आपरेशन
उत्तराखंड में भाजपा की हर कदम पर हुई करारी हार का यही
भाव अर्थ निकला कि भले ही केंद्र में भाजपा नरेंद्र
मोदी के सशक्त नेतृत्व में काम कर रही है। भाजपा की
दूसरी पंक्ति के नेता बड़बोले, राजनीति में अपरिपक्कव
और जनभावना को समझने में अभी तक अनुभवहीन साबित हुए
हैं। चमकीले कलफदार डिजाइनर कुर्ता - जैकेट पहने नेता
जनता और जन आंदोलनों से दूर कोई पार्ट टाइम राजनीति
करते हुए दिखते हैं। अन्यथा खांटी कांग्रेसियों पर इतना
भरोसा कैसे ? भ्रष्ट कांग्रेसियों पर दाव ना खेलते तो
बीच चौराहे में पार्टी को फजीहत से बचाया जा सकता था।
हरीश रावत की सरकार को अल्प मत में बताकर पहले
बर्खास्त किया था। अब 45 दिनों के अंतराल में हुए शक्ति
परीक्षण में हरीश रावत ने विधानसभा सदन में भाजपा को
33 - 28 तक सीमित रखा। हाईकमान की हनक से कहीं बेहतर
विकल्प मानकर पीडीएफ के छह विधायकों ने हरीश रावत को
चुना है।
उत्तराखण्ड़ में
साख खो रही अटल अडवाणी की भाजपा
भाजपा के केंद्रीय
नेता बहुमत साबित होने से पहले टीवी पर बोलते सुने गये
कि हरीश रावत अपने विधायकों को चपरासी से कम सम्मान
देते हैं और पटवारी भी विधायकों की सुनवाई नही करते
हैं। सो एक ओर बगावत कांग्रेस में अवश्यसंभावी है।
अंतर मन की आवाज सुनकर कांग्रेसी विधायक भ्रष्टाचारी
का साथ छोड़कर भाजपा के सुशासन में साथ आयेंगे। हाल ही
में दलबदल कानून की चपेट में नौ बागी कांग्रेसी
उत्तराखंड विधान सभा की सदस्यता से हाथ धो चुके हैं।
अटल - आडवाणी की वर्षों की मेहनत से निखरी एक पार्टी
जिसकी थाती सुचिता, चाल, चरित्र और दावा सबसे अलग होने
का रहा है। कांग्रेस के भ्रष्टाचार और घपलों के खिलाफ
अलख जगाकर खड़ी हुई पार्टी ना जाने क्यों अब कांग्रेस
की कार्बन कॉपी बनने पर आमादा हो रही है। शायद नेता और
कार्यकर्ता चरण वंदना, गणेश परिक्रमा और चाटुकारिता को
जनाधार से अधिक उपयोगी मानने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट
से हरीश रावत सरकार की पुनः स्थापना होने पर पूरे
विश्व में राष्ट्रपति शासन की जल्दबाजी और लोकतंत्र पर
कुठाराघात के आरोप से भाजपा और देश दोनों को शर्मसार
होना पड़ सकता है।
देव भूमि में भाजपा ने कांग्रेस के दागियों से
दूषित किया अपना दामन
उत्तराखंड में भाजपा ने दो बार सरकार का स्वाद चखा है
और सवा छह साल के राज में भाजपा ने अपने चार
मुख्यमंत्री बदले और राज्य को अस्थिरता की तरफ धकेल
दिया। तीन पूर्व मुख्यमंत्री आज लोकसभा सांसद हैं और
अपने प्रदेश की राजनीति में केंद्र के इशारे पर ही
सक्रिय होते हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में तीनों
मुख्यमंत्रियों की आपसी खींचतान ने भाजपा को सत्ता से
दूर कर दिया था। चुनाव नतीजे आने पर कांग्रेस 32 और
भाजपा 31स्थानों पर विजयी रही। खंडूरी और भाजपा की
अप्रत्याशित हार का कारण पार्टी में भीतरघात बताया गया।
जब भाजपा हाईकमान ने अनुशासन की कार्यवाही नही की तब
से इस छोटे उत्तराखंड राज्य में भाजपा के कई गुट एक
दूसरे को हराने में सक्रिय रहते हैं।
आपरेशन उत्तराखंड के सूत्रधार दावा कर रहे हैं कि भाजपा
के सिद्धांतों की जीत हुई है क्योंकि कांग्रेस के दस
विधायकों ने हरीश रावत की सरकार से दलबदल किया है। अगले
तीन माह बाद उत्तराखंड में चुनाव पूर्व आचार संहिता
जारी होनी है। इस चुनावी वर्ष में कांग्रेस की गंदगी
साफ करके भाजपा ने अपने सफेद पाले को ही गंदा कर लिया
है। कांग्रेस में दल बदल नई बात नही है। कांग्रेसियों
का धड़ल्ले से भाजपा हाईकमान तक पहुंच बनाना अटल -
आडवाणी की भाजपा के लिए खतरे की घंटी है।
सत्ता की जोड़ तोड़ में दाग़ी - बाग़ी कांग्रेसी भी
चलेगा !
