लखनऊ,
24 जुलाई। (उ.प्र.समाचार सेवा)। राजनीति
की
तरह
पत्रकारिता
भी वोट
बैंक
की
तरह
हिस्सों
में
बंट
रही
है।
यहां भी
विषय
और
एजेण्डा
वोट
बैंक
की
तरह
सोच
रखकर
तय
किया
जा
रहा
है।
न्यूज
की
जगह
व्यूज
परोसे
जा
रहे
हैं।
यह
पत्रकारिता
के
लिए
शुभ
संकेत
नहीं
हैं।
यह
बात
वरिष्ठ
पत्रकार
और
आईबीएन 7
के
यूपी
हेड
शलभ
मणि
त्रिपाठी
ने
कही।
त्रिपाठी
यहां
विश्व
संवाद
केन्द्र
में
लखनऊ
जनसंचार
एवं
पत्रकारिता
संस्थान
और
उत्तर
प्रदेश
समाचार
सेवा
के
संयुक्त
तत्वावधान
में आयोजित
पत्रकारिता
विषयक
संगोष्ठी
में
विचार
व्यक्त
कर
रहे
थे।
‘पत्रकारिता
का
बदलता
परिवेश’
विषय
पर
आधारित
संगोष्ठी
में
मुख्य
अतिथि
त्रिपाठी
ने
कहा
कि
आज
की
पत्रकारिता
में विषय
और
कवरेज
का
एजेण्डा
उसी
तरह
तय
किया
जा
रहा
है
जैसे
राजनीतिक
दल
अपना
वोट
बैंक
देखकर
रणनीति
बनाते
हैं।
पत्रकारिता
अब
समाज
की
नहीं
वर्गों
की
हो
गई
है।
यह
हिस्सों
में
बंट
गई
है,
किसी
का
एजेण्डा
सिर्फ
मुसलमान
है
तो
किसी
का
हिन्दू,
कोई
सिर्फ
पिछड़ों
में
और
दलितों
में
खबर
देख
रहा
है
तो
कोई
अगड़ों
में
ही।
उन्होंने
कहा
कि
आज
पत्रकारिता
का
संक्रमण
काल
है।
बड़ी-बड़ी
चुनौतियां
हैं, सबसे
बड़ी
चुनौती
तो
अन्दर
से
है।
जहां,
हम
और
आप काम
कर
रहे
हैं,
उन्हीं
संस्थानों
के भीतर भी
चुनौती
का
सामना
करना
पड़ता
है।
त्रिपाठी
ने
कहा
कि
आने
वाला
समय
और भी
कठिन
और
चुनौतीपूर्ण
है।
हो
सकता
आप
जब भविष्य
में
पत्रकारिता
करें
तो
मुंह
पर
एक
टेप भी
लगा
दिया
जाए।
यानि
की
प्रतिबंधों
के बीच
पत्रकारिता
करनी
पड़ेगी।
यह
प्रतिबंध
कोई
और
नहीं
बल्कि
विज्ञापन
नियंत्रित
पत्रकारिता होगी।
यह
पत्रकारिता
के
लिए शुभ
नहीं
हैं।
संगोष्ठी
में
त्रिपाठी
ने
कहा
कि
अच्छी
बात
यह
है
कि
सोशल
मीडिया
आ
गया
है।
अब
यह
समानान्तर
मीडिया
बन
रहा
है। 4
जी
तकनीक
आने
के
बाद
डिजिटल
मीडिया
के
रूप
में
क्रांति
आ
जाएगी।
जर्नलिस्ट बने एक्टिविस्ट
वरिष्ठ
पत्रकार
त्रिपाठी
ने
इस
मौके
पर
उदाहरण
देकर
पत्रकारिता
के पक्षपातीय
रवैये
पर भी
चिंता
जाहिर
की।
उन्होंने
कहा
कि
पत्रकारिता
के
यह
स्वरूप भी
चिंतनीय
है
जब
जेएनयू
के
कुछ
अलगाववादी
छात्रों की
गिरफ्तारी
के
विरोध
में
एक
चैनल
ने
अपनी
स्क्रीन
काली
कर
दी
थी।
इस
चैनल
ने
अपनी
स्क्रीन
उस
समय
काली
