लोकतंत्र
में विरोध और असहमति जनता का मौलिक अधिकार
है। कोई जरूरी नहीं कि हर नागरिक सरकार
की किसी बात से या नीति से सहमत ही हो।
अगर वह अहसमति रखता है, यदि उसके विचार
भिन्न हैं तो वह प्रतिरोध कर सकता है।
असहमति जता सकता है। लेकिन, इसके लिए
लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। विरोध में
प्रदर्शन और धरना आदि उसके सर्वमान्य तरीके
हैं। लेकिन, विरोध के नाम पर हिंसा फैलाना
किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकता
है। आज भी यही हुआ, विरोध के नाम पर हिंसा
फैलायी गई। उग्र प्रदर्शन के नाम पर
सार्वजनिक और निजी सम्पत्ति को नुकसान
पहुंचाया गया। पुलिस पर हमले किये गए।
मीडिया को निशाना बनाया गया। ये सब किस
लिए क्या इसके पीछे का मकसद सिर्फ और
सिर्फ विरोध था। ऐसा नहीं लगता है कि
एजेण्डा कुछ और है। जिन लोंगों ने 19
दिसम्बर के प्रदर्शन की योजना बनायी क्या
वे नागरिकता संशोधन कानून को पूरी तरह समझ
पाये हैं। लगता है उन्होंने नहीं समझा है
अथवा समझ कर भी नासमझ बन रहे हैं। आज
स्वतंत्रता संग्राम के तीन शहीदों का
बलिदान दिवस है। इस दिन पर नागरिकता
संशोधन कानून का विरोध करने का निर्णय लिया
गया। यह ठीक कोई भी दिन निर्धारित किया जा
सकता था। लेकिन इन लोगों ने स्वयं को
क्रान्तिकारी मानकर इस दिवस पर प्रदर्शन
करने का फैसला किया होगा। लेकिन, हुआ
क्या-जबरदस्त उपद्रव। राजधानी लखनऊ में जो
दृश्य देखने को मिला वैसा लखनऊ के बारे
में सोचा भी नहीं जा सकता।लखनऊ को तहजीब
का शहर कहा जाता है। लेकिन, इस शहर के छोटे
छोटे बच्चे जिस तरह पर हमलावर हो रहे थे।
हाथों में पत्थर लिये मुकाबला कर रहे थे।
उससे लगा कि यह लखनऊ नहीं श्रीनगर का
लालचौक है। इस पथराव ने एक दर्जन से ज्यादा
पुलिस वालों को घायल कर दिया। वाहनों को
आग के हवाले कर दिया। पुलिस चौकियां फूंक
दीं। क्या ये शहीदों के अनुयायी हैं। इससे
ऐसा लगता है कि इनका मकसद नागरिकता संशोधन
कानून विरोध करना नहीं बल्कि लखनऊ की
कानून व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ना था।
ये लोग कहां से इतने पत्थर ले आये कि दो
घण्टे तक पुलिस से मुकाबला करते रहे।
पुलिस पर बोतलें फेंकी गईं। वाहनों में
पेट्रोल डाल कर आग लगाई गई। कहां से आया
आग लगाने का सामान। इन सवालों का उत्तर आना
जरूरी है। लखनऊ में हुए हिंसक प्रदर्शन के
पीछे कोई बड़ी साजिश है। किसी ने इसकी
योजना बनाई थी। युवाओं को उकसाया गया था।
इस बवाल में छोटे छोटे बच्चे भी शामिल थे।
अधिकांश उपद्रवियों की उम्र चौदह से बीस
साल के बीच थी। इस किशोर उम्र भी भीड़ को
किसने उकसाया था। इसकी जांच किया जना जरूरी
है। इसके पीछे छिपे तत्वों को खोजकर सामने
लाया जाए। इन लोगों ने एक तरह से बलिदान
दिवस पर उपद्रव करके इस दिवस का भी अपमान
कर दिया।
( उप्रससे ) |