उत्तराखण्डः नतीजों
से पहले सीएम पद की दौड़ शुरु |
- जय सिंह रावत- |
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Updated on: 03 March 2017, Time
20:08 |
देहरादून,
(जय सिंह रावत)।
। सूत न कपास और जुलाहों में
लट्ठमलट्ठा वाली कहावत उत्तराखण्ड में भाजपा के
मुख्यमंत्री पद के दावेदारों ने चरितार्थ कर दी है।
चुनाव नतीजे अभी आये नहीं और उससे पहले ही भाजपा के
मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में घमासान शुरू हो गयी है।
इस पद के लिये आपस में मारामारी की आशंका के चलते ही
भाजपा नेतृत्व ने अपनी ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा आगे
करने के बजाय मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा था।
उत्तराखण्ड की चौथी विधानसभा के चुनाव के लिये गत 15
फरबरी को हुये मतदान के नतीजे आगामी 11 मार्च को आने हैं
और सत्ता की एक दावेदार भाजपा के नेताओं में मुख्यमंत्री
की कुर्सी के लिये पहले ही घमासान शुरू हो गया है।
जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि भाजपा के दावेदारों ने
पहले ही एक दूसरे को हराने के लिये गोटियां बिछानीं शुरू
कर दीं थीं। जबकि इस बार जिस तरह का मतदान हुआ उसका
विश्लेषण वाले ऐसे राजनीतिक विश्लेशकों की भी कमी नहीं
है जो कि सत्ता के दोनों दावेदारों में बराबर की टक्कर
मान रहे हैं। कुछ लोग तो हरीश रावत Harish Rawat की वापसी
के प्रति भी आश्वस्त हैं।
भाजपा में चार पूर्व मुख्यमंत्रियों के होते हुये भी
मुख्यमंत्री पद के लिये प्रबल दावेदार माने जा रहे सतपाल
महाराज मतदान Satpal Maharaj के तत्काल बाद देहरादून में
पार्टी कार्यालय में मिठाई बांट कर उत्तर प्रदेश में
पार्टी प्रत्याशियों के प्रचार में चले गये हैं। सतपाल
महाराज का नाम आगे चलते देख उनके कांग्रेस के दिनों से
चले आ रहे प्रतिद्वन्दी हरक सिंह रावत Harak Singh Rawat
कहां चुप बैठने वाले थे। उनसे जब नहीं रहा गया तो
उन्होंने कहा दिया कि जिसका नाम पहले चलता है वह पिछड़
जाता है। जाहिर है कि वह स्वयं को भी इस पद के लिये
दावेदार मानते हैं जबकि भाजपा में उनकी एंट्री अभी-अभी
होने के कारण उनकी संभावनाएं काफी धूमिल हैं। हरक सिंह
रावत द्वारा सतपाल महाराज का परोक्ष विरोध किये जाने के
बाद देहरादून की डोइवाला सीट से भाजपा के प्रत्याशी
त्रिवेन्द्र सिंह रावत Trivendra Singh Rawat की
महत्वाकाक्षाएं कुलबुलाने लगीं। उनके समर्थक इन दिनों
सोशल मीडिया पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम में
जुटे हुये हैं। उनका दावा है कि जब कुछ ही साल पहले भाजपा
में आने वाले सतपाल महाराज मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो
आरएसएस संस्कारों में पले बढ़े और पढ़े त्रिवेन्द्र सिंह
रावत क्यों नहीं बन सकते। वे कहते हैं कि अगर इस बार
गढ़वाल का ही ठाकुर मुख्यमंत्री बनना है तो वह तीन
दावेदार रावतों में सबसे सीनियर भाजपाई हैं। यही नहीं
उनके सिर पर पार्टी के वरिष्ठतम् नेता भगतसिंह कोश्यारी
Bhagat Singh Koshiari का भी हाथ है। हालांकि कोश्यारी
समर्थक अब भी आशावान हैं कि पार्टी नेतृत्व कोश्यारी के
नाम पर अब भी विचार करेगा। सन् 1942 में जन्में कोश्यारी
की उम्र 75 साल हो चुकी है इसलिये उन्हें दौड़ से बाहर
माना जाता है। त्रिवेन्द्र रावत की इच्छायें जब कुलबुला
सकती हैं तो रमेश पोखरियाल निशंक Ramesh Pokharial
Nishank के लार सामने कुर्सी को देख कर क्यों नहीं टपक
सकते। वह युवा हैं तथा इन सबसे अनुभवी भी हैं। पहले भी
वह मुख्यमंत्री रह चुके हैं। राजनीतिक रणनीतिकार
प्रशान्त कशोर का सोशल मीडिया का फार्मूला कांग्रेस के
लिये कितना कारगर होता है, इसका पता तो आगामी 11 मार्च
को ही चलेगा मगर उससे पहले भाजपा के दावेदार इस फार्मूले
को अवश्य ही आजमा रहे हैं।
भाजपा के ही जानकारों के अनुसार वर्तमान में पार्टी की
ओर से मुख्त्रयमंत्री पद के लिये सबसे प्रबल दावेदार
सतपाल महाराज ही हैं लेकिन कम मतदान और भीतरघातियों ने
उनकी जीत को ही मुश्किल में डाला हुआ है। उनके लिये सबसे
बड़ा खतरा कवीन्द्र ईस्टवाल बने हुये हैं और वह भी एक
दावेदार के खसमखास माने जाते हैं। डोइवाला सीट पर भाजपा
का कोई बागी तो नहीं है मगर यहां भी भीतरघातियों ने
त्रिवेन्द्र रावत की राहें मुश्किल कर रखी हैं।
प्रतिपक्ष के नेता और प्रदेश पार्टी अध्यक्ष को
भीमुख्यमंत्री पद के लिये स्वाभाविक दावेदार माना जाता
है मगर रानीखेत में अजय भट्ट Ajay Bhatt के लिये प्रमोद
नैनवाल ने संकट खड़ा कर रखा है। पूर्व मुख्यमंत्री विजय
बहुगुणा Vijay Bahuguna स्वयं तो चुनाव नहीं लड़ रहे
मगर उनका बागी दल उनके लिये काम कर रहा है। |
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source: UP Samachar Sewa |
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