मन्दिर का प्रारूप
अब प्रश्न मंदिर के निर्माण का था।
इसके लिये आवश्यक था मंदिर का
प्रारूप। सोमनाथ मंदिर का प्रारूप
बनाने वाले श्री सोमपुरा के पौत्र तथा
मंदिर शिल्प के प्रख्यात विशेषज्ञ
श्री चन्द्रकान्त सोमपुरा को श्री
रामजन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर का
प्रारूप तैयार करने का काम सौंपा गया।
श्री सोमपुरा ने 270 फीट लम्बे, 135
फीट चौड़े और 125 फीट ऊंचे दो तल वाले
भव्य मंदिर का प्रारूप तैयार किया।
श्री
रामशिला पूजन
जनवरी 1989 में प्रयाग में कुम्भ के
अवसर आयोजित तृतीय धर्म संसद में एक
लाख से अधिक संतों और रामभक्तों के
बीच पूज्य देवरहा बाबा की उपस्थिति
में 9-10 नवम्बर को श्री रामजन्मभूमि
पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की
गयी। मंदिर निर्माण का संदेश
गांव-गांव तक पहुंचाने के लिये शारदीय
नवरात्रि के प्रथम दिन 30 सितम्बर
1989 को देश भर में रामशिलाओं के पूजन
की योजना बनायी गयी। इस दिन लगभग 2
लाख 75 हजार गांवों में रामशिलाओं का
पूजन कर अयोध्या भेजा गया। विदेशों
में निवास कर रहे भारतीयों ने भी
मन्दिर निर्माण के लिये रामशिलायें
अयोध्या भेजीं।
शिलान्यास
घोषित कार्यक्रम के अनुसार 9 नवम्बर
1989 को प्रातः निर्धारित समय पर पू.
महंत अवैद्यनाथ, पू. वामदेव जी तथा
महंत रामचन्द्रदास परमहंस के नेतृत्व
में भूमि उत्खनन कार्य हुआ। शंखध्वनि
और मंत्रोच्चार के बीच शिलान्यास
सम्पन्न हुआ। बिहार के दलित समाज के
रामभक्त श्री कामेश्वर चौपाल ने राम
मंदिर की पहली शिला रखी। शिलान्यास से
पूर्व ही उत्तर प्रदेश की कांग्रेस
सरकार ने घोषणा कर दी थी कि शिलान्यास
स्थल विवादित भूमि नहीं है। किन्तु 11
नवंबर को जब 7 हजार से अधिक सन्त तथा
रामभक्त निर्माण हेतु कारसेवा के लिये
आगे बढ़े तो उन्हें जिलाधिकारी की
आज्ञा से रोक दिया गया। इस समय राज्य
के मुख्यमंत्री श्री नारायणदत्त
तिवारी थे।
अल्पविराम
केन्द्र और राज्य सरकारें जहां
अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के कीर्तिमान
बना रही थीं वहीं हिन्दू समाज की
रामजन्मभूमि के प्रति आस्था का भी
मखौल बनाया जा रहा था। इससे उत्पन्न
रोष की बाढ़ में दोनों ही सरकारें बह
गयीं।
नवंबर 1989 में उत्तर प्रदेश विधानसभा
और लोकसभा के चुनाव साथ-साथ हुए
जिनमें कांग्रेस को मुंह की खानी
पड़ी।
नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री श्री
विश्वनाथ प्रताप सिंह से भेंट कर राम
जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के
प्रतिनिधियों ने सारे ऐतिहासिक एवं
पुरातात्विक प्रमाण उनके समक्ष रखे।
प्रधानमंत्री द्वारा शीघ्र ही निर्णय
का आश्वासन दिया गया। फरवरी माह में
उन्होंने पुनः चार महीने का समय मांगा
जो जून में समाप्त हो गया।
प्रथम कारसेवा
सरकार द्वारा फिर भी कोई सकारात्मक
उत्तर न मिलने पर 01 अगस्त 1990 को
संतों ने वृंदावन में मंदिर निर्माण
में आने वाली चुनौतियों से संघर्ष
हेतु तन-मन-धन अर्पण करने का संकल्प
किया। अगस्त मास में देश भर में श्री
राम कारसेवा समितियों का गठन किया
गया। 15 अगस्त को घंटे-घड़ियाल और शंख
बजा कर चेतावनी दिवस मनाया गया।
सन्तों ने ज्योतिर्पीठ के शंकराचार्य
स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की
अध्यक्षता में श्री राम कारसेवा समिति
का गठन किया तथा 30 अक्तूबर 1990 को
देवोत्थान एकादशी के दिन मंदिर
निर्माण के लिये कारसेवा प्रारंभ करने
की घोषणा कर दी। समिति का संयोजक
विहिप के महामंत्री श्री अशोक सिंहल
को बनाया गया।
रामज्योति
मंदिर निर्माण का संकल्प घर-घर तक
पहुंचाने के लिये रामज्योति को माध्यम
बनाया गया। 01 सितंबर 1990 को अयोध्या
में पूर्ण विधि-विधान से मंत्रोच्चार
के बीच अरणि मंथन द्वारा अग्नि का
आह्वान किया गया। इस अग्नि से ही 18
अक्तूबर को दीपावली के दीप
प्रज्ज्वलित करने का संदेश संतों ने
दिया। 400 बड़ी और सैकड़ों छोटी-छोटी
यात्राओं के माध्यम से देश के लाखों
गावों तक यह ज्योति पहुंची, साथ ही
मंदिर निर्माण का संकल्प भी।
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