|
|
|
|
|
|
|
|
|
  'अन्ना'' केहि विधि जीतहॅु रिपु बलवाना  
  Article / Narendra Singh Rana आलेख / नरेन्द्र सिंह राना  
 

Pubilsed on Dated: 2011-08-15 , Tme: 22:51 ist,                          Upload on Dated  : 2011-08-15 , Tme: 22:51 ist, 

'अन्ना'' केहि विधि जीतहॅु रिपु बलवाना

नरेन्द्र सिंह राणा

'युगों-युगों से न्याय और अन्याय, धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, साधु-असाधु, विष-अमृत व जीवन-मृत्यु के बीच अनवरत संघर्ष होता आया है। आज भी हो रहा है। देश काल परिस्थिति के अनुसार पात्र बदल जाते हैं परन्तु परिणाम कभी नहीं बदलता वह अटूट, अटल व अडिग होता है। सत्य की जीत सदा हुई है और सदा होगी यह उद्धोष स्वयं परमात्मा श्री कृष्ण ने अपने मुखारबिन्द से अपने अन्नन्य भक्त अर्जुन को महाभारत के धर्म युध्द में बताते हुए कहा कि ''यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत-अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम-परित्राणाम साधूनां विनाशयच दुष्कृताम्-धर्म संस्थापनार्याय सम्भवमि युगे युगे'' अर्थात हे भारत जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृध्दि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हॅू अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। साधु पुरूषों की उध्दार करने के लिए पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए युग-युग में प्रकट हुआ करता हॅू। अत: सत्य की, धर्म की, न्याय की लड़ाई लड़ने वालों की विजय मेरे आशीर्वाद से होती है। आज राष्ट्रप्रेम अन्ना के रूप में शरीर धारण करके हमारे सामने आया है वहीं राष्ट्र की साख को रसातल में पहुंचाने वाली कांग्रेसी सत्ताा (यूपीए-2) की सरकार देश की दुश्मन बनकर सामने आई है। वर्तमान सत्ता भ्रष्टाचार, काला धन, महंगाई, अपराध व आतंक को संरक्षण देने तथा देशप्रेमियों का लांछित करते-करते स्वयं के ही बुने मकड़जाल में फंस चुकी है। सुशासन हेतु नाना रूप से जंग छिड़ चुकी है। देशप्रेमी अन्ना और देश को धोखे में रखने वाली सरकार के मध्य भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कठोर कानून बनाने वाले प्राविधान जनलोकपाल और सरकारी लोकपाल के मध्य जंग जारी है। एक ओर आजाद भारत के इतिहास की सबसे महाभ्रष्ट सरकार है दूसरी ओर स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित सहज, सरल, सौम्य अन्ना हजारे हैं। अन्ना की न कोई पार्टी है न ही वह किसी बड़े घराने से तालूक रखने वाले और न ही किसी पार्टी का सहयोग माँग कर अपना आंदोलन चला रहे हैं। सरकार ने चार जून को काला धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने तथा भ्रष्टाचारियों को कठोर सजा मिले इस मांग को लेकर योग गुरू स्वामी रामदेव उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण सहित उपस्थित तीस हजार निहत्थे महिला, पुरूष, नौजवान, देशप्रेमियों को आधी रात को ऑसू गैस, लाठी डंडा चलाकर जो दुस्साहस दिखाया और बाद में उसको प्रधानमंत्री सहित सभी ने जायज भी ठहराया। स्वामी रामदेव के साथ केन्द्र सरकार ने पहले धोखा किया अब उनके उत्पीड़न पर उतारू है। सरकार के मुंह खून लग चुका है वह अंहकार की भाषा बोल रही है। 16 अगस्त को अन्ना ने जनलोकपाल को स्वीकार करने के लिए अनशन करने का एलान किया हुआ है। सरकार उत्पीड़न पर उतारू है। अन्ना पर घटिया आरोप लगाने का दौर प्रारम्भ कर दिया है आगे सरकार किस हद तक जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता है। यह लड़ाई एक गांव के मन्दिर के 8 गुना 10 के छोटे से कमरे में रहने वाले किशन राव बाबू (अन्ना हजारे)े तथा महलों में रहने वाले, अकूत सम्पत्ति के मालिकों के मध्य छिड़ी है। आम देशवासी अन्ना हजारे के साथ है। अभी हाल ही में भ्रष्टाचार के कड़े कानून को लेकर नई दिल्ली के चाँदनी चौक लोकसभा क्षेत्र तथा कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के अमेठी संसदीय क्षेत्र में जो सर्वे हुआ उसमें 99प्रतिशत लोगों ने अन्ना के जनलोकपाल का समर्थन किया। यही सर्वे यदि पूरे भारत में कराया जाए तो परिणाम अमेठी व चाँदनी चौक जैसा ही आएगा। हम सभी देशवासी 74 वर्षीय अन्ना के कठोर अनशन करने के कारण तथा सरकार की ओछी चालों से चिन्तित हैं। त्रेता युग में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम को सेना के रूप में बानर, भालुओं तथा संसाधनों के बिना व रथ व कवच आदि से रहित देखकर विभीषण चिन्नित हो उठा और प्रभु से कहने लगा उसको महान् सन्त परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में लिखा कि हे नाथ ''दसहु दिसि जय जयकार करि निज निज जोरि जानी-भीर वीर इत रामहि उत रावनहि बखानी'' ''रावण रथी बिरथ रघुवीरा-देखि विभीषण भयऊ अधीरा- अधिक प्रीति मन भा संदेहा- बंदि चरण कह सहित सनेहा'' ''सुनहु सखा कह कृपानिधाना जेहि जय होहि सो स्यंदन आना'' 'सौरज धीरज जेहि रथ चाका-सत्य सील दृढ ध्वजा पताका-बल विवेक दम परहित घोड़े-क्षमा, कृपा, समता रजु जोड़े' 'ईश भजनु सारथी सुजाना-बिरती चर्म संतोष कृपाना-दान परसु बुध्दि शक्ति प्रचंडा-बर विग्यान कठिन को दंडा' 'अमल अचल मन त्रोन समाना-सम यम नियम सीलमुख नाना' 'कवज अभेद बिप्र गुरू पूजा-ऐहि सम विजय उपाय न दूजा' 'सखा धर्ममय अस रथ जाके- जीतन कहं न कतहूं रिपु ताके' 'महाअजय संसार रिपुजीत सकइ सो वीर-जाके अस रथ होइ-दृढ सुनहु सखा मतिधीर' अर्थात दोनों ओर से योध्दा जय-जयकार करके अपनी-अपनी जोड़ी चुनकर इधर श्रीरघुनाथ जी और उधर रावण का बखान करके भिड़ गए। रावण को रथ पर और श्रीरघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया कि वे बिना रथ के रावण को कैसे जीत पाएंगे। श्रीरामचन्द्र जी के चरणों की वन्दना करके वे स्नेहपूर्वक कहने लगे कि हे नाथ आप न रथ पर हैं न तन की रक्षा के लिए कवच है और न ही पैरा में जूते ही हैं। वह बलवान बीर रावण इस स्थिति में किसी प्रकार जीता जाएगा ? कृपानिधान श्रीरामचन्द्र जी ने सखा को कहा कि जिससे जय होती है मित्र व रथ दूसरा ही होता है। शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिये हैं। सत्य और सदाचार उसकी मजबूत ध्वजा और पताका है। बल, विवेक, दम (इन्द्रियों का वश में होना) और परोपकार ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समतारूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं। ईश्वर का भजन ही उस रथ को चलाने वाला चतुर सारथी है। बैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुध्दि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है। निर्मल पाप रहित और अचल (स्थिर) मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना) (अहिंसादि) यम और नियम ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरू का पूजन अभेद कवच हैं। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है। हे सखे ऐसा धर्ममय रथ जिसके पास हो उसके लिए जीतने को कहीं कोई शत्रु ही नही है। हे धीर बुध्दि वाले सखा सुनो जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो वह वीर संसार (जन्म-मृत्यु)
रूपी महान ''दुर्जय'' शत्रु को भी जीत सकता है। रावण की तो बात ही क्या है। भारत की सन्तान से नियति अपेक्षा कर रही है कि वह प्रवाह पतित न होकर अपने पुरूषार्थ से अपनी मातृभूमि की प्रतिष्ठा विश्व में प्रस्तापित करेंगे। स्वामी विवेकानंद ने कहा था यह देश अवश्य गिर गया है परन्तु निश्चित फिर उठेगा ओर ऐसा उठेगा कि दुनिया देखकर दंग रह जाएगी। अन्ना के श्रीचरणों में नमन करते हुए उनके लिए दो शब्द एक शेर के रूप में :-
अधिकार खोकर बैठे रहना यह बड़ा दुष्कर्म है।
न्याय के लिए अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है॥

