|
Home>News |
|
विश्वकर्मा समाज का
गौरव ऐतिहासिक विश्वकर्मा मंदिर मंगलौर |
|
Tags: Vishwakarma Tample Mnaglore,
Haridwar Uttrakhand, Founder Sri
Jitan Lal |
|
Publised
on :
2011:09:17
Time 10:03
Update on :
2011:09:17
Time 10:03 |
|
-सचिन
धीमान-
मुजफ्फरनगर, 17 सितम्बर। (उप्रससे)। विशाल
पर्वत शिखर मिट्टी के छोटे-छोटे कणों से
मिलकर बनता है। बहु मंजिला भवन असंख्या
ईंटों का परिणाम है। व्यक्तित्व के निखार
में न जाने कितनी छोटी-छोटी बातों का
योगदान होता है। विश्वकर्मा मंदिर निर्माण
भी इन्हीं बातों का परिणाम है। श्री
विश्वकर्मा मंदिर मंगलौर की स्थापना संवत
1967 वि0 फाल्गुन माह अर्थात् 20 मार्च सन्
1910 दिन रविवार को श्री जीतनलाल ध्ीमान
के कर कमलों द्वारा हुई। यह मंदिर वर्तमान
में उत्तराखण्ड राज्य के जनपद हरिद्वार के
कस्बा मंगलौर कें मौहल्ला मानक चौक में
स्थित है। कस्बा मंगलौर एक स्थान ही नहीं
विश्वकर्मा समाज के लिए तीर्थ नगरी है।
विश्वकर्मा मंदिर मंगलौर की स्थापना करने
हेतु श्री जीतन लाल को समाज के उत्सवों
में विद्वानों के विचारों से प्रेरणा मिली
संवत् 1967 वि0 फाल्गुन शुदि 23 को धीमान
ब्राहमण सभा पंडोली जिला सहारनपुर का एक
विशाल उत्सव जोकि पं. रामभज दत्त तांसीपुर
निवासी तथा पं. नानक चन्द जी पंडोली निवासी
की सहानुभूति से हुआ। इस उत्सव में श्री
पं. नात्थूराम žस्वामी नित्यानन्द― जी अपने
शिष्य पंजाब निवासी पं. आत्माराम जी
žसारस्वत― तथा अपने अनुज भ्राता पं.
उदयराम जी सिध्दांत रत्न― नागल जिला
बिजनौर पं. लेखराम जी बाहदुरपुर वाले तथा
पं. गणपति जी अम्बेहटा भजनोपदेशक पं.
नाथूराम ''नन्दपुर'' भजनोपदेशक संतराम जी
नगीना पधारे। इस विशाल उत्सव में समाज
उत्थान के लिए विद्वानों द्वारा प्रचार
हुआ तथा अनेकों यज्ञोपवित संस्कार भी हुए।
इस उत्सव में श्रीजीतन लाल धीमान लण्ढौरा
निवासी― स्वामी नित्यानन्द जी, पं.
आत्माराम जी सारस्वत पं. उदयराम सिध्दांत
रत्न जी के समाज गौरव को बढाने वाले
व्याख्यान से इतने प्रभावित हुए कि
उन्होंने मंगलौर में विश्वकर्मा मंदिर हेतु
भूमि दान में दे दी तथा इस उत्सव में श्री
जीतन लाल जी को धीमान ब्राहमण सभा मंगलौर
का अध्यक्ष बना दिया गया तथा इसी उत्सव
पं. जीतन लाल धीमान जी ने अपने सहयोगी
माइदयाल से परामर्श कर धीमान ब्राहमण सभा
मंगलौर के तत्वाधान में 28 व 29 अक्टूबर
सन् 1911ई. को विश्वकर्मा वंशीय धीमान
ब्राहमण उत्थान हेतु प्रथम उत्सव मनाने की
घोषणा कर दी जिसे सभी ने सहर्ष स्वीकार कर
उत्सव में उपस्थित विध्दानाेंं ने मंगलौर
उत्सव में आने की स्वीकृति दे दी। श्री
जीतन लाल धीमान सहयोगियों के सहयोग से
मंदिर निर्माण में लग गये तथा निर्माण
स्थल पर विश्वकर्मा मंदिर निर्माण का
बोर्ड धीमान ब्राहमण सभा द्वारा लगा दिया
गया। जिससे मंगलौर के सहयोगी गौड ब्राहमण
खिन्न हो गये और प्रचार करने लगे कि
विश्वकर्मा वंशीय धीमानों को ब्राहमण लिखने
या अपने आपको कहने का अधिकार नहीं। इसी
बात से सन् 1911 में नवम्बर माह में धीमान
ब्राहमणों का सहयोगी गौड ब्राहमणों से
शास्त्रार्थ हुआ जिसमें धीमान ब्राहमण सभा
को विजय श्री मिली। आज सन् 2011 में
शास्त्रार्थ हुए पूरे 100 वर्ष हो चुके है
तथा मंदिर को स्थापित हुए 101 वर्ष हो चुके
है। वर्तमान में इस मंदिर को भव्य रूप देने
के लिए श्री पुरूषोत्म धीमान को अध्यक्षता
में कार्य प्रगति पर है। |
|
समाचार स्रोतः
उ.प्र.समाचार सेवा |
|
Summary: |
|
News & Article:
Comments on this
upsamacharsewa@gmail.com
|