संतों की सिंहगर्जना
2-3 अप्रेल 1991 को दिल्ली के
तालकटोरा स्टेडियम में चतुर्थ
धर्मसंसद सम्पन्न हुई। 04 अप्रेल को
दिल्ली के वोट क्लब पर ऐतिहासिक रैली
हुई जिसमें देश भर से पच्चीस लाख से
भी अधिक रामभक्त एकत्र हुए। इस रैली
में संतों ने सिंह गर्जना की कि मंदिर
वहीं बनेगा। सरकार अपनी भूमिका स्वयं
तय करें। उन्हें इस जनज्वार के आगे
झुकना होगा या हटना होगा। रैली अभी
समाप्त भी नहीं हुई थी कि सूचना मिली
कि उत्तर प्रदेश में श्री मुलायम सिंह
ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे
दिया। केन्द्र की राष्ट्रीय मोर्चा
सरकार इससे पूर्व 17 सितम्बर को ही
विश्वास मत में पराजित हो चुकी थी।
कारसेवकों ने सरकारी अत्याचार के
विरुद्ध नारा दिया था –“दिल्ली
की गद्दी डुबो सके, सरयू में इतना
पानी है”,
वह नारा सच साबित हुआ।
धरती से निकले मंदिर के प्रमाण
इससे पूर्व सरकार ने तीर्थयात्रियों
हेतु सुविधाएं विकसित करने के लिये
स्वयं भी 2.77 एकड़ भूमि अधिगृहीत की।
जून 1991 में जब सरकार की भूमि पर
समतलीकरण का कार्य प्रारंभ हुआ तो
दक्षिण-पूर्वी कोने से अनेक पत्थर
प्राप्त हुए जिनमें शिव-पार्वती की
खंडित मूर्ति, सूर्य के समान अर्धकमल,
मन्दिर के शिखर का आमलक सहित उत्कृष्ट
नक्काशी वाले पत्थर व मूर्तियां थी।
यह सभी प्रस्तर खण्ड पुरातात्विक
महत्व के थे और मन्दिर की ऐतिहासिकता
के स्वयं सिद्ध प्रमाण थे।
फिर फहराया भगवा
31 अक्तूबर 1991 को एक बार पुनः
कारसेवक अयोध्या में जुटे। समिति ने
यद्यपि प्रतीकात्मक कारसेवा का ही
निश्चय किया था किन्तु कुछ उत्साही
कारसेवक एक बार पुनः गुम्बद पर जा
चढ़े और भगवा लहरा दिया। गुम्बदों को
कुछ नुकसान भी पहुंचा किन्तु प्रदेश
सरकार ने उसकी मरम्मत करा दी। बाद में
ढ़ांचे की रक्षा के लिये इसके चारों
ओर दीवार का निर्माण किया गया।
प्रधानमंत्री
से भेंट
आंदोलन के नेता स्वामी वामदेव, परमहंस
रामचन्द्र दास, महंत अवैद्य नाथ,
युगपुरुष परमानंद, स्वामी चिन्मयानंद
आदि ने प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव से
भेंट कर राम मंदिर निर्माण में आने
वाली बाधाओं को दूर करने का आग्रह
किया।
सर्वदेव
अनुष्ठान व नींव ढ़लाई
09 जुलाई 1992 से 60 दिवसीय सर्वदेव
अनुष्ठान प्रारंभ हुआ। जन्मभूमि के
ठीक सामने शिलान्यास स्थल से भावी
मंदिर की नींव के चबूतरे की ढ़लाई भी
प्रारंभ हुई। 15 दिनों तक इसके लिये
कारसेवा चली और नींव ढ़लाई का काम
होता रहा ।
शांतिपूर्ण ढ़ंग से चल रही इस कारसेवा
को रोकने के लिये
धर्मनिरपेक्षतावादियों ने पूरे देश
में कोहराम मचाया । लोकसभा में
अभूतपूर्व हंगामा हुआ जिसके चलते एक
सप्ताह तक लोकसभा की कार्यवाही ठप्प
रही। प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हाराव
ने संतों से तीन माह का समय मांगा और
निर्धारित समय सीमा में अयोध्या विवाद
का सर्वमान्य हल निकालने का विश्वास
दिलाया। संतों ने प्रधानमंत्री का
आग्रह स्वीकार कर लिया तथा नींव ढ़लाई
का काम बन्द कर दिया ।