लेखक- उ0प्र0 भाजपा के मीडिया प्रभारी हैं।
लखनऊ, मो0 9415013300  

                    पंचायत से पार्लियामेन्ट तक के चुनाव का सच

·   नरेन्द्र सिंह राना

 भारत का जन-जन चाहता है कि देश में सभी चुनाव हों वहीं वे यह भी चाहते हैं कि सभी स्तरीय चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हों, मतदाता निर्भीकता से अपने मताधिकार का प्रयोग करें। मतगणना में धांधली न हो जिससे उनका विश्वास चुनाव पध्दति पर बढ़े न कि घटे। हमारी सबसे छोटी इकाई पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, नगरों में नगरपालिका महानगरों में नगरनिगम, इनके माध्यम से प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य, ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य व जिला पंचायत अध्यक्ष, नगरपालिका के सदस्य और अध्यक्ष, सभासद तथा महापौर चुने जाते हैं। इसीतरह से प्रदेश में विधायक तथा देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद के सदस्य सांसद का चुनाव भी जनता द्वारा किया जाता है। हर चुनाव की समय सीमा पांच वर्ष निर्धारित है। हमारे देश में जनता द्वारा लोकसभा के लिये 543 लोकसभा सदस्यों तथा 4120 विधानसभा सदस्यों व 2,65,000 ग्राम पंचायतों के लिये मतदान किया जाता है जनता द्वारा दिये गये वोटों की गणना के आधार पर हार-जीत का फैसला होता है। देश के सबसे बड़े प्रान्त उत्तर प्रदेश में अभी-अभी पंचायत चुनाव सम्पन्न हुए हैं। 

