपूर्ण और सामयिक विषयों पर शोध परक तथा समग्र सामग्री एकत्रित करके पाठकों और विचार परिवार तक पहुंचाने के लिए त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया था। यह पत्रिका कुछ ही समय में अत्यन्त प्रतिष्ठित हो गई थी। पत्रिका के हर अंक का विमोचन समारोह आयोजित होता था। अधीश जी ने इस पत्रिका का संपापन पांञ्चजन्य के
पूर्व सह संपादक और स्तम्भ लेखक तथा सेवानिवृत्त शिक्षक डा गौरी नाथ रस्तोगी को सौपा था। पत्रिका ने अनेक विशेषांक प्रकाशित किये। इनमें वन्देमातरम् , पर्यावरण, इस्लामिक आतंकवाद, 1857 को प्रथम स्वतंत्रता सग्राम, जल विशेषांक जैसे विषयों पर चर्चित अंक प्रकाशित किये। विश्व संवाद केन्द्र द्वारा आयोजित विशेषांक विमोचन समारोह में तत्कालीन
सरसंघचालक मा. रज्जू भैया, सर कार्यवाह श्री कु.सी. सुदर्शन, विहिप के कार्याध्यक्ष श्री अशोक सिंहल समेत अनेक गणमान्य लोग मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित हो चुके हैं।
संवाद भारती डाट काम
देश मे जब इंटरनेट को लोग जान ही रहे थे, तब अधीश जी ने सहयोगी प्रचारक और संवाद केन्द्र की व्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने निभाने वाले विजय मान को वेबसाइट शुरु करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसके लिए 1998 मे ही कम्प्यूटर, ब्राडबेण्ड इंटरनेट आदि की व्यवस्था की गई। विश्व संवाद केन्द्र को नई शताब्दी के स्वागत से पहले ही आधुनिक
संचार माध्यमों से सुसज्जित कर दिया गया था। उस समय देश में समाचार पोर्टल और वेब मीडिया ने आकार लेना ही शुरु किया था। कम ही लोग इससे परिचित थे। किन्तु अधीश जी ने इसकी उपयोगिता और महत्व को आज से 22 साल पहले ही जान और समझ लिया था। इसके लिए अधीश जी ने विजय मान के साथ मुझे भी जिम्मेदारी सौंपी थी। एक पत्रकार के नाते समाचारों के संपादन
और चयन के लिए हमने काम शुरु किया था। पांचजन्य के प्रदेश ब्यूरों प्रमुख के दायित्व के साथ साथ इस कार्य को भी हमने शुरु किया था। यह अलग तरह का अनुभव था। इसमें कम्पयूटर साइंस की उस समय पढ़ाई कर रहे छात्र विवेक मिश्र और विवेक अग्रवाल को भी जोड़ा गया। इन्हीं लोगों की लगन और परिश्रम से तैयार हुआ था। पहला समाचार पोर्टल ‘संवाद भारती डाट
काम’ www.samvadbharti.com इस पोर्टल को न्यूज एजेंसी के रूप में विकसित करने की योजना बनी थी। काम भी शुरु हो गया था। इसके लिए संवाददाओं की टीम अधीश जी ने जुटा कर दे दी थी। ये सब प्रशिक्षु पत्रकार थे, जिन्होंने लगन से काम किया। आज यही पत्रकार प्रमुख समाचार पत्रों में कार्यरत हैं। संवाद भारती डाट काम का नामकरण वरिष्ठ पत्रकार और
दैनिक जागरण के कार्यकारी संपादक विष्णु त्रिपाठी के डालीबाग स्थित तत्कालीन आवास पर तय हुआ। यह नाम विष्णु जी ने ही सुझाया था। नाम तय करने के लिए अधीश जी, विजय जी और मैं स्वयं विष्णु जी के आवास पर गए थे। वर्ष 2000 में संवाद भारती देश के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले और पोर्टल में शामिल हो गया था।
पत्रकार प्रशिक्षण
