बसपा को झटका, आर के चौधरी फिर छोडी बसपा |
पैसे लेकर टिकट बांटने के लगाये आरोप |
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on : 30 June 2016, Last
updated Time 22:23 |
लखनऊ।
सूबे में अगली सरकार बनाने के लिए संघर्श कर रही
बहुजन समाज पार्टी को आज फिर एक झटका लगा। स्वामी प्रसाद
मौर्या के बाद अब बसपा के महासचिव आर के चौधरी ने भी
बीएसपी का दामन छोड़ दिया है। बसपा से नाता तोडने के बाद
आर के चौधरी ने भी मायावती पर पैसे लेकर टिकट देने का
आरोप लगाया।उन्होंने यह भी कहा कि 11 जुलाई को अपने समर्थकोे के साथ
बैठक करने के बाद ही कोई निर्णय लिया जायेगा।
आर के चौधरी ने बसपा सुप्रीमो मायावती पर आरोप लगाया कि
बसपा को राजनीतिक दल नहीं बल्कि पार्टी को रीयल इस्टेट
बना कर रख दिया है। वह चाटुकारों के कहने पर फैसला लेने
लगी है। इस कारण मिशनरी कार्यकताओं को पार्टी में किनारे
कर दिया गया है।
करीब 12 साल बाद गत लोकसभा चुनाव से पूर्व आर के चौधरी
पुनः बसपा में षामिल हुए थे। वह आगामी विधानसभा चुनाव
में मोहनलालगंज सीट से टिकट चाह रहे थे। लेकिन बसपा ने
इस स्थान से राज बहादुर को प्रत्याषी बना दिया था। इसे
लेकर वह नाराज चल रहे थे। इसी कारण उन्होंने बसपा से आज
अपना नाता तोड दिया। भविष्य की नीति के बारे में उन्होंने
अभी कुछ तय नहीं किया है। । 11 जुलाई को कार्यकर्ताओं की
बैठक बुलाई गई है। कार्यकर्ताओं की राय के बाद ही वो आगे
की कोई योजना बनाएंगे। पूर्व में 2001 में वह बसपा छोड
चुके है। करीब 12 साल बाद गत लोक सभा चुनाव से पूर्व वह
पुनः बसपा में षामिल हुए।
अपने स्वार्थ से गए चौधरीः राम अचल
बसपा प्रदेष अध्यक्ष राम अचल राजभर ने आर.के. चौधरी के
दोबारा पार्टी छोड़कर जाने से कोई फर्क न पडा था और न ही
पडेगा। वह अपने स्वार्थ के कारण ही पहले पार्टी छोड़कर
गये थे और फिर बाद में अपनी गलती की माफी माँग कर
बी.एस.पी. में वापस आ गये थे लेकिन अब उन्हें दोबारा
पार्टी में नहीं लिया जायेगा। उन्होंने कहा कि उनका
मोहनलालगंज सीट से टिकट कटने के बाद वह पार्टी के कार्यो
में कम रूचि ले रहे थे। वह बताये कि 2014 में मोहनलाल
गंज सुरक्षित सीट से लोकसभा का चुनाव लडने के लिए टिकट
के एवज में पार्टी को कितना धन दिया। इसलिए इनका आरोप
निराधार है इससे पार्टी को नुकसान नहीं बल्कि फायदा होगा।
मौर्या के साथ भाजपा का दामन थांम सकते हैं चौधरी
पूर्व मंत्री आर के चौधरी के बसपा छोडने के बाद अब यह
चर्चा बनी हुई है कि वह नयी पारी किसके साथ खेलेंगे।
हालांकि उन्होंने 11 जुलाई को अपने समर्थकों की बैठक
बुलायी है इसके बाद ही अपने भविश्य के बारे खुलासा करेंगे।
लेकिन यह भी चर्चा है कि वह अपने पुराने साथी स्वामी
प्रसाद मौर्या के साथ नयी पारी की षुरूआत कर सकते है।