            विवादों के लिये जगजाहिर कहावत जर जोरू जमीन अब चुनाव के कारण पिछड़ गई है। अब चुनाव जर जोरू व जमीन झगड़े के मुख्य कारण बनते हैं। मतदान के पूर्व की स्थिति-चुनाव की घोषणा के महीनों पहले से ही चुनाव में खड़े होने वाले महानुभाव दावतों का दौर चलाते हैं। दावतें भारी मांग पर या दूसरे से पीछे क्यों रहें इस आधार पर की जाती हैं जो काफी खर्चीली ही होती हैं। ये ऐसी वैसी दावतें नहीं हैं इनमें शराब व नानवेज का बोलबाला रहता है। पंचायत चुनाव के कारण लोग जाति तक ही नहीं गोत्र तक में बटे नजर आते हैं। अब नामांकन का दौर प्रारम्भ होता है। प्रत्याशियों पर मैदान से हटने या एक दूसरे के समर्थन में बैठने के लिये दबाव व प्रलोभन कारण बनता है। पर्चा वापसी से खारिज तक साम दाम दंड भेद जैसे हथकंडे अपनाये जाते हैं। यदि ऊपर तक पहुंच हो तो प्रतिद्वन्द्वियों का नामांकन तक अवैध हो जाता है और जो बच गये उनके बीच मुकाबला होता है। गौरतलब है कि यह सब माननीयों (सांसद,विधायक,मंत्री,वर्तमान व पूर्व सभी) की देख-रेख में उनके अनुसार हिलोरे लेता है। सत्तापक्ष की तो पुछिए मत उनका दबाव, प्रलोभन और बाद में देख लेने की घमकी का सूचकांक बहुत ऊपर होता है। विपक्ष भी पीछे क्यों रहे वह भी चुनाव बाजार में जमकर जोर अजमाइश करता है ताकि उसका सूचकांक धड़ाम न होने पाये। यह सब दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। अब चुनाव का दिन आता है मतदान के दिन की घटनांओं के दृश्यों में उपद्रव, फायरिंग, मतपेटियों की लूट, हिंसा, पथराव, लाठीचार्ज, बूथ पर कब्जा, बम गोलियां चलना, वाहन जब्त, गिरफ्तारी और मतपत्र फटे आदि की घटनाएं पुख्ता चुनावी व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा जड़ते हुये दिखायी पड़तीं हैं। चुनाव आयोग द्वारा सांयकाल रश्मि प्रेस वार्ता कर तथा सरकार द्वारा शांतिपूर्ण एवं निष्पक्ष चुनाव के तराने सुनाकर लोकतंत्र को लज्जित करने वाली लेखा-जोखा रिपोर्ट जारी की जाती है। शिकायतों का दौर शुरू होता है। पुर्नमतदान की मांग जोर पकड़ती है और कहीं-कहीं पुर्न मतदान होता भी है। मतगणना में धांधली की आशंका सबके मन में घर किये रहती है। मतगणना स्थल पर माहौल हार-जीत की खबर आने वाले झरोंखों के बीच गरम व ठंडा होता रहता है। उससे भी अधिक कही-कहीं मतगणना की पुर्नमांग चुनाव में गड़बड़ी की संभावनाएं संजोए रहती है। पूरे चुनाव भर कहां-कहां और किस-किस पर भरोसा किया जाए यह बात विचारणीय बनी रहती है। मतगणना संपन्न होने के बाद हार-जीत से उत्पन्न हर्ष व शोक की लहर दोड़ जाती है। यहां यह बताना बेहद जरूरी है कि चुनाव की मतगणना तो सम्पन्न हुई उसके बाद चुनावी रंजिश में मारे जाने वालों की मृत्यु गणना कब पूरी होगी यह अन्तहीन सिलसिला थमने का नाम नहीं लेता। चुनाव की शुरूआत से लेकर हार-जीत तक पद, पैसा, प्रभाव के कारण खरीद फरोख्त, दहशत, खौफ, खता, और मानवता को शर्मशार करने वाली किसी को मौत तक की नींद सुलाने वाली दुखद एवं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओ के दौर का चलन रफ्तार पकड़ने लगता है। मतगणना की तिथि सभी को मालूम है लेकिन चुनाव के कारण्ा इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की तिथियों ने गलती की सदियों ने सजा पाई इस प्रकार की रंजिश सालों तक खत्म होने का नाम नहीं लेती। इस कारण कितनी माँ, बहन, बेटियों के सुहाग उजाड़ दिये जाते हैं। बड़ी संख्या में प्रत्याशी चुनाव