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श्रीरामजन्मभूमि संघर्ष का इतिहास-एक

Publised on : 05.11.2019    Time 23:14     Tags: SRI RAMJANMBHOOMI ANDOLAN HISTORY

श्री राम जन्मभूमि संघर्ष का इतिहास किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व और अस्मिता, स्वत्व और स्वाभिमान उस देश के श्रद्धा व आस्था केन्द्रों, महापुरुषों के स्मृतिस्थलों तथा सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण व संवर्धन पर निर्भर करता है।

यह इतिहास का एक कड़वा सच है कि बर्बर विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारे हजारों श्रद्धा, पुण्य और प्रेरणा केन्द्रों को ध्वस्त कर राष्ट्रीय स्वाभिमान को आहत करने का दुस्साहस किया था। उन्होंने हिन्दुस्थान में हजारों मंदिरों को तोड़ा और फिर अपने वर्चस्व का दंभ दिखाने के लिये उन्हीं मंदिरों के स्थान पर, उन्हीं मंदिरों के मलवे से मस्जिदें खड़ी कर दीं। देश के कोने-कोने में ऐसे अनगिनत स्थान हैं ।

काशी विश्वनाथ मन्दिर वाराणसी, श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा, श्री राम जन्मभूमि अयोध्या Sri Ram Janmbumi Ayodhya तथा गुजरात का सोमनाथ का मंदिर भारत की राष्ट्रीय-सांस्कृतिक प्रवाहधारा के मुख्य स्त्रोत रहे हैं। अतः उनके ध्वंस का दंश हिन्दू समाज को हमेशा सालता रहा और इसीलिये उनकी पुनर्स्थापना एवं पुनर्प्रतिष्ठा की मांग और प्रयास निरंतर जारी रहे। विशेष रूप से श्री राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिये तो अब तक हुए 76 संघर्षों में साढ़े तीन लाख से अधिक लोगों ने अपना बलिदान दिया।

बाबर के सेनापति मीर बाकी Meer Baki, Baqui, Babar ने श्री रामजन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त कर उसके बहुत से प्रतीक चिन्हों, स्तंभों, मूर्तियों आदि को क्षतिग्रस्त करके उनका मलवे के रूप में प्रयोग करते हुए उसी स्थान पर एक मस्जिदनुमा ढ़ांचे का निर्माण कराया। यदि ऐसा है तो इस प्रश्न को मंदिर-मस्जिद विवाद अथवा हिन्दू-मुस्लिम समस्या की चौखट से बाहर निकालकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के नाते गुलामी के प्रतीक चिन्हों को मिटाने और राष्ट्र के स्वत्व व स्वाभिमान जगाने तथा अस्मिता और पहचान को प्रकट करने वाले स्मारक की पुनर्स्थापना के रूप में देखा जाना चाहिये। ऐसा होना सभी स्वतंत्र व स्वाभिमानी देशों व समाजों में होता आया है, और यह स्वाभाविक भी है।

भारत के लिये राम केवल पूजा के देव नहीं हैं। वे राष्ट्रीय अस्मिता, राष्ट्रीय गौरव, भारतभक्ति और मर्यादा के मानदंडों के अनुसार जीवन-व्यवहार करने वाले राष्ट्रपुरुष हैं। ऐसी स्थिति में अपमान के कलंक को धोने, गुलामी के चिन्हों को हटाने, सांस्कृतिक गुलामी से मुक्ति पाने, आस्था-श्रद्धा व मानबिन्दुओं की रक्षा करने, भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देने, राष्ट्र की चेतना को जगाने और राष्ट्रीय पहचान को प्रकट करने के प्रतीक के रूप में  श्री रामजन्मभूमि पर मंदिर बनाया जाना अत्यंत स्वाभाविक है।

 राम।

देश की आस्था के प्रतीक।  इतिहास के धीरोदात्त नायक। लोकजीवन में शील और मर्यादा को स्थापित कर बने पुरुषोत्तम । भारत के राष्ट्रपुरुष राम। राम राज्य, अर्थात शील का अनुगामी राज्य। लोककल्याण के लिये कृतसंकल्प। भारत के इतिहास में शासन-विधान का सर्वोच्च मापदंड। इसीलिये देश के संविधान की प्रथम प्रति पर पुष्पक विमान में विराजमान माता जानकी और श्री लक्ष्मण सहित अयोध्यानरेश श्री राम का रेखाचित्र अंकित किया गया।

