लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने यह फैसला सुनाकर कि अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराने की कोई साजिश नहीं हुई थी,रामसेवकों को न्याय प्रदान किया है। भगवान श्रीराम जन्मस्थान पर पांच सौ साल पहले बनाये गए बाबरी
मस्जिद नाम के ढाचा को गिराने पर सीबीआई ने 49 लोगों को आरोपी बनाया था। इनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करके सजा देने की मांग की थी। लेकिन, यह मुकदमा अदालत में लंबा चला। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इसकी दैनिक सुनवाई के आदेश हुए थे। इसके बाद 2017 से मामले की सुनवाई दैनिक शुरु हुई । मामले की
सुनवाई तथा जांच के दौरान 17 आरोपियों की मृत्यु हो गई । विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश सुरेन्द्र कुमार यादव ने विस्तार से फैसला लिखाया। करीब दो हजार पृष्ठ के फैसले में उन्होने यह निर्णय दिया कि अयोध्या में छह दिसंबर को ढांचा गिराने की कोई साजिश नहीं रची गई थी। साथ ही यह पूर्वनियोजित भी नहीं
था। अचानक कारसेवकों की भीड़ ने अनियंत्रित होकर ढांचा का विध्वंस किया था। वस्तुतः विश्व हिन्दू परिषद् ने छह दिसंबर को कारसेवा का आह्वान किया था। लेकिन, उसकी योजना सिर्फ प्रतीकात्मक कारसेवा की ही थी। किसी भी तरह ढांचा गिराने की योजना पहले से नहीं थी। योजना थी कि कारसेवक मुट्ठी में बालू और
मिट्टी लेकर ढांचा स्थल तक जाएंगे तथा वहां डालकर लौट आएंगे। किन्तु दो लाख से अधिक की संख्या में पहुंचे कार सेवक इस मामले में और अधिक इंतजार करने को तैयार नहीं थे। उनके मन में जो आक्रोश था, वह फूट पड़ा। उन्होंने विहिप की योजना को दर किनार करके अपमान के प्रतीक बाबरी ढांचे को गिराने की योजना
बना डाली। स्वयंस्फूर्त कारसेवकों की भीड़ दोपहर में ढांचे पर चढ़ गई। इस भीड़ को रोकने के लिए विहिप के नेताओं और भाजपा नेताओं ने माइक से लगातार अपील की किन्तु भीड़ ने इनकी बात अनसुनी कर दी और तीन चार घंटे में तीनों गुंबद को धराशायी कर दिया। इस तरह पांच सौ साल से खड़ा वह ढांचा गिर गिया। इस
मामले में पुलिस और प्रशासन ने ढांचा गिराने के आरोप में दो एफआईआर दर्ज की थीं। इनमें कुछ लोगों को आरोपित किया गया था। किन्तु जब मामले की सीबीआई जांच हुई तो इसका दायरा बढ़ गया। सीबीआई ने अपनी जांच में 49 लोगों को आरोपी बनाया। इनके खिलाफ विशेष अदालत में चार्चशीट दाखिल की। लेकिन, सीबीआई अदालत
के सामने यह प्रमाणित नहीं कर सकी कि ढांचा गिराने के लिए कोई साजिश रची गई थी। उसने मौखिक तथ्य तो दिये किन्तु उसके पास कोई ठोस साक्ष्य नहीं था। यही वजह रही कि अदालत ने सभी आरोपियों को बा इज्जत बरी कर दिया। इस तरह नौ नवबंर 2019 की तरह ही रामभक्तों की न्यायालय में एक और विजय हुई है। उन्हें
न्याय मिला है। विशेष उल्लेखनीय यह भी है कि आज जिस तारीख को अयोध्या में फैसला आया है, इसी तारीख को 2010 में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद में भी उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने फैसला सुनाया था। तब उक्त स्थल को न्यायालय ने तीन हिस्सों में बाटकर तीनों पक्षों को एक एक हिस्सा देने का फैसला सुनाया
था।
(उप्रससे) |