नई
दिल्ली,
29 जनवरी 2019
(उ.प्र.समाचार सेवा)।
केन्द्र
सरकार
ने
मंगलवार
को
सर्वोच्च
न्यायालय
में
अर्जी
लगाकर
अयोध्या
में
अधिग्रहीत
67
एकड़
जमीन
से
याथस्थिति
समाप्त
करने
का
आग्रह
किया
है
।
भाजपा
के
नेतृत्व
की
राजग
सरकार
ने
राम
मन्दिर
निर्माण
की
दिशा
में
पहला
कदम
उठाया
है।
सर्वोच्च
न्यायालय
यदि
केन्द्र
की
दलील
स्वीकार
कर
लेती
है
तो
यह
भूमि
उसके
मालिकों
को
वापस
की
जा
सकती
है।
इसमें
48
एकड़
जमीन
राम
जन्मभूमि
न्यास
की
है।
शेष
19
एकड़
जमीन
अन्य
स्थानियों
निवासियों
की
है
जोकि
इसका
मुआवजा
ले
चुके
हैं।
केन्द्र
सरकार
ने
यह
फैसला
ऐसे
समय
पर
लिया
है
जब
प्रयागराज
में
31
जनवरी
से
एक
फरवरी
तक
धर्म
संसद
का
आयोजन
होना
है
जिसमें
करीब
5
हजार
संतों
के
जुटने
की
संभावना
है।
यहां
अन्य
मुद्दों
के
अलावा
संत
राम
मंदिर
निर्माण
पर
चर्चा
करने
वाले
हैं।
संत
पिछले
करीब
चार
महीने
से
मन्दिर
के
लिए
अध्यादेश
लाने
की
मांग
कर
रहे
हैं।
इसके
लिए
दिल्ली,
अयोध्या
समेत
तीन
स्थानों
पर
धर्म
सभाएं
आयोजित
की
जा
चुकी
हैं।
इसके
पहले
अक्टूबर
में
धर्मादेश
सभा
आयोजित
कर
संतों
ने
केन्द्र
सरकार
को
मन्दिर
निर्माण
के
लिए
चेतावनी
दी
थी।
उधर
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक
संघ
ने
भी
स्पष्ट
रूप
से
कहा
था
कि
सरकार
मन्दिर
निर्माण
की
जो
भी
बाधाएं
हैं
दूर
करे
और
उसका
रास्ता
भी
सरकार
ही
खोजे।
संघ
के
सरसंघटालक
डा.
मोहन
भागवत
और
सह
सरकार्यवाह
भैया
जी
जोशी
ने
मन्दिर
के
लिए
सरकार
से
फैसला
लेने
का
आग्रह
किया
किया
है।
उधर
विश्व
हिन्दू
परिषद्
ने
भी
अध्यादेश
या
विधेयक
लाने
की
मांग
की।
किन्तु
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र
मोदी
ने
गत
दिसम्बर
माह
में
स्पष्ट
कर
दिया
कि
सर्वोच्च
न्यायालय
में
मामला
लंबित
रहते
अध्यादेश
नहीं
आएगा।
अब
सरकार
ने
वह
जमीन
अदालत
से
वापस
मांगी
है
जोकि
यथास्थिति
में
है।
यह
जमीन
1993
में
तत्कालीन
प्रधानमंत्री
पी
वी
नरसिंहराव
की
सरकार
ने
अयोध्या
अधिनियम
33
के
अन्तर्गत
अधिग्रीहीत
की
थी।
किन्तु
इसके
विरुद्ध
मुस्लिम
पक्ष
के
न्यायालय
पहुंच
कर
विरोध
करने
पर
सर्वोच्च
न्यायालय
ने
उक्त
भूमि
को
केन्द्र
के
अधिग्रहण
में
लेने
से
रोक
लगाकर
यथास्थिति
बनाये
रखने
के
निर्देश
दिये
थे।
यथास्थिति
के
अनुसार
भूमि
अधिग्रहण
हो
चुका
था।
इसलिए
भूमि
केन्द्र
के
पास
ही
है,
लेकिन
वह
इसका
कोई
उपयोग
बगैर
न्यायालय
के
अनुमति
के
नहीं
कर
सकती
है।
न
तो
वापस
कर
सकती
है
और
न
ही
किसी
अन्य
पक्ष
को
दे
सकती
है।