मौर्या भी कल लखनऊ में अपने समर्थकों के साथ बैठक करने
जा रहे है। इसलिए यह कयास लगाये जा रहे है चौधरी भाजपा
के मौर्या के साथ जाकर नयी पारी की षुरूआत कर सकते है।
चौधरी के जाने से बसपा में खास फर्क नहीं
लखनऊ। बसपा के कद्दावर नेताओं ने गिने जाने वाले पूर्व
मंत्री आर के चौधरी के पार्टी छोडने से बीएसपी में कोई
खास फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने
अपने किसी नेता का कद इतना नहीं बढाया कि वह उनके बेस
वोट बैंक को प्रभावित कर सके। इससे पहले भी पार्टी से कई
बडे नेता जा चुके हैं या फिर उन्हें निकाल दिया गया
लेकिन पार्टी के वोट बैंक एव ंबीएसपी मूवेंट को कोई
प्रभावित नहीं कर सका।
चुनावी मौसम में नेताओं का दूसरे दलों आना -जाना कोई बडी
बात नहीं है। इसी कडी में बसपा के महासचिव एवं प्रदेष
सरकार के पूर्व मंत्री आर के चौधरी ने भी आज पार्टी से
जय भीम कह दिया। पार्टी छोडने के बाद उन्होंने वहीं आरोप
लगाये जो पूर्व में बागी नेता लगाते रहे है। कि बसपा
सुप्रीमो मायावती पैसे लेकर टिकट का वितरण करती है। वहीं
बसपा प्रदेष अध्यक्ष राम अचल राजभर ने भी आर के चौधरी पर
जवाबी हमला करते हुए कहा कि वह स्वयं के लिए मोहनलालगंज
सुरक्षित सीट से टिकट मांग रहे थे। टिकट न मिलने से
नाराज होकर पार्टी से चले गए। उन्होंने यह भी कह दिया कि
आर के चौधरी दोबारा पार्टी में नहीं लिया जायेगा।
आर के चौधरी की बाते करें तो उन्होंने बसपा से ही राजनीति
आरंभ की थी। लेकिन 2001 में वह बसपा से नाराज होकर चले
गए। तब भी उनके टिकट का ही मामला था। इसके बाद उन्होंने
बहुजन क्रांति दल का गठन किया। पार्टी को चुनाव मैदान
में उतारा लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद गत लोकसभा
चुनाव से पूर्व 2013 में वह पुनः बसपा में आ गए। करीब
तीन साल आज फिर पार्टी से चले गए। चौधरी मूल रूप से
फैजाबाद जनपद के रहने वाले एवं पासी समाज से ताल्लुक रखते
है। लेकिन उन्होंने फैजाबाद से कभी चुनाव नहीं लडा। वह
अक्सर मोहनलालगंज क्षेत्र से विधानसभा एवं लोकसभा का
चुनाव लड़ते रहे है। इसी क्षेत्र से वह दो बार विधायक
निर्वाचित हो चुके है।
चौधरी के जनाधार की बात करे तो उनका प्रभाव मोहनलाल गंज
क्षेत्र तक ही सीमित है। यही से चुनाव वह मजबूती से लडने
के साथ चुनाव को प्रभावित कर सकते है। बाकी किसी क्षेत्र
मंे इनके कहने से सजातीय वोट प्रभावित नहीं हो सकते।
क्योंकि बसपा सुप्रीमो मायावती पार्टी के किसी नेता को
भी इतना मौका नहीं देती कि वह उनके बेस वोट बैंक को
प्रभावित कर सके। इसीलिए बसपा के किसी नेता के जाने से
पार्टी के जनाधार पर कोई खास प्रभाव नहीं पडता। क्योंकि
पूर्व में भी बसपा से कई ताकतवर नेता जा चुके है अथवा
निकाले जा चुके है।
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