कोरोना
के खिलाफ लड़ाई में निजी अस्पतालों का
सहयोग लेने का उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ का फैसला स्वागत योग्य है।
उन्होंने इस महामारी से युद्ध में अभी तक
लड़ रहे केवल सरकारी चिकित्सा तंत्र को
कुछ राहत देने का भी प्रयास किया है। जब
से देश में कोरोना का कहर शुरु हुआ है।
सबसे पहले इस संक्रामक बीमारी के इलाज से
दूर अगर कोई भागा तो वह था निजी चिकित्सा
क्षेत्र । लाकडाउन शुरु होते कोरोना की
संदिग्धों में जांच, उन्हें क्वारेंटाइन
करने, संक्रमितों को आरसोलेशन में रखने और
फिर उनका इलाज करने के लिए सरकारी अस्पताल,
राजकीय मेडिकल कालेज और पोस्ट ग्रेजुएट
संस्थान ही आगे आये। इनके स्वास्त्यकर्मियों
और डाक्टरों ने खतरे मोल लेकर भी मरीजों
का इलाज जारी रखा, यही वजह है कि कई स्थानों
पर स्वास्थ्यकर्मी भी कोरोना संक्रमित हो
गए। कई जगह लोगों की जान भी चली गई। ऐसी
स्थिति में जब पूरे देश का चिकित्सा
क्षेत्र महामारी से लड़ रहा है तो निजी
अस्पतालों की क्या भूमिका हो? इस पर विचार
के लिए उन्हें खुद आगे आना चाहिए था।
लेकिन, बड़ी-बड़ी फीस लेकर निजी अस्पतालों
में ओपीडी चलाने वाले डाक्टर और निजी
नर्सिंग होमों के मालिकों ने इससे किनारा
कर लिया। जब स्वास्थ्य का गंभीर संकट आया
तो देश की जनता को सरकारी अस्पतालों का ही
सहारा लेना पड़ा है। निजी क्षेत्र की
भागीदारी कहीं भी दिखायी नहीं दे रही है।
इसका असर यह हुआ कि सरकारी अस्पतालों का
सारा सिस्टम कोरोना के इलाज और बचाव में
ही जुट गया। इससे अन्य उपचार की सुविधाएं
यहां तक की ओपीड़ी, सामान्य आपरेशन, किड़नी,
कैंसर, हृदय रोग आदि का इलाज ही मिलना बंद
हो गया है। अब ऐसे समय में यह जिम्मेदारी
निजी अस्पतालों को उठानी चाहिए थी कि वह
सामान्य रोगों का इलाज जारी रखें। लेकिन,
सरकार की अनदेखी और निजी क्षेत्र की
उपेक्षा दोनों ने मरीजों को उनके हाल पर
छोड़ दिया। वैसे भी जब पूरा देश कोरोना से
लड़ रहा है तो निजी अस्पतालों को खुद ही
अपने यहां कोरोना के इलाज और आइसोलेशन
वार्ड की व्यवस्था करनी चाहिए थी। हालत यह
है कि कोरोना के इलाज में लगे डाक्टरों और
नर्सों को कई कई घंटे तक लगातार दो से तीन
शिफ्ट में ड्यूटी करनी पड़ रही है। मेडिकल
कालेजों में रेजिडेंट्स ने अहम भूमिका
निभाई है। उन्होंने जान जोखिम में डालकर
भी अपना कर्तव्य निभाया है। लेकिन, अब
राहत भरी खबर यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार
ने यह फैसला किया है। कोरोना के खिलाफ
लड़ाई में निजी अस्पतालों का भी सहयोग लिया
जाएगा। इन अस्पतालों में आइसोलेशन वार्ड
बनेंगे। कोरोना का इलाज भी यहां शुरु कराया
जाएगा। इसके साथ निजी पैथोलाजी को जांच के
लिये तैयार कराया जाएगा। इससे दो लाभ होंगे
एक तो यह कि सरकारी अस्पतालों से इलाज की
दबाव कम होगा। दूसरा यह कि सरकारी अस्पतालों
में दूसरी बीमारियों का भी इलाज शुरु हो
सकेगा। जोकि, उतना ही जरूरी है जितना कि
कोरोना के मरीजों का इलाज। इसके साथ ही
केन्द्र सरकार ने गुरुवार को यह स्पष्ट कर
दिया कि कोरोना के किसी मरीज के संक्रमित
पाये जाने या उसके इलाज करने पर किसी भी
निजी नर्सिंग होम को बंद नहीं किया जाएगा।
उसे सेनेटाइज कराकर फिर से वहां मरीजों की
इलाज शुरु किया जाएगा और मरीज भर्ती भी
किये जाएंगे।
(उप्रससे) |