हिन्दू सम्मेलन
1983 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर
में हिन्दू जागरण मंच के तत्वावधान
में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ। इस
सम्मेलन में भाग लेने के लिये पधारे
उ.प्र. सरकार के पूर्व मंत्री श्री
दाऊदयाल खन्ना, जो मुरादाबाद से पांच
बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के
विधायक रहे, ने श्री राम जन्मभूमि
अयोध्या, श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा
तथा वाराणसी स्थिति काशी विश्वनाथ
मंदिर पर बनी मस्जिदों को हिन्दू
स्वाभिमान के लिये चुनौती बताते हुए
उनकी मुक्ति का प्रयास किये जाने की
मार्मिक अपील की। उपस्थित हिन्दू समाज
ही नहीं अपितु आयोजकों को भी इस तथ्य
की जानकारी नही थी। श्री खन्ना की
अपील का गहरा असर हुआ और सम्मेलन में
ही तीनों मन्दिरों की मुक्ति का
प्रस्ताव पहली बार पारित हुआ।
प्रथम धर्म संसद
उक्त जानकारी के आधार पर विश्व हिन्दू
परिषद का एक प्रतिनिधि मण्डल श्री
अशोक सिंहल के नेतृत्व में तीनों
स्थानों के तथ्यान्वेषण के लिये गया।
मुजफ्फरनगर में पारित प्रस्तावों पर
देश के शीर्षस्थ संतों-महंतों से
परामर्श कर अप्रेल 1984 में दिल्ली के
विज्ञान भवन में एक राष्ट्रीय सम्मेलन
का आयोजन किया गया जिसे धर्म संसद नाम
दिया गया। यहां पुनः उक्त तीनों
प्रस्ताव पारित किये गये ।
धर्म संसद में ही श्री राम जन्मभूमि
मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया ।
समिति के तत्वावधान में जन्मभूमि पर
लगे ताले को खुलवाने की मांग को लेकर
बिहार के सीतामढ़ी से श्रीराम-जानकी
रथयात्रा प्रारंभ करने तथा देश भर में
जनजागरण करने का भी निर्णय किया गया।
ताला खुला
श्री राम-जानकी रथों के माध्यम से
व्यापक जन-जागरण हुआ। किन्तु वे रथ
दिल्ली पहुंच पाते, इससे पूर्व ही
प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की
हत्या हो गयी। इसके साथ ही राजधानी
दिल्ली सहित देश के अनेक भागों में
सिख बन्धुओं के नृशंस नरसंहार का
सिलसिला शुरू हो गया। श्री
रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति ने इन
परिस्थितियों में अपने आंदोलन को एक
वर्ष के लिये रोक दिया। अक्तूबर 1985
में कर्नाटक के उडुपि में द्वितीय
धर्म संसद का आयोजन किया गया जहां
सरकार को जन्मभूमि पर लगा ताला खोलने
के लिये चेतावनी दी गयी। फैजाबाद के
जिला न्यायाधीश श्री के एम पाण्डेय ने
01 फरवरी 1986 को ताला खोलने का आदेश
दे दिया। ज्ञातव्य है कि इस समय जहां
केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी
जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे
वहीं उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार
के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह थे।
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