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  मुंशी प्रेमचंद की विरासत से खिलबाड़ करने पर संस्कृति मंत्री के खिलाफ आक्रोश
Tags: Munsi Premchand, Lamhi Varanasi, Subhash Pandey, Cultural minister Gov, of U.P.
Publised on : 2011:09:09       Time 22:48                                 Update on  : 2011:09:09      Time 22:48

मुख्यमंत्री से शिकायत कर लेखकों और संस्कृतिकर्मियों ने की बर्खास्त करने की मांग
लखनऊ, 09 सितम्बर। (उप्रससे)। Uttar Pradesh News प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय जननाटय संघ (इप्टा) और मुंशी प्रेमचंद स्मारक शोध एवं शिक्षण न्यास ने आज यहां प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती से मांग की है कि वे संस्कृति मंत्री सुभाष पांण्डेय को तत्तकाल बर्खास्त कर उनके खिलाफ जांच करायें। सस्कृति मंत्री श्री पांण्डेय के विरुध्द लगाए आरोपों की शिकायत प्रदेश के लोकायुक्त से भी की जा चुकी है और उच्चन्यायालय में भी एक जनयाचिका लंबित है।
यह मांग आज यहां प्रगतिशील लेखक संघ के प्रांतीय महासचिव डा0 संजय श्रीवास्तव एवं शकील सिदि्की, भारतीय जननाटय संघ (इप्टा) के महासचिव राकेश, मुंशी प्रेमचंद स्मारक शोध एवं शिक्षण न्यास के सचिव प्रेमचंद जी के पौत्र अतुल राय और न्यास के सदस्य एवं प्रख्यात शिक्षक डा0 रमेश दिक्षित, प्रगतिशील लेखक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष मंडल के सदस्य और जाने माने आलोचक श्री वीरेन्द्र यादव, प्रेमचंद परिवार के सदस्य श्री विजय राय ने सयुक्त रुप से की। इन्होंने आरोप लगाया कि सांस्कृतिक मंत्री के कारनामे से पूरा प्रदेश त्रस्त है। प्रख्यात कथाकर प्रेमचंद जी की जन्म स्थली लमही (वाराणसी) को संस्कृति मंत्री ने भूमाफियाओं को सौंप दिया है। यही नहीं संस्कृति मंत्री ने वहां पर प्रेमचंद के एक नकली पौत्र 'दुर्गा प्रसाद' को भी महिमा मंडित करने का करिश्मा कर दिखाया है, जिसका प्रेमचंद जी के परिवार की वंशावली से दूरदराज तक का भी नाता नहीं है।
उल्लेखनीय है कि प्रख्यात कथाकार प्रेमचंद की जयंती पर संस्कृति मंत्री के निर्देश पर लखनउ और वाराणसी में एक नाटक 'परदे में रहने दो' मंचित किया गया, जिसमें प्रेमचंद जी को ऐसे रुप में प्रस्तुत किया गया है जो भ्रष्ट नौकरशाहों का दोस्त और ब्रिटिश सरकार का समर्थक है और गरीब मजदूरों पर होने वाले जुल्म की अनदेखी करता है। हम इसे प्रेमचंद जी के चरित्र का हनन मानते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि प्रेमचंद ने जीवनभर नौकरशाही और भ्रष्ट व्यस्था का विरोध किया तथा गांधी जी के आह्वान पर इन्सपेक्टर आफ पुलिस की नौकरी छोड़कर राष्ट्ीय आंदोलन में उतरे। 'नमक का दरौगा' से लेकर गोदान तक में उनका विरोध स्पष्ट देखा जा सकता है। प्रेमचंद जनता के लेखक के रुप में विश्व विख्यात हैं। खास बात यह है कि इस नाटक का पूर्वाभ्यास संस्कृति मंत्री श्री सुभाष पांण्डेय ने स्वयं बैठकर कराया था।
यही नहीं, प्रेमचंद स्मारक के लिए लमही में सरकारी पैसे का जिस प्रकार दुरुपयोग और घोटाले किए गए हैं उससे हम सभी स्तब्ध हैं। लमही में मुंशी प्रेमचंद स्मारक एवं शोध केंद्र निर्माण के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं। दो करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने बीएचयू को शोध केंद्र बनाने के लिए दिए हैं और राज्य सरकार को ढाई एकड जमीन के लिए वांक्षित धन मुहैया कराया है। यह सब 2005 में प्रेमचंद 125 जयंती के अवसर पर घोषित हुआ, लेकिन अब तक ढाई एकड जमीन के एवज में सिर्फ थोड़ी सी जमीन अधिग्रहित की गई। असलियत यह है कि वहां की तमाम जमीनें भूमाफियाओं की सांठ-गांठ से कोलोनाइजरों के लिए छोड़ी दी गईं है। लमही के तमाम किसान शोध केन्द्र के लिए जमीन देने के लिए तैयार हैं किंतु उनकी जमीनें नहीं ली गईं। लमही के एक सरोवर पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए। इन सरोवर की मिट्टी खुदवाकर बेच दी गई। सरोवर खाली सूखा पडा है इसमें जानवर चरते हैं। सरोवर खोदने का काम नरेगा की निधि से किया गया है। जबकि प्रेमचंद कार्य योजना के नाम पर उसमें अलग से धन व्यय दिखाया गया है।
मुंशी प्रेमचंद के नाम पर जो लमही महोत्सव कराया जा रहा है, उसमें प्रेमचंद साहित्य की चर्चा न के बराबर है। लाखों रुपए हर साल दादरा, कजरी, नौटकी और गजल गायन के कार्यमों में लगाया जा रहा है।
वास्तव में संस्कृति मंत्री सुभाष पांण्डेय की भूमाफिया गिरी से तमाम अखबार रंगे पडे हैं। इनके कारनामें लमही ही नहीं जौनपुर में भी फैले हुए हैं। यह भी आरोप है कि कमलापुर और बादशाहपुर के आधा दर्जन से अधिक लोगों की जमीन और मकानों पर अवैध रुप से इस मंत्री का कब्जा है जहां सैकडों बीघा जमीन पर मकान और सांस्कृतिक केंद्र बनवा डाला है।
प्रेमचंद साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए करोड़ रुपए की पुस्तकें छांपी गयीं कि उन्हें बच्चों में नि:शुल्क वितरित किया जाएगा, किन्तु उसका कहीं पता नहीं चला। इसके अलावां प्रेमचंद जी पर डाक्यूमेंट्ी बनाने और उसे विभिन्न गांव शहरों में दिखाने के लिए धन आवंटित किया गया, किन्तु डाक्यूमेंट्ी कहा हैं? इस पैसे को कहा लगाया गया। दरअसल यह सब कागज पर हुआ है, कुछ भी प्रत्यक्ष नहीं है। हिंदी भाषी जनता और भारतीय साहित्य का अपमान करने वाले संस्कृति मंत्री सुभाष पांण्डेय प्रेमचंद के नाम पर करोड़ों रुपए के घोटाले कर चुके हैं। जिसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। सरकार से हमारी मांग है कि वह संस्कृति मंत्री सुभाष पांण्डेय के विरुध्द सीबीआई जांच की संस्तुति करते हुए इन्हें बर्खास्त करें।

समाचार स्रोतः उ.प्र.समाचार सेवा

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