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  Opinion  
 

तालिबान से हारी अफगान सरकार, सेना ने डाले हथियार, राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ कर भागे

  • काबुल पर बगैर लड़े तालिबान का कब्जा

  • राष्ट्रपति भवन में घुसे तालिबान, फहराया झंडा

  • अंतरिम सरकार को राजी नहीं तालिबान

  • एयरपोर्ट पर अभी अमेरिका का कब्जा

  • काबुल में भगदड़ का माहौल

Tags: World News Agencies, #Afganistan #Kabul #Ashraf Gani President #Taliban
Publised on : 2021:08:15     Time 20:40 Sunday        दिनांक 15 अगस्त 2021, रविवार

काबुल, 15 अगस्त 2021 ( एजेंसी )। साढे तीन लाख की अफगान सेना ने मात्र 60 से 70 हजार तालिबान लड़ाकों के आगे घुटने टेक दिये। अफगान सेना के समर्पण के बाद तालिबान ने पूरी तरह अफगानिस्तान को अपने कब्जे में ले लिया है। अफगानिस्तान #Afganistan की सेना ने तालिबान का काबुल में घुसने पर कोई प्रतिशोध नहीं किया। तालिबान के काबुल की सीमा पर दस्तक देते ही अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ कर भाग गए। उनके भागने के बाद तालिबान ने सायं करीब छह बजे राष्ट्रपति भवन को अपने कब्जे में ले लिया और वहां तालिबानी झंडा भी लहरा दिया। उधर तालिबान के कब्जे की जानकारी मिलते ही काबुल के नागरिकों में भय और आतंक व्याप्त हो गया है। नागरिक देश छोड़कर भागने की तैयारी कर रहे हैं। उधर राजनयिकों को निकालने के लिए सभी देशों ने प्रयास तेज कर दिये हैं। वहीं अमेरिका ने काबुल एयरपोर्ट को अपने कब्जे में लेकर नागरिक और व्यवसायिक सेवाओं के लिए बंद कर दिया है। सिर्फ यहां से सैनिक विमानों को ही उडने और उतरने की अनुमति है।
तालिबान ने बगैर लड़े कब्जाया काबुल
तालिबान ने लम्बे संघर्ष के बाद रविवार को काबुल भी कब्जा लिया। तालिबान पिछले दो सप्ताह से अफगान सेना पर भारी पड़ रहे थे और एक के बाद एक शहरों को कब्जा रहे थे। उन्होंने पिछले तीन चार दिनों में ही कई राज्यों की राजधानियों को अपने कब्जे में ले लिया था। माना जा रहा था कि काबुल को कब्जाने में तालिबान को करीब एक महीना और लगेगा। क्योंकि अफगान सेना उनका डटकर मुकाबला कर रही थी। लेकिन, अचानक बदले घटनाक्रम में तालिबान के सामने सेना ने हथियार डाल दिये। सेना के समर्पण के बाद तालिबान ने तत्काल काबुल का रुख कर दिया और रविवार के सुबह निर्णायक जंग के लिए शहर को घेर लिया। यह सूचना मिलते ही राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ने का फैसला कर लिया। उधर अफगान सेना ने तालिबान का कोई प्रतिशोध नहीं किया। इससे तालिबान ने सीमा के अन्दर प्रवेश शुरु किया। लेकिन, तालिबान नेताओं ने उन्हें काबुल में घुसने रोका। उधर तालिबान नेताओं और अफगान अधिकारियों ने बातचीत करके सत्ता हस्तांतरण के लिए बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की। सरकार चाहती थी कि शांतिपूर्वक ढंग से सत्ता तालिबान को सौंप दी जाए और एक अंतरिम सरकार का गठन हो। लेकिन, तालिबान इसके लिए तैयार नहीं थे। इसी बीच दोपहर में खबर आयी कि राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया है, वे निकटवर्ती देश ताजिकिस्तान चले गए हैं। उनके देश से भागने की सूचना ने तालिबान का और हौसला बढ़ा दिया। तालिबान नेताओं ने रात होने तक राष्ट्रपति भवन पर अपना झंडा फहरा दिया।
बदला अफगानिस्तान का नाम, सरिया लागू करने का ऐलान
तालिबान नेताओं ने अफगानिस्तान पर कब्जा के बाद सबसे पहली घोषणा की अब अफगानिस्तान का नाम इस्लामिक अमीरात आफ अफगानिस्तान होगा। दूसरे देश में सरिया कानून लागू किया जाएगा। इन घोषणाओं के बाद दुनियाभर में अफगानिस्तान में बसे विदेशियों ने भी जैसे तैसे निकलने की तैयारी शुरु कर दी। किन्तु कोई हवाई सेवा नहीं होने के कारण एयर पोर्ट पर भारी भीड़ जुट गई। उधर काबुल की सड़कों पर गाडियों का जाम लग गया। हर कोई सुरक्षित जगह को भागने की तैयारी कर रहा था। कोई नहीं जानता कहां जाना है, किन्तु लोग काबुल से निकलना चाहते हैं। अफगानिस्तान पर एक बार फिर बीस साल बाद तालिबान का कब्जा हो गया है। तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर पहले भी राज किया था। लेकिन, अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद तालिबान को काबुल से खदेड़ दिया गया था और एक लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ था। लेकिन, आज 15 अगस्त को इस सरकार का पतन हो गया।
अमेरिकी सेनाओं के अफगान छोड़ने से बदली स्थिति
अफगानिस्तान में हालात अमेरिकी सेनाओं की वापसी के साथ ही बदलनी शुरु हो गई थी। जैसे ही अमेरिका ने अफगानिस्तान से जान का फैसला किया वैसे ही तालिबान ने अपनी रणनीतिक विजय मान लिया और इसे वास्तविक विजय में बदलने के लिए हमले तेज कर दिये। तालिबान संख्या में बहुत कम थे लेकिन पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई की रणनीति से उसने अफगान सेना पर लगातार बढ़त बनाए रखी। तालिबान ने अफगानिस्ता के बाहरी इलाकों से हमले शुरु किये। पहले दक्षिण को जीता फिर पूर्व पश्चिम और उत्तर में कब्जे करने के बाद अंत में काबुल पर कब्जा किया। हालांकि अफगानिस्तान के पास साढ़े लाख सैनिक थे और तालिबान लड़ाके सिर्फ साठ से सत्तर हजार लेकिन सेना ने उनके आगे हथियार डाल दिये। यह भी जांच का विषय है कि अफगान सेना ने वास्तव में परिस्थितवश हार मानी या उनके अंदर के तालिबान समर्थकों ने हथियार डालने को मजबूर कर दिया और तालिबान से मिल गए।
 

 
 
   
 
 
 
                               
 
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