जीतने के लिये जमीन, जेवर, तक बेच डालते हैं। कर्ज के कारण उनके परिवार बरबाद हो जाते हैं। जो बच जाते हैं उन्हें बदले में मिलती है रंजिश। गांव की रंजिश शहर की अपेक्षा बेहद गम्भीर होती है। क्योंकि शहर भोगालिक दृष्टि से क्षेत्रफल में बड़े होते हैं व शहर में नगर व महानगर जैसी बहुत सी कालौनियां होती हैं एक नगर से दूसरे महानगर तक कि दूरी अधिक होने के कारण वहां जाने के लिये गाड़ी घोड़े का इस्तेमाल किया जाता है। एक दूसरे के सामने पड़ने में बचा जा सकता है और शहर में थाने होते हैं, अखबार होते हैं इन कारणों से गांव की अपेक्षा शहर में घटना को अंजाम देना कठिन होता है। परन्तु गांव में तो यह सब कुछ न के बराबर होता है। चाह कर भी कोई एक दूसरे के सामने पड़ने से नहीं रह सकता तथा थाना भी कोसों दूर होता है, गलियों से ही आना जाना होता है ऐसे में रंजिश खूब परवान चढ़ती है। रोष व क्रोध के कारण व्यक्ति विवेक खो बैठता है और अज्ञानता व मूर्खता से उसका पाला पड़ता है जिसके  कारण उसके द्वारा की गई गलतियों का हिसाब पीड़ियों तक को चुकाना पड़ता है। खुशहाल गांव राख के ढेर में बदल जाते हैं। यह दृश्य देश की सबसे छोटी इकाई पंचायत चुनाव का है। शेष चुनाव में भी इसी प्रकार की घटनाओं, दुर्घटनाओं का रूतबा कम नही होता। देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में नोटों के बंडल, अपराधी गतिविधियों में लिप्त लोगों का चुना जाना आदि लोकतंत्र को शर्मशार करने के लिये काफी है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गांव के विकास के लिये होने वाले चुनावों में प्रधान जी से संसद सदस्य तक खुद को बखूबी विकासशील से विकसित कर लेते हैं परन्तु गांव व देश विकासशील ही बना रहता है। हमारा देश  दुनिया में विकासशील देशों की श्रेैणी में आता है। देश को विकसित राष्ट्र बनाने में सभी माननीय चुनाव का सहारा लेते हैं और स्वयं पहले विकसित हो जाते हैं। अनेकों तो सी0बी0आई0 तक को उनकी सही हैसियत का पता लगाने की खुली चुनोती दे रहे हैं। गांव विकसित हो, शहर विकसित हो या देश विकसित हो यह सब उनकी बला से। प्रधान साहब की विकसित होने की गौरवगाथा गांव के भोले भाले लोग पराये कहते मिल जायेंगे बाकियों का तो कहना ही क्या है। ग्रामसभा की आय के प्रमुख स्रोत जैसे ग्राम समाज की भूमि की नीलामी,नजूल की भूमि का पट्टा, वन विभाग को विकसित कर पेड़ लगाने और उससे प्राप्त आमदनी का आधा हिस्सा ग्राम समाज का होता हेै।तालाबों की खुदाई विकास के लिये देश तथा प्रदेश की ग्रान्ट, नरेगा व मनरेगा जैसी योजनाएं आदि हैं। गांव का विकास पारदर्शी व्यवस्था के अन्तर्गत हो इसके लिये प्रत्येक ग्रामीण को गांव की आय व व्यय का सम्पूर्ण विवरण पता लगाना चाहिए। गांव के बस स्टैण्ड, स्कूल, पंचायत भवन आदि पर साइन बोर्ड लगाकर योजनाओं का ब्यौरा दर्ज होना चाहिए। चुनावी हिंसा को रोकने के लिये चुनाव आयोग से लेकर सरकार तक के पास सारी व्यवस्था है उसका कड़ाई से भेदभाव रहित पालन किया जाना चाहिए यदि जरूरी हो तो और कठोर कानून बनाये जायें। कानून बनाते समय इस बात का ध्यान भी रखा जाना आवश्यक है कि बनाये गये कानूनों का जनहित में सदुपयोग हो न कि शत्रु सम्पत्ति की तरह किसी और के हित में हो। गांव को बचाना होगा तभी देश बच पायेगा तथा चुनाव की सार्थकता बनी रहेगी। जनता ने चुनाव में बड़े नेताओं एवं मठाधीशों के पुत्रों एवं रिश्तेदारों को हार का मजा भी चखाया है। 

