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उत्तराखण्डः भाजपा को अपने क्षत्रपों की क्षमता पर संशय
कल के विरोधी आज हमसफरः बहुगुणा और रावत के भरोसे कांग्रेस को चुनौती देनी की तैयारी
 भूपत सिंह बिष्ट
Publised on : 20 May 2016,  Last updated Time 23:00
देहरादून । (उ.प्र.समाचार सेवा)। 18 मई की रात आनन - फानन में उत्तराखंड कांग्रेस के बागियों को भाजपा में शामिल करके यह साफ हो गया कि इन बागियों के भरोसे ही भाजपा अब हरीश रावत को सत्ता से बेदखल करना चाहती है। इस आयोजन को भव्य बनाने के लिए दोपहर में भाजपा कोर कमेटी की आपात बैठक बुलायी गई लेकिन गढ़वाल भाजपा के सभी बड़े नेताओं और दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने हाईकमान के इस फैसले का खुलकर विरोध कर दिया और दिल्ली में रहकर भी स्वागत समारोह से अपनी दूरी बनायी।

तीन पूर्व मुख्यमंत्री दरकिनार कर दी बागियों को इण्ट्री

भाजपा हाईकमान हरक सिंह और विजय बहुगुणा के दमपर कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री हरीश रावत को चुनौती देगी जो कल तक भाजपा की नाक में दम किए हुए थे। कांग्रेस के सभी दस बागी विधायकों को भाजपा में प्रवेश देकर हाईकमान ने अपने क्षत्रपों की क्षमता और संगठन पर संशय उठा दिया है। तीन पूर्व मुख्यमंत्री वाली भाजपा नेताओं की गुडविल भी बागियों से कमतर आंकी गई है। उत्तराखंड भाजपा अब बागी कांग्रेस की शरण स्थली और कांग्रेस की बी टीम बनकर उभरी है।
भाजपा हाईकमान का यह राजनीतिक प्रयोग असम और अरुणाचल की पुनरावृत्ति है लेकिन वहां भाजपा का संगठन शून्य था। उत्तराखंड राज्य में भाजपा दो बार सत्ता हासिल कर चुकी है और उसके खेमे में तीन पूर्व मुख्यमंत्री वर्तमान में लोकसभा में सक्रिय सांसद हैं। अब कांग्रेस से आयातित नेताओं का मंत्री और मुख्यमंत्री की दौड़ में आ जाना ईमानदार नेताओं पर हाईकमान का करारा प्रहार साबित हुआ है।

हरक सिंह पर हाईकमान का भरोसा गढ़वाल भाजपा नेताओं को पंसद नही

हरक सिंह रावत ने भले ही राजनीतिक पारी भाजपा से शुरु की थी और अब अपने कैरियर की ढलान पर फिर भाजपा के पाले में आ गए हैं। लेकिन उनका पालिटिकल सफर बेहद चर्चित रहा है। अपने स्वार्थ के लिए मायावती की बसपा में जाने में कोई गुरेज नही किया। फिर सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा के भरोसे कांग्रेस में जगह बनायी लेकिन भरोसेमन्द साबित नही हुए। उत्तराखंड की पहली सरकार में नारायण दत तिवारी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाये गए लेकिन एक महिला के मामले में सीबीआई झमेले में फंसे और मंत्रीपद गंवाया। सहसपुर, देहरादून में ज़मीन घोटाले से लेकर अपने करीबियों के लिए सीमायं लांघने से लेकर हाल ही के स्टिंग आपरेशन में उनका किरदार कहीं भी नैतिक मूल्यों पर जायज नही ठहराया जा सकता।

सिमट चुका है गढवाल में हरक सिंह का जनाधार

गढ़वाल भाजपा के नेताओं की आम राय है कि हरक सिंह का फिर से दलबदल कर भाजपा में आना अपने लिए सुरक्षा कवच हासिल करने जैसा है। क्योंकि कथित घपलों से उबरने के लिए और हरीश रावत के कोप से बचने के लिए भाजपा ही उनका सहारा बचा है। जहां तक वोट बैंक का सवाल है - जनरल खंडूडी के खिलाफ 2014 के गढ़वाल लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा सीट पर हरक सिंह रावत को हार का मुंह देखना पड़ा और उनका वोट कांग्रेस के निशान के बावजूद सिमट गया है। गढ़वाल लोकसभा सीट पर बसपा प्रत्याशी के रुप में हरक सिंह की पहले भी जमानत जब्त हो चुकी है। अब गढ़वाल मंडल भाजपा का कोई नेता अपनी विधानसभा सीट पर हरक सिंह रावत की दलबदलू छवि के कारण सहयोग या प्रचार का जोखि़म नही उठाना चाहता है।
उत्तराखंड के दो मंडलों में कुल पांच लोकसभा और 70 विधानसभा क्षेत्र हैं। गढ़वाल मंडल की तीन लोकसभा सीट गढ़वाल, टिहरी और हरिद्वार का दायरा 42 विधानसभा सीटों में फैला है। कुमायूं मंडल की दो लोकसभा सीट नैनीताल और अलमोड़ा सुरक्षित में बाकि 28 विधानसभा सीट आती हैं। हरिद्वार जनपद में ग्यारह विधानसभा सीट हैं और इसकी तीन -चार सीटों पर गढ़वाली वोट हार जीत का फेक्टर बनता रहा है। युवा पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने हरीश रावत की धर्मपत्नी को हरिद्वार लोकसभा चुनावा में बड़े अंतर से हराया है। उत्तराखंड के युवा भाजपा और कांग्रेस पार्टियों के बीच नेताओं की बेरोकटोक चहल कदमी भ्रष्ट आचरण मानते हैं।

