इस
बार पंचमी तिथि 7 अगस्त को भोर में 4.4. बजे लगेगी और 8
अगस्त को भोर 5.58 तक रहेगी। तिथि विशेष पर नाग
आकृतियों और नाग देव के विग्रहों का यथा शक्ति पंचोपचार
या षोडशोपचार पूजन कर नाग देवता को पंचामृत, घृत, कमल,
दूध, लावा अर्पित करने से नाग देव प्रसन्न होते हैं और
अपना भय जनमानस को नहीं देते। कालसर्प योग से पंचमी का
नाता ज्योतिष शास्त्र में राहू-केतु जनित या जिनकी
कुण्डली में राहू-केतु की महादशा, अंतर्दशा,प्रत्यंतर दशा
अनिष्ट हो उन लोगों को इस दिन सर्प पूजन अवश्य करना
चाहिए। इस दिन नागकुंड यात्रा दर्शन का विधान है। चूंकि
कालसर्प योग सैदव अशुभ नहीं होता। इसलिए जिनकी कुण्डली
में कालसर्प योग हो, वे जातकों को शुभता बढ़ाने या अशुभता
को समनार्थ कालसर्प योग की शांति कराने से निश्चित लाभ
होता है।
कालसर्प योग की भ्रांतियां:
कालसर्प योग के बारे कई भ्रांतियां हैं,लेकिन प्राचीन
ज्योतिष ग्रंथों जिसमें मानसागरी, वृहद्जातक आदि में
सर्प योग का वर्णन विस्तृत रूप से मिलता है और जिसके
प्रभाव भी दिखते हैं। इस निमित्त शांति के लिए देश में
कई अतिप्राचीन मंदिरों का उल्लेख पुराणों में वर्णित
हैं। ज्योतिष विज्ञान है। विज्ञान की आधारशीला खोज पर
टिकी है।अत:ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प योग को माना गया
है। सर्प का प्रतिनिधित्व राहू करता है।अत:आधुनिक
ज्योतिषियों ने सर्प दोष को कालसर्प योग के नाम से
सम्बोधित किया और शास्त्रीय विधान सम्मत है।
नाग
पंचमी की पौराणिक कथा:
सनातन धर्म के अद्भुत परम्पराओं में रचे-बसे देश में
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी पर्व
मनाने की धार्मिंक परम्परा रही है। काल रूपी चंचल विषधारी
नाग सृष्टि के प्रारंभ से ही मानव के लिए भय का कारण रहे
हैं। इस भय पर विजय पाने के लिए मूल रूप से नागपूजा का
प्रारंभ हुआ। पौराणिक दृष्टि से नागपूजा का सम्बंध
महाभारत काल से माना जाता है। कथा के अनुसार राजा
परीक्षित जंगल में शिकार के लिए गये हुए थे। उसी समय
परीक्षित को प्यास की अभिलाषा के निमित्त अपनी प्यास
बुझाने के लिए समीक ऋ षि के आश्रम में पहुंचे। समीक ऋ षि
तपस्या में लीन थे। राजा परीक्षित ने ऋ षि से जल मांगा,
लेकिन साधना में लीन ऋ षि से कोई उत्तर न मिला तो
परीक्षित क्रोधित होकर ऋ षि के गले में मरा हुआ सांप
डालकर चले आए। समीक के पुत्र श्रंगी ऋ षि ने जब आश्रम
आकर अपने पिता के गले में मरा हुआ सांप देखा तो क्रोधित
होकर परीक्षित को श्राप दिया कि आज से सातवें दिन तक्षक
नाग के डसने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। समीक ऋ षि को
जब पुत्र द्वारा राजा परीक्षित को श्राप देने का ज्ञान
हुआ तो उन्होंने करुणा के वशीभूत होकर परीक्षित को इस
श्राप की सूचना दे दी।
चूंकि ऋ
षि का श्राप व्यर्थ नहीं जाता, इसलिए लाख प्रयत्न के
बावजूद तक्षक ने अंतोगत्वा परीक्षित कोडस लिया और
परीक्षित का प्राणांत हो गया। इससे परीक्षित के पुत्र
जन्मेजय का मन प्रतिशोध से भर उठा। पिता की मृत्यु एक
नाग के काटने से हुई।अत:मैं इस धरती को ही सर्प विहीन कर
दूंगा। ऐसा विचार कर उन्होंने नाग यज्ञ किया। उसके
प्रभाव से सभी सर्प यज्ञ कुण्ड में गिरने लगे। यह देख
वासुकी नाग की बहन जरत्कारु ने अपने पुत्र आष्तिक को इस
यज्ञ को रुकवाने को भेजा।अथक प्रयास के बाद जन्मेजय ने न
केवल यज्ञ रोका, बल्कि नाग पूजन की परम्परा प्रारंभ की।
वह दिन श्रावण शुक्ल पंचमी था।अत: उसी समय से नाग पंचमी
मनाने की परम्परा चली शुरू हुई।