राज बब्बर को मिला
बेदाग छवि का ईनाम, 150 सीटों का
लक्ष्य भेदना आसान नहीं
राजेश सिंह
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Publised
on : 13 July 2016, Last updated
Time 22:46
लखनऊ।
फिल्मी चकाचौंध से सियासी दुनिया में आए राज बब्बर को
बेदाग छवि एवं विनम्रता का लाभ मिल गया। लेकिन उनके
समक्ष यूपी में होने जा रहे सियासी दंगल में वालीवुड
के ग्लैमर को वोटों में तब्दील करने की बडी चुनौती है।
इसके साथ ही उन्हें जातीय तिलिस्म में जकडी सूबे की
सियासत को तोडना होगा। जिससे प्रदेष में कांग्रेस के
सिमटते जनाधार को बढाया जा सके।
तकरीबन चार दषक तक फिल्मी दुनिया में अपना नाम कमाने
वाले राज बब्बर केा कांग्रेस हाईकमान में बडी
जिम्मेदारी सौंपी है। क्योंकि यूपी में कांग्रेस के
चुनाव प्रबंधन का काम देख रहे प्रषांत किषोर ने 2017
के आम चुनाव में पार्टी के लिए करीब 150 सीटों का
लक्ष्य तय किया है। इस लक्ष्य को भेदने के लिए उन्हें
पार्टी में चल रही गुटबाजी पर विराम लगाकर विरोधियों
को परास्त करने की रणनीति बनानी होगी। आम तौर पर
ग्लैमर को देखने के लिए भीड तो खुब जुटती है पर वह वोटों
में तब्दील नहीं हो पाती। ऐसे में राज बब्बर को इस भीड
को वोटों में परिवर्तित कराने की भी चुनौती है। इसके
लिए संगठन को बूथ स्तर मजबूत करना होगा। संगठन में काम
करने का उनके समक्ष कोई खास अनुभव नहीं है। इसके अलावा
यहां पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री
अखिलेष यादव, बसपा प्रमुख मायावती से भी मुकाबला करना
होगा।
राज बब्बर को यूपी के प्रदेष अध्यक्ष का ओहदा उनके
ईमानदारी एवं बेदाग छवि के कारण मिला। यह कांग्रेस
उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी माने जाते है। इसीलिए
कांग्रेस ने कई दिग्गजों को दरकिनार कर उन्हें
उत्तराखण्ड से राज्यसभा सदस्य बना दिया। इसके अलावा वह
मुख्यमंत्री की पत्नी डिपंल यादव को फिरोजाबाद से
पराजित कर चुके है। सपा में रहकर भी उसके अंदरूनी बातों
से भली भांति वाकिब है। इन्हें मुखर वक्ता के रूप में
जाना जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पर
टिप्पडी कर चुके है। इसके अलावा प्रदेष के आगरा जनपद
में जन्मे राज बब्बर मृदुभाशी होने के साथ ही देष मंे
एक चर्चित चेहरा भी है। यह आगरा से भी कई बार सांसद बन
चुके है। लखनऊ से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी
बाजपेयी के समक्ष यह चुनाव लड चुके है। पिछड़ों के
इर्द केन्द्रित हो रही प्रदेष की राजनीति को उबार कर
सर्वण एवं मुस्लिमों में रूझान पैदा करा होगा। जिससे
चुनाव में कांग्रेस का कल्याण हो चुके है। क्योंकि
कांग्रेस का जनाधार बीते तीन दषक से यूपी में लगातार
कम होता जा रहा है। इस तरह राज बब्बर कांग्रेस को कितना
लाभ दिला पायेंगे यह भविश्य के गर्भ में है।
जातीय संतुलन साधने की कोषिष
कांग्रेस हाईकमान में आगामी विधानसभा चुनाव को देख
जातीय संतुलन साधने की कोषिष की है। राज बब्बर स्वयं
पिछडी जाति के है लेकिन उनकी पत्नी मुस्लिम समाज से
ताल्लुक रखती है। इसी तरह पार्टी ने चार उपाध्यक्ष
मनोनीति किये है। इसमें राजा राम पाल यह पाल समाज के
है। इस जाति का कोई सर्वमान्य नेता नहीं है। ऐसे में
यह कई जिलों में अपने समाज को कांग्रेस की ओर जोड सकते
है। इसके साथ ही राजेष मिश्र ब्राम्हण समाज के है।
प्रदेष में करीब नौ प्रतिषत इस वर्ग के मतदाता है।
भाजपा से दूर होते इस वर्ग के लोगों को जोडने में मदद
मिलेगी। इसी तरह दलित जाति के भगवती प्रसाद चौधरी को
भी उपाध्यक्ष बनाया गया है। इसके जरिये पार्टी दलित
वोट बैक में सेंध लगा सकेगी। इमरान मसूद का भी कद बढाया
गया है। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पर हमला बोल
चुके है। इसके जरिये मुस्लिम मतों को जोडा जा सकेगा। तीन दषक से दहाई में सिमटी
कांग्रेस
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के बाद
कांग्रेस प्रदेष में 39 प्रतिषत मतों के साथ 269 सीटों
पर कब्जा की थी। लेकिन 1989 से अब तक कांग्रेस विधायकों
की संख्या दहाई में ही सिमट कर रह गयी है। वर्श 1989
के चुनाव में कांगं्रेस 27 प्रतिषत मत लेकर 94 सीटें
ही बचा पायी। 1991 के चुनाव में कांग्रेस 17 प्रतिषत
वोट लेकर 46 सीटों में सिमट गयी। इसी तरह 1996 में 15
प्रतिषत मत और 28 सीटें, 2002 में नौ प्रतिषत वोट एवं
25 सीटें ही जीत पायी। इसी तरह 2007 के चुनाव में
कांग्रेस आठ प्रतिषत लेकर 22 सीटें तथा 2012 के चुनाव
में 11 प्रतिषत मतों के साथ 28 सीट ही जीत सकी।