कांग्रेस के बागी अब भाजपा टिकट के लिए एकजुट हुए हैं !

टिहरी लोकसभा सीट पर विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत बहुगुणा लगातार दो बार भाजपा की माला राज्य लक्ष्मी शाह से पराजित हुए हैं। जाहिर है कि बागी कांग्रेस विजय बहुगुणा का जनाधार टिहरी संसदीय क्षेत्र में निरंतर कमजोर हुआ है। वहीं हरक सिंह रावत उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में निरंतर अपनी सीट बदलते रहे हैं और परंपरागत कांग्रेस वोट, जातिगत संतुलन और स्थानीय मुद्दों के चलते दो बार लैंसडाउन और एक बार रुद्रप्रयाग सीट से विजयी रहे हैं। अब हरक सिंह रुद्रप्रयाग सीट से चुनाव लड़ने को तैयार नही है और पोलिटिकल कैरियर भी ढलान पर है। कांग्रेस पार्टी में कमजोर पड़ने पर हरक सिंह ने हरीश रावत के खिलाफ बगावत का असफल प्रयास किया।
भाजपा के कुछ नेता अपने स्वार्थ के चलते हरक सिंह पर फिर से दाव खेल रहे हैं जबकि उनके पहले प्रयास में भाजपा को सड़क से संसद तक और हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में राजनीतिक भ्रष्ट आचरण के लिए शर्मिदंगी उठानी पड़ी है। हरक सिंह और विजय बहुगुणा जैसे कांग्रेस के बागियों के लिए भाजपा हाईकमान के पलक पावड़े बिछाने से कार्यकर्ता हताशा में है।

भाजपा में पहाड़ के ईमानदार नेतृत्व को खारिज करने का प्रयास !

भाजपा ने दल बदल को बढ़ावा देकर अब पार्टी में सत्ता के लिए किसी भी स्तर पर छल बल और किसी के भी साथ जाने का मार्ग खोल दिया है। हाईकमान के सुर में सुर मिलाने वाले नेता जनाधार से परे हैं और उत्तराखंड में ईमानदार छवि रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जैसे नेताओं को हज़म नही कर पा रहे थे। गढ़वाल मंडल का राजनीतिक मिजाज समझने वाले सभी छोटे बड़े नेताओं ने बागियों को भाजपा में प्रवेश देने का विरोध किया है।
भाजपा में आरएसएस का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिकांश नेता उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की उपेक्षा करके नगरीय और मैदानी भाजपा नेताओं को आगे बढ़ाने का ताना - बाना बुनते नज़र आते हैं। इसी क्रम में पहाड़ विरोधी के रुप में चर्चित मदन कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनाने की मुहिम चलायी गई और आज तक एड - हाक व्यवस्था के नाम पर अजय भट्ट प्रदेश अघ्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष दोनों पदों पर बने हुए हैं।
बागी कांग्रेसी कब तक भाजपा के कमल को खिलायेंगे - यह तो समय के गर्भ में है लेकिन इनका आचरण और राजनीति संघ और संस्कारी लोगों को सहजता से स्वीकार्य नही हो सकती है। भाजपा में अगली टूट - फूट का पूरा दारोमदार इन्ही आया राम - गया राम पर रहेगा। राजनीति में अनुशासनहीनता और दलबदल को प्रश्रय देना बिहार में भाजपा की करारी हार का एक कारण रहा है। बाहरी मसाला भाजपा के रंग - ढंग को उत्तराखंड में कितना रास आयेगा यह सब अगले नौ माह के भीतर होने वाले विधानसभा चुनाव में जग जाहिर हो जायेगा।

उत्तराखण्डः कांग्रेस बागियों के लिए भाजपा का सरेन्डर  
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News source: UP Samachar Sewa

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