नहीं
की
थी
जब
आतंकवादियों
ने
संसद
पर
हमला
किया
था।
उन्होंने
कहा
कि
अब
जर्नलिस्ट,
एक्टिविस्ट बन
रहे
हैं।
वह
एजेण्डा
तय
कर
रहे
हैं।
एकपक्षीय
पत्रकारिता
हो
रही
है।
दस
लाख
रुपये
के
ईनामी
आतंकी
बुरहान
बानी
के
मारे
जाने
पर
एक
चैनल
ने
ऐसा
दिखाया
जैसे
कोई
नेता
मारा
गया
हो,
जबकि
वह
सेना
के
कर्नल
मुनीन्द्र
राय
का
हत्यारा
था।
लेकिन
यह
पत्रकारिता
नहीं है।
एकपक्षीय
संवाद
लिखने
और
दिखाने
से
ऐसा
लगने
लगा
है
कि
जैसे
कोई
इस्लामाबाद
में
बैठकर
खबर
लिख
रहा
हो।
बदलाव लोकमंगल की भावना से हों
संगोष्ठी
में
वरिष्ठ
पत्रकार
और
पूर्व
सूचना
आयुक्त
वीरेन्द्र
सक्सेना
ने
कहा
कि
पत्रकारों
को समाज
के
दुख-दर्द
को समझ
कर
पत्रकारिता
करनी
चाहिए।
पत्रकार
समाज
का
दर्पण
बनें।
इस
क्षेत्र
में
निरंतर
चुनौतियां
है,
इसलिए
चुनौतियों
का सामना
करते
हुए
कार्य
करना
पडेगा।
दैनिक प्रभात
के
सम्पादक
पारस
अमरोही
ने
कहा
कि
पत्रकारिता
के
परिवेश
में
बदलाव
होते
रहना
चाहिए।
क्योंकि
बदलेंगे
नहीं
तो
जड़
हो
जाएंगे।
लेकिन
इस
बदलाव
का
लाभ
सिर्फ
किसी
एक
पक्ष
के
लिए
नहीं
होना
चाहिए।
यह
सबका शुभ
करने
वाला
हो
तो
सार्थक
बदलाव
माना
जाएगा।
उन्होंने
कहा
कि
जब
पत्रकारिता
मुनाफे
का
रूप
ले
लेती
है
तो
सवाल
खड़े
होने
लगते
हैं।
ऐसी
स्थिति
में
जनमानस
पत्रकारों
पर सवाल
उठाने
लगते
हैं।
उन्होंने
कहा
कि
बदलाव तभी
सार्थक
होंगे
जब
यह
लोकमंगल
की भावना
से
हों।
पत्रकार बनना आसान, धर्म निभाना कठिन
पत्रकार
डा.
एस.के.पाण्डे
ने
कहा
कि
पत्रकार
होना
आसान
है
किन्तु
पत्रकार
का
धर्म निभाना
अत्यधिक
कठिन
है।
उन्होंने
कहा
कि
पत्रकार
को
राग
द्वेष
से
ऊपर
उठना
पड़ेगा,
और
कठिन
परिश्रम
करना
पडेगा तभी
वह
पत्रकार
धर्म
का
निर्वहन
कर
सकता
है।
संगोष्ठी
में
लखनऊ
जनसंचार
एवं
पत्रकारिता
संस्थान के
निदेशक
अशोक
कुमार
सिन्हा,
क्षेत्र
प्रचार
प्रमुख
राजेन्द्र
सक्सेना,
दिवाकर
अवस्थी,
स्वतंत्र
भारत के
पूर्व
सम्पादक
नन्दकिशोर
श्रीवास्तव, उत्तर
प्रदेश
समाचार
सेवा
के
सम्पादक
कृष्ण
मोहन
मिश्र,
वरिष्ठ
पत्रकार
मत्येन्द्र
प्रभाकर, सर्वेश
कुमार
सिंह,
नीरजा
मिश्रा,
श्रीधर
अग्निहोत्री
ने विचार
व्यक्त
किये।
इस
मौके
पर
उत्तर
प्रदेश
समाचार
सेवा
द्वारा
प्रकाशित
पत्रकारिता
विशेषांक
का
लोकार्पण
किया
गया।