विश्व संवाद केन्द्र को अधीश जी ने पत्रकारों के प्रशिक्षण का भी केन्द्र बनाया था। प्रतिवर्ष कम से कम दो बार पत्रकार प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित की जाती थी। इसमें नये पत्रकारों के साथ पत्रकारिता में रुचि रखने वाले छात्रों को भी आमंत्रित किया जाता था। साथ ही सम विचार के संगठनों के प्रचार प्रमुख या मीडिया प्रभारी भी प्रशिक्षण के
लिए बुलाये जाते थे। इसी क्रम में जब इंटरनेट का दौर शुरु हो रहा था तो पत्रकारों को इसके प्रशिक्षण और तकनीक की जानकारी की आवश्यकता अनुभव हुई। इसके लिए साइबर जर्नलिज्म कार्यशालाएं आयोजित की गईं। पार्क रोड़ स्थित विश्व संवाद केन्द्र के सामने बने सभागार में पहली साइबर जर्नलिज्म कार्यशाला उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (उपजा) के
साथ मिलकर आयोजित की गई थी। उस समय मेरे ऊपर उपजा के प्रदेश महामंत्री की जिम्मेदारी थी। लखनऊ जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (एलजेए) के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार हेमेन्द तोमर थे। हम दोनों ने विजय जी के साथ मिलकर मिलकर कार्यशाला आयोजित की थी। इस कार्यशाला में भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) लखनऊ के तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रो. भरत भास्कर का विशेष
सहयोग रहा था।
विश्व संवाद केन्द्र दिनभर पत्रकारों के आने जाने, बैठने, चर्चा करने का एक ऐसा केन्द्र बन गया था। जहां जाए बगैर दिनचर्या पूरी होती ही नही थी।
अधीश जी ही लाये थे लखनऊ
प्रतिदिन अधीश जी के साथ चर्चा और उनका हर विषय पर स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ मार्गदर्शन मिलता था। उनकी विशेषता थी कि कितनी भी देर उनके साथ बैठे रहिये कभी ऊबते नहीं थे। अधीश जी के साथ लगभग छह साल का साथ रहा। प्रतिदिन उनसे मिलना, साथ काम करना ऐसा अनुभव है, जो हर क्षण याद आता है। मैं फरवरी 1998 में अमर उजाला बरेली की नौकरी छोड़ कर
पाञ्चजन्य के उत्तर प्रदेश विशेष संवाददाता और ब्यूरो प्रमुख के रूप में लखनऊ आया था। मुझे लखनऊ लाने में स्व. ओमप्रकाश जी ( तत्कालीन क्षेत्र प्रचारक), अधीश जी, संपादक श्री तरुण जी की विशेष भूमिका थी। अधीश जी 2006 तक लखनऊ विश्व संवाद केन्द्र पर रहे। वे अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख होने के बाद दिल्ली चले गए थे। इसके पहले पूरे समय वह
पार्क रोड स्थित विश्व संवाद केन्द्र को ही अपना केन्द्र रखा। हालांकि तब तक जियामऊ गोमती नगर में विश्व संवाद केन्द्र का अपना भव्य और विशाल भवन बनकर तैयार हो गया था। लेकिन, उन्होंने अपना केन्द्र नहीं बदला। इस नए भवन को बनाने की भी योजना और प्रयास अधीश जी का ही है। इसके लिए संसाधन जुटाने और निर्माण में ओमप्रकाश जी ने विशेष रुचि ली।
नमन् अधीश जी
तेरह साल पहले आज के दिन जब अधीश जी हमसे विदा ले गए तो एक ऐसा कष्ट हुआ जिसकी वेदना जीवनभर रहेगी। उन्होंने रोग के साथ पूरे जीवट के साथ सघर्ष किया और एक दार्शनिक योद्धा की तरह मृत्यु का भी स्वागत करके वरण किया। किन्तु हम सबको तो उनका जाना एक अपूरणीय और व्यक्तिगत क्षति दे गया। ऐसी महान आत्मा की इहलोक स्मृतियों को बार-बार नमन्।
लेखकः स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
संपर्कः 3/11 आफीससर्स कालोनी, कैसरबाग, लखनऊ-226001 |