पांच अगस्त 2020 की वह शुभ घड़ी निकट आ गई है, जब भगवान श्रीराम को उनके
जन्मस्थान पर भव्य-दिव्य मन्दिर में विराजमान होने का मार्ग प्रसस्त हो गया है। इस दिन भूमि पूजन के बाद श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर का निर्माण कार्य विधिवत् आरंभ हो जाएगा। मन्दिर की पहली शिला रखने के लिए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी स्वयं अयोध्या पधार रहे हैं। इस शुभ घड़ी की प्रतीक्षा
न केवल अयोध्या को थी, बल्कि सम्पूर्ण भारत और विश्व में बसे करोड़ों हिन्दू यह दिन देखने को लालायित थे। श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर को मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528 में आक्रमण करके तोड़ दिया था। इसके मलबे से ही वहां एक ढांचा खड़ा कर दिया था। इस ढांचे के भीतर ही भगवान श्रीराम का
प्राकट्य हुआ था। यहां अनवरत पूजा अर्चना हो रही थी। किन्तु प्रशासन ने बगैर किसी आदेश के ताला लगा रखा था। इस ताले को खोलने के लिए वर्ष 1982 में उत्तर प्रदेश के पश्चिम जिलों से आन्दोलन शुरु हुआ था। इस आन्दोलन का केन्द्र मुरादाबाद जनपद था। “ताला खोलो” आन्दोलन की सफलता के बाद मन्दिर निर्माण का
मार्ग प्रशस्त हो गया था। तीस अक्टूबर 1990 और छह दिसम्बर 1992 की कारसेवाओं के बाद परतंत्रता का प्रतीक ढांचा हट गया था। किन्तु सम्पूर्ण परिसर केन्द्र सरकार द्वारा अधिग्रहीत किये जाने के कारण यहां मन्दिर निर्माण के लिए न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा थी। इसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ
खण्ड पीठ ने 30 सितंबर 2010 को यह निर्णय दिया कि विवादित स्थल ही श्रीरामलला बिराजमान का स्थान है तथा यह श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर है, किन्तु अदालत ने दो-एक के मत से निर्णय दे दिया कि स्थान को तीन हिस्सों में बांट दिया जाए। इसे हिन्दू समाज ने स्वीकार नहीं किया। इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च
न्यायालय में हुई सुनवाई के उपरान्त लम्बी बहसों तथा दलीलों के बाद अन्तिम निर्णय हिन्दू समाज के पक्ष मे हुआ। सर्वोच्च न्यायालय के 9 नवंबर 2019 के आदेश से सम्पूर्ण परिसर पर हिन्दू समाज को अधिकार प्राप्त हो गया। इसके साथ ही हिन्दू समाज को 492 साल के अनवरत संघर्ष के बाद विजय श्री प्राप्त हो गई।
न्यायालय के आदेश पर गठित हुए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के नेतृत्व में मन्दिर का निर्माण कार्य विधिवत रूप से अब पांच अगस्त को आरंभ हो जाएगा। मन्दिर निर्माण आरंभ होने से देशभर में हर्षोल्लास का वातावरण है। समूचा हिन्दू समाज गर्व की अनुभूति कर रहा है। श्रीराम जन्मभूमि को प्राप्त
करने तथा यहां मन्दिर का पुनर्निर्माण करने के लिए 76 संघर्ष हुए हैं। लेकिन, जिस आन्दोलन के कारण और बलिदान के कारण समाज को सफलता और विजय मिली उसका नेतृत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक सघ के मार्गदर्शन में विश्व हिन्दू परिषद् ने किया। आन्दोलन में संत समाज, अखाड़ा परिषद् और शंकराचार्यों का आशीर्वाद और
अनवरत नैतिक और सक्रिय सहयोग मिलता रहा। आन्दोलन के आरंभ में हिन्दू जागरण मंच, बजरंग दल सरीखे संगठनों ने भी सहयोग किया। यहां कांग्रेस के उन वयोवृद्ध नेता दाऊदयाल खन्ना के योगदान को भी नहीं भुलाया जा सकता जिन्होंने सर्वप्रथम धर्मस्थलों की मुक्ति के लिए अभियान चलाया।
(उप्रससे) |
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