श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ। भले ही यूपी में कांग्रेस और
समाजवादी पार्टी के गठबन्धन को लेकर दोनों दलों में
अति विश्वास का भाव हो लेकिन अतीत के आइने पर गौर
करे तो इसके पूर्व कई गठबन्धन फेल हो चुके हैं। इस
बार कांग्रेस और सपा के गठबन्धन का कितना चुनावी लाभ
होगा यह तो चुनाव परिणाम से तय होगा लेकिन इतना तो
तय है अबतक हुए चुनावी पूव गठबन्धनों में केवल 1993
में सपा बसपा का ही चुनाव पूर्व एक ऐसा गठबन्धन है
जो प्रदेश में सरकार बना सका है।
1992 में कल्याण सिंह सरकार गिरने के
बाद जब यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए तो समाजवादी
पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाजपार्टी
के अध्यक्ष कांशीराम ने चुनावी गठबन्धन किया। गठबन्धन
में सपा के हिस्सें में 256 सीटें और बसपा ने 164
सीटे ली। चुनाव परिणाम जब सामने आए तो समाजवादी
पार्टी ने 109 सीटे और बसपा ने 67 सीटें जीती। यह
गठबन्धन आपसी शर्तों के बाद प्रदेश की सत्तासीन
हो गया। मुलायम सिंह यादव दूसरी बार मुख्यमंत्री बने
। बाद में आपसी खींचतान के बाद सपा बसपा अलग हो गए।
हाल यह हुआ कि लोकतंत्र के लिए ‘स्टेट गेस्ट हाउस
कांड’ एक काला इतिहास बन गया।
गठबन्धन टूटते ही तीसरे नम्बर की
ताकत वाली भाजपा बहुजन समाज पार्टी के साथ हो गयी।
भाजपा ने कांषीराम को अपना समर्थन देकर मायावती को
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन करवा दिया लेकिन यह
तालमेल भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका जिसका परिणाम
यह रहा कि प्रदेश की जनता को एक बार फिर 1996 में
विधानसभा चुनाव का सामना करना पड़ा। सत्ता का सुख भोग
चुकी बसपा ने इस बार कांग्रेस से गठबन्धन कर चुनावी
नैया पार करने की रणनीति बनाई। इस बात पर सहमति बनी
कि कांग्रेस 126 सीटों पर चुनाव लडे़गी और बसपा 296
सीटे लडे़गी। परिणाम सामने आए तो बसपा केवल 67 सीटे
जीती और कांग्रेस 33 सीटे जीती। दोनों दल सत्ता से
काफी दूर हो गए। किसी दल को बहुमत नहीं मिला तो राष्ट्रपति
शासन लगाना पड़ा। एक साल तक निलबित रही विधानसभा को
गठित करने के लिए भाजपा ने बसपा से टूटकर आए विधायकों
के सहयोग से नई सरकार का गठनकर लिया।
कई बदलावों राजनीतिक टूटफूट और
उठापटक के बीच जब 2002 में विधानसभा के नए चुनाव
हुए तो भाजपा रालोद का गठबन्धन हो गया,चुनाव परिणाम
आने पर भाजपा को केवल 88 सीटे ही जीत सकी जबकि
हांसिए पर चल रही चौ अजित िंसह को 38 सीटों में 14
पर विजय मिलीं। चुनाव बाद किसी
दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर भाजपा
ने मायावती को मुख्यमंत्री बनाकर फिर से अपना समर्थन
दे दिया। बाद में भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले
लिया और माया सरकार गिर गई।
भाजपा ने 2007 में अपना दल के साथ
गठबन्धन किया तो भाजपा की सीटे घटकर 51 हो गयी। जबकि
उसके सहयोगी अपना दल को 4 तथा जनता दल यू को 2 सीटे
मिली और अकेले अपने दम पर 206 सीटे पाकर बसपा प्रदेश की
सत्ता पर काबिज हुई।
इसके बाद विधानसभा के 2012 में हुए
चुनाव में भाजपा का भारतीय
जनवादी पार्टी से गठबन्धन हुआ तो न इसका लाभ भाजपा
को हुआ और न ही जनवादी पार्टी को बल्कि भाजपा और नीचे
पायदान पर आ गयी। उसकी सीटे इस बार खिसककर 47 हो गयी।
जबकि सत्ता की चाभी समाजवादी पार्टी के हाथ में आई।
उसने अपने दम पर 224 सीटे जीतकर यूपी में पहली बार
पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।