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कैसे घूमा अयोध्या में पांच सदी का कालचक्र

सन् 1885 से 2019 तक चली न्यायिक प्रक्रिया के बाद मिला रामलला को न्याया

नीरजा मिश्रा

Publised on : 10.11.2019    Time 12:13, Tags: SRI RAMJANMBHOOMI ANDOLAN HISTORY,Ram Mandir>Allahabad-high Court Verdict, Neerja Mishra

देश में जिस समय आज़ादी की लहर दौड़ रही थीं , 23 December 1949 को एक घटना हुई- ‘रामलला का प्राकट्य’ । और “प्रकट भये दीन दयाला” का जय घोष हुआ। घटना के तुरंत बाद अभयराम दास, सकल दास, सुदर्शन दास और 50 लोगों के ख़िलाफ़ एफ. आइ. आर लिखी गई और कांस्टेबल माता प्रसाद और सिटी मजिस्ट्रेट ने आर. पी. सी की धारा 145 के अंतर्गत मामला विवादित सम्पति मान लिया गया। इसके उपरान्त 29 दिसंबर 1949 को फ़ैज़ाबाद के ज़िलाधिकारी के.के नैयर ने वहाँ ताला लगवा दिया । क़ानूनी दृष्टि से बहुत से लोग यह नहीं जानते है कि ब्रिटिश काल में ही यह स्थान विवादित हो गया था।  इसका एक प्रमाण 19 जनवरी 1885 को अयोध्या के एक महंत रघुबर दास द्वारा दायर वह मुक़दमा था, जो फ़ैज़ाबाद के उप न्यायाधीश के न्यायालय में दाखिल किया गया था। यह वही प्रसिद्ध मुक़दमा था, जिसमें महंत ने राम चबूतरा पर मंदिर बनाने की आज्ञा सेक्रेटरी आफ इंडिया से माँगी थी । एक साल चले 
मुक़दमे के बाद 24 दिसम्बर 1885 को