            हर रोग का इलाज होता है अंधेरा चाहे  जितना घना हो वह प्रकाश को आने से नहीं रोक सकता। ठीक इसी तरह कोई भी माफिया भ्रष्ट, बिचौलिये आदि मेरे देश के कानून से बड़ा नहीं हो सकते। हम सभी को जिम्मेदारी व ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्य का पालन मानव सेवा व देश सेवा को सर्वोपरि मानते हुये करना चाहिए। 

                                    जिसको लगाया राम ने, वो चमन उजड़े भी क्या ।

                                    जूगनुओं की बारिशों से, चाँद का बिगड़े भी क्या ।।

  

 

 

नरेन्द्र सिंह राना

लेखक, पावर लिफ्टिंग के अन्तर्राष्ट्रीय कोच रहे हैं।

सम्पर्कः मोबा.   9415013300    लखनऊ

 

 

 

 

 

 
   
 
 
                               
 
»
Home  
»
About Us  
»
Matermony  
»
Tour & Travels  
»
Contact Us  
 
»
News & Current Affairs  
»
Career  
»
Arts Gallery  
»
Books  
»
Feedback  
 
»
Sports  
»
Find Job  
»
Astrology  
»
Shopping  
»
News Letter  
© up-webnews | Best viewed in 1024*768 pixel resolution with IE 6.0 or above. | Disclaimer | Powered by : omni-NET