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संस्कृति किसी भी समाज की पहचान : प्रो.
एमपी सिंह |
- टीएमयू के
शिक्षा संकाय की ओर से वर्तमान संदर्भ
में शिक्षा के विभिन्न आयामों पर आयोजित
सात दिनी एफडीपी का समापन
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Tags: #U.P Samachar Sewa ,
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Publised
on : 2021:07:13
Time 19:40 |
मुरादाबाद,
13 जुलाई 2021 ( उ.प्र.समाचार सेवा)। छात्र कल्याण
निदेशक प्रो. एमपी सिंह ने कहा है संस्कृति किसी समाज
की पहचान होती है। यह उसके रहन-सहन और खान-पान की
विधियों, व्यवहार प्रतिमानों, रीति-रिवाज, कला-कौशल,
संगीत-नृत्य, भाषा-साहित्य, धर्म दर्शन, आदर्श विश्वास
और मूल्यों के विशिष्ट रूप में जीवित रहती है, इसीलिए
संस्कृति और शिक्षा में गहरा सम्बन्ध है। ये एक-दूसरे
को प्रभावित करते हैं। वह तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी
के फैकल्टी ऑफ़ एजुकेशन की ओर से वर्तमान संदर्भ में
शिक्षा के विभिन्न आयामों पर आयोजित सात दिनी वर्चुअली
फैकल्टी डवलपमेंट प्रोग्राम-एफडीपी के समापन मौके पर
बोल रहे थे।
एफडीपी में शिव ओम अग्रवाल मेमोरियल के सेक्रेटरी डॉ.
निखिल रंजन अग्रवाल ने एसेसिंग क्वालिटी एजुकेशन इन
सेल्फ फाइनेंस हायर एजुकेशन इंस्टीटूशन्स, इंदिरा गाँधी
नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी, अमरकंटक, एमपी के फैकल्टी
डॉ. विनोद सेन ने हायर एजुकेशन : इंपैक्ट ऑफ़ कोविड- 19
और भारतीय महाविद्यालय, फर्रुखाबाद, यूपी के फैकल्टी
डॉ. जितेन्द्र सिंह गोयल ने पीएचडी थीसिस: वैरियस
इम्पैक्टस इंवॉल्वड इन राइटिंग पर अपने व्याख्यान दिए
। मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद,
तेलंगाना की फैकल्टी डॉ. फरहा दीबा बाजमी ने भारत की
शिक्षा और सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए कहा,
शिक्षा केवल वह नहीं, जो हम शैक्षिक संस्थानों में
प्राप्त करते हैं बल्कि व्यापक अर्थ में शिक्षा एक
आजीवन चलने वाली अनवरत प्रक्रिया है। उन्होंने बताया,
शिक्षा पर संस्कृति का व्यापक प्रभाव पड़ता है, इसीलिए
हमें बालक के सांस्कृतिक परिवेश पर विशेष ध्यान देना
चाहिए। भारतीय संस्कृति ने हमेशा शिक्षण संस्थानों को
विद्या मंदिर माना है। डॉ. बाजमी ने बताया, किस तरह
शिक्षा और संस्कृति एक दूसरे को प्रभावित करते हैं?
साथ ही भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश
डालते हुए उन्होंने बताया, भारतीय संस्कृति किस तरह
पाश्चात्य संस्कृति से भिन्न है।
डॉ. बाजमी बोलीं, वैदिक काल से ही शिक्षण संस्थानों
में भारतीय संस्कृति का व्यापक प्रभाव देखने को मिलता
है, इसीलिए भारतीय संस्कृति समाज की सम्पूर्ण जीवन शैली
की द्योतक है। इसमें समाज विशेष की रहन-सहन और खान-पान
की विधियाँ व्यवहार प्रीतिमान, आचार-विचार, रीति-रिवाज,
कला-कौशल, संगीत-नृत्य, भाषा-साहित्य, धर्म-दर्शन,
आदर्श-विश्वास और मूल्य सब कुछ समाहित होते हैं।
प्रत्येक समाज अपने आने वाली पीढ़ी को इन सब में
प्रशिक्षित कर देना चाहता है। अंत में बोलीं, किस तरह
शिक्षा संस्कृति का संरक्षण करती है और एक पीढ़ी से
दूसरी पीढ़ी में संस्कृति के हस्तांतरण में मुख्य
भूमिका निभाती है। इस मौके पर फैकल्टी ऑफ़ एजुकेशन की
प्राचार्या डॉ. रश्मि मेहरोत्रा, आदिनाथ कॉलेज ऑफ़
एजुकेशन के प्राचार्य डॉ. रत्नेश जैन, एआर श्री दीपक
मलिक, श्री विनय कुमार, श्री धर्मेंद्र सिंह, शाज़िया
सुल्तान, डॉ. सुगंधा जैन श्रीमती पायल शर्मा, श्री
हेमंत सिंह, नहीद बी, मोहिता वर्मा आदि उपस्थित रहे। |
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