 आक्रमण

1526 ई. में फरगाना के क्रूर शासक बाबर ने भारत पर आक्रमण किया। रास्ते भर में सैकड़ों नगरों को लूटता, हजारों गांवों को जलाता और लाखों लोगों की हत्या करता हुआ 1528 ई. में वह अयोध्या पहुंचा। बाबर के सेनापति मीर बाकी ने उसके आदेश पर अयोध्या पर आक्रमण किया। इतिहासकार कनिंघम के अनुसार 15 दिनों के घमासान युद्ध में 1 लाख 74 हजार हिन्दुओं के वीरगति प्राप्त करने के बाद ही मीर बाकी मंदिर को तोप के गोलों से गिराने में सफल हो सका। उसने रामजन्मभूमि मंदिर के मलवे से उस स्थान पर दरवेश मूसा आशिकान के निर्देश पर मस्जिद जैसा एक ढ़ांचा खड़ा कर दिया।

संघर्ष

 अयोध्या सहित समूचे भारत के हिन्दुओं की आस्था के केन्द्र रामजन्मभूमि पर स्थित मंदिर का ध्वंस भक्तों के लिये असहनीय वेदना का कारण बन गया । इसने रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिये संघर्ष की एक विरामहीन श्रंखला को जन्म दिया। 1528 से 1949 तक की कालावधि में जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिये 76 युद्ध हुए जिनमें लाखों रामभक्तों ने बलिदान दिया। इनमें बाबर के काल में 4 बार, हुमायूं के काल में 10 बार, अकबर के काल में 20 बार, औरंगजेब के काल में 30 बार, अवध के नवाब सआदत अली के काल में 5 बार और नवाब नासिरुद्दीन हैदर  के काल में 3 बार संघर्ष हुआ।

रामलला का प्राकट्य

22 दिसम्बर 1949 की रात को एक चमत्कार घटित हुआ । रामजन्मभूमि पर सुरक्षा के लिये तैनात सिपाही ने बताया कि अचानक एक दिव्य प्रकाश से उसकी आंखें चौंधिया गयी और जब उसे भान हुआ तो उसने देखा कि बाल रूप में श्री राम उस भवन के भीतर विराजमान हैं और सैकड़ों लोग श्रद्धाभाव से उनके दर्शन कर रहे हैं। ढ़ांचे के बाहर स्थित राम चबूतरे पर अखण्ड कीर्तन प्रारंभ हो गया जो 6 दिसम्बर 1992 तक निरंतर चलता रहा। आक्रोषित कारसेवकों द्वारा विवादित ढ़ांचा ढ़हा दिये जाने के बाद उस स्थान को सरकार द्वारा कब्जे में ले लिया गया। इस कारण कीर्तन का स्थान बदल दिया गया किन्तु वह आज तक अखण्ड रूप से जारी है।

रामलला ताले में

रामलला के प्राकट्य की घटना पर मुस्लिम समाज की ओर से विरोध की संभावना को देखते हुए 29 दिसम्बर 1949 को तत्कालीन जिलाधिकारी श्री कृष्ण कुमार नैयर ने उस क्षेत्र को विवादित घोषित कर निषेधाज्ञा लागू कर दी।

ढ़ांचे के मुख्य द्वार को लोहे की सरियों से बंद कर ताला डाल दिया गया। एक छोटे द्वार से पूजा-अर्चना और भोग आदि के लिये केवल चार पुजारियों और एक भंडारी को प्रवेश की अनुमति दी गयी तथा फैजाबाद नगरपालिका अध्यक्ष श्री के के राम वर्मा को रिसीवर नियुक्त कर दिया गया। किसी भी प्रकार का संघर्ष टालने के लिये उस स्थान से 500 गज की परिधि में मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया।

 

अगले पृष्ठ पर पढ़ें कैसे हुई आन्दोलन की शुरुआत और कैसे खुला ताला.........
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