लखनऊ, 01 अगस्त, 2020 ( उ.प्र.समाचार सेवा)।
चर्चित राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ अमर स सिंह नहीं रहे। उन्होंने शनिवार को सिंगापुर के चिकित्सालय में अंतिम सांस ली। अमर सिंह (64) लम्बे समय से गुर्दों की बीमारी से ग्रसित थे। अमर सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ ने शोक संवेदना व्यक्त की है। अमर सिंह राजनीति के तमाम रहस्य समेटे थे। उनके जाने के साथ ही कई राज उनके साथ ही चले गए।
सपा के चाणक्य बने, फिर निष्कासित भी हुए
प्रदेश के आजमगढ़ जनपद में जन्मे अमर सिंह मूलतः कांग्रेसी थे। वे उद्योग जगत से होते हुए राजनीति में आये थे। उन्होंने कांग्रेस के साथ ही राजनीति की शुरुआत की। किन्तु कालांतर में वे समाजवादी हो गए। उत्तर प्रदेश में जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया तो अमर सिंह ने उनका
साथ दिया। अमर सिंह एक समय समाजवादी पार्टी के चाणक्य हो गए थे। अधिकांश फैसले मुलायम सिंह यादव अमर सिंह की सलाह से ही लेते थे। यहां तक कि पार्टी में टिकट बंटबारे से लेकर मंत्रिपरिषद् के सदस्य तय करने में भी अमर सिंह की अहम भूमिका होती थी। इस हैसियत के कारण अमर सिंह के समजावादी पार्टी
में विरोधी भी हो गए थे। यहां तक कि यादव परिवार से विरोध के स्वर उठने लगे थे। सपा के वरिष्ठ नेता और मुस्लिम चेहरा रहे आजम खां के साथ उनका सीधा टकराव हो गया था। आजम खां के विरोध के बावजूद वे जयाप्रदा को 2009 में रामपुर से लोकसभा का टिकट दिलवाने तथा जिताने में सफल रहे थे।
हालांकि इसी विरोध की बदौलत पहले सपा से आजम खां का निष्कासन हुआ। लेकिन, समय ने ऐसा पलटा खाया कि 2012 के विधान सभा चुनाव के पहले मुलायम सिंह यादव ने सीधे आजम खां के घर पहुंच कर उन्हें फिर से पार्टी में शामिल कर लिया और आजम की शर्त पर अमर सिंह का निष्कासन कर दिया। इसके बाद से उनके सपा
के साथ तल्ख रिश्ते हो गए थे। किन्तु अमर सिंह की यह खासियत रही कि उन्होंने अंतिम दिन तक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ कभी मुंह नहीं खोला। हालांकि वे यह कहते रहे कि उनके पास ऐसे राज हैं कि यदि मुंह खोल दिया को भूचाल आ जाएगा। आज ये सभी राज अमर सिंह के साथ चले गए।
मुलायम सिंह को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनवाने में थी भूमिका
वर्ष 2003 में मुख्यमंत्री मायावती की सरकार में साझीदार रही भारतीय जनता पार्टी के समर्थन वापस लेने के बाद मध्यावधि चुनाव की सभावना को टाल कर अमर सिंह ने ही मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री बनवाया था। भाजपा के अधिकांश नेता चाहते थे कि मध्यावधि चुनाव हो जाएं। मुख्यमंत्री मायावती ने भी
त्यागपत्र देते समय राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री से विधान सभा भंग करने की सिफारिश की थी। किन्तु अमर सिंह ने भाजपा में निकटता और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ निकट परिचय के चलते उन्हें इस बात के लिए तैयार कर लिया कि यूपी में विधान सभा चुनाव न कराकर वैकल्पिक सरकार बनबा
दी जाए। क्योंकि समाजवादी पार्टी सबसे बड़ा दल था और मुख्य विपक्षी पार्टी थी। इसलिए अटल जी इस बात के लिए तैयार हो गए कि प्रदेश में मुलायम सिंह यादव को सरकार बनाने का मौका दे दिया जाए।
इसके बाद ही अनिच्छा के साथ विष्णुकांत शास्त्री ने मुलायम सिंह यादव को मुख्यमत्री पद की शपथ दिला दी थी। यह वही दौर था जब अमर सिंह प्रधानमंत्री स्व वाजपेयी को कहा था कि श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी प्रातः स्मरणीय हैं। मुलायम सिह के इस साढ़े तीन साल के कार्यकाल में अमर सिंह की तूती बोलती
थी। उन्हें उत्तर प्रदेश विकास परिषद् का चेयरमैन बनाया गया था। लेकिन, वे एक तरह से पूरी सरकार में प्रभावी थे।
अंतिम समय बने भाजपा समर्थक
बीते कुछ वर्षों से अमर सिंह की भाजपा के साथ निकटता हो गई थी। वैसे उनकी सभी दलों के नेताओं के साथ अच्छी मित्रता रहती थी किन्तु भाजपा के कई नेताओं के वे निकट थे। एक समय उनकी भाजपा के साथ जाने की चर्चा भी तेज हो गई थी। किन्तु वे तो भाजपा में नहीं गए किन्तु अपनी राजनीतिक सहयोगी जयाप्रदा
को 2019 के चुनाव में रामपुर लोकसभा सीट से भाजपा का टिकट दिलाने में सफल रहे थे। हालांकि यहां से आजम खां के मुकाबले जया प्रदा नहीं जीत सकीं। अमर सिंह को अंतिम कुछ सालों में वैराग्य हो गया था। उन्होंने अपनी आजमगढ़ की सम्पत्ति का काफी हिस्सा संघ के समर्थक सेवा भारती को दे दिया था। |