जनाधार से दूर भाजपा के कुछ नेता दागी कांग्रेसियों का
अछूत नही मानते और इसीलिए एम जे अकबर जो कभी भाजपा के
धुर विरोधी रहे अब सांसद और प्रवक्ता बनाए गये हैं।
आरएसएस और अटल जी पर कालिख उछालने वाले सुब्रमण्यम
स्वामी भी सांसद और राज्यसभा में पार्टी की नकेल थामे
नज़र आ रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश के बाद यही पटकथा
आपरेशन उत्तराखंड में भी दोहरायी जाने वाली थी।
भाजपा ने आपरेशन उत्तराखंड से हरीश रावत के लिए
कांग्रेस की गंदगी साफ करने का बीड़ा उठाया था। हरीश
रावत अपने घोर विरोधी दस विधायकों से छुटकारा पा गए और
अब दागी - बागियों का हिसाब भाजपा को देना है।
कांग्रेस के बागियों ने दल बदल करके लोकतंत्र को उपकृत
किया है या देश विदेश में उत्तराखंड समाज शर्मसार हुआ
या लेन देन में नेताओं के हाथ गर्म हुए हैं।
कांग्रेस से पाला बदलकर भाजपा के पक्ष में वोट डालने
वाली विधायक पहले भाजपा के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़
चुकी हैं। फिर चुनाव हारकर अपने संपर्कोे से भाजपा
ज्वाइन करने में कामयाब रही । फिर ऐन उपचुनाव के समय
भाजपा का टिकट ठुकराकर कांग्रेस के खेमें में हरीश
रावत को मजबूत करने चली गयी। अब चर्चा है कि इनके पति
को उत्तर प्रदेश में टिकट देने की डील हुई है।
जहां सुई काम आनी थी वहां हाईकमान ने तोप चला दी !
भाजपा हाईकमान ने आपरेशन उत्तराखंड के लिए चार्टर
प्लेन से लेकर सारे उपकरण मुहैया कराये थे लेकिन
कांग्रेस छिन्न - भिन्न नही हो पायी। वहीं संसद, सड़क
और कोर्ट में भाजपा को बागी - दागी कांग्रेसियों की
शान में कसीदे़ पढ़ने पर मजबूर होना पड़ा। मानों हरीश
रावत के चंगुल से इन विधायकों को छुड़ाकर भाजपा ने
लाहौर जीत लिया है।
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा हरीश
रावत के कुशासन को आसानी से मात दे सकती थी और लूट -
खसोट के अधिकांश आरोप जनता के गले उतर सकते थे। भाजपा
हाईकमान ने अपने पूर्व मुख्यमंत्रियों की जगह कांग्रेस
में बगावत को तरजी़ह दी और यह चाल उलटी पड़ गयी है।
उत्तराखंड राज्य में नेताओं की तिकड़मों को हेय दृष्टि
से देखा जाता है और इसी डर से दोनों पार्टियों के नेता
निरंतर अपनी चुनावी सीट बदलते रहते हैं। पिछले तीन
चुनावों में दोनों पार्टियों के अनेक कैबिनेट मंत्री
और भाजपा के दो पूर्व मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव में
हार का मंुह देख चुके हैं।
भाजपा ने चुनावी साल में जरुरत से कहीं अधिक गोला -
बारुद हरीश रावत की सरकार गिराने के लिए बरबाद किया
है। हरीश रावत तिकड़मों में इक्कीस ही साबित हुए हैं।
निरंतर देवी - देवताओं का आह्वान करते, देव भूमि में
पहाड़ की संस्कृति, आन - बान के साथ छल कपट और कोर्ट
से न्याय की गुहार लगाकर पहाड़ी समाज के बीच भावुक
अपील कर रहे हैं। यह सब भाजपा के केंद्रीय पदाधिकारी
की समझ से परे है। हरीश रावत को सीबीआई के झमेले में
उलझाने की रणनीति बड़ी सहायक नही है। उत्तराखंड के कुछ
बड़े राजनेता सीबीआई के जाल से बिना नुकसान बाहर निकल
चुके हैं।
भूपत सिंह
बिष्ट