जिस नीव की ढ़लाई की जा रही थी वह 290
फीट लम्बी, 155 फीट चौड़ी और 2-2 फीट
मोटी एक के ऊपर एक तीन परत ढ़लाई करके
कुल छः फीट मोटी थी।
पादुका पूजन
नन्दी ग्राम में भरत जी ने 14 वर्ष तक
वनवासी रूप में रह कर अयोध्या का शासन
भगवान की पादुकाओं के माध्यम से चलाया
था। इसी स्थान पर 26 सितम्बर 1992 को
श्रीराम पादुकाओं का पूजन हुआ।
अक्तूबर मास में देश के गांव-गांव में
इन पादुकाओं के पूजन द्वारा जन-जागरण
हुआ। रामभक्तों ने मंदिर निर्माण का
संकल्प लिया।
द्वितीय कार सेवा
29-30 अक्तूबर 1992 को नयी दिल्ली में
पंचम धर्मसंसद आहूत की गयी। संतों ने
सरकार के रवैये पर रोष जताते हुये
समाधान न होने पर गीता जयंती 06
दिसम्बर 1992 से अयोध्या में पुनः
कारसेवा प्रारंभ करने की घोषणा की।
निर्धारित समय सीमा में सरकार विवाद
का हल ढ़ूंढ़ने में विफल रही।
परिणामस्वरूप गीता जयंती की घोषित
तिथि पर कारसेवा की घोषणा कर दी गयी।
कई दिन पहले से ही पूरे देश से
कारसेवक पहुंचने प्रारंभ हो गये थे।
न्यायालय के निर्देशों को ध्यान में
रखते हुए उन सभी को परिचय-पत्र दिये
जा रहे थे। न्यायालय के निर्देशानुसार
प्रचार माध्यमों द्वारा निरंतर उसके
निर्देशों की उदघोषणा भी की जा रही
थी।
न्यायिक प्रक्रिया
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उत्तर
प्रदेश सरकार से कारसेवा के संबंध में
आश्वासन मांगा गया। मुख्यमंत्री
कल्याण सिंह ने शपथ-पत्र दाखिल कर
न्यायालय को आश्वासन दिया कि
अधिग्रहीत 2.77 एकड़ भूमि पर लम्बित
विवाद का फैसला होने तक किसी निर्माण
की अनुमति नहीं दी जायेगी, क्षेत्र
में निर्माण सामग्री और उससे संबंधित
यंत्र नहीं आने दिये जायेंगे तथा
धार्मिक गतिविधियों के तहत
प्रतीकात्मक कारसेवा की जायेगी। इस
आश्वासन के पश्चात उच्चतम न्यायालय ने
सांकेतिक कारसेवा की अनुमति प्रदान कर
दी। अयोध्या में न्यायिक पर्यवेक्षक
की नियुक्ति कर दी गयी जिसे कारसेवा
के दौरान इसपर नजर रखनी थी कि
शपथ-पत्र में दिये गये आश्वासनों का
उल्लंघन न हो।
समिति को यह विश्वास था कि प्रयाग
उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ का
2.77 एकड़ भूमि पर निर्माण संबंधी
फैसला गीता जयंती से पूर्व आ जायेगा।
इस वाद की सुनवाई 4 नवंबर को ही पूरी
हो चुकी थी और निर्णय प्रतीक्षित था।
इसका अनुमान लेते हुए ही कारसेवा की
तिथि गीता जयंती पर तय की गयी थी। यह
बात न्यायालय के संज्ञान में भी थी।
किन्तु फिर भी न्यायालय ने कारसेवा से
तीन दिन पूर्व अपना निर्णय 11 दिसम्बर
तक के लिये सुरक्षित कर दिया।
वस्तुतः यह भूमि श्रीराम जन्मभूमि
न्यास की अपनी भूमि थी जिसे मुलायम
सिंह सरकार ने अधिग्रहीत कर लिया था।
न्यास ने न्यायालय से इस अधिग्रहण को
अवैध घोषित करते हुए न्यास को भूमि
वापस सौंपे जाने की प्रार्थना की थी।
इसी भूमि पर कारसेवा प्रस्तावित थी।
11 दिसंबर को सुनाये अपने फैसले में
न्यायालय ने न्यास के दावे को उचित
मानते हुए भूमि के अधिग्रहण की
अधिसूचना को अवैध ठहरा दिया। (
समस्त तथ्य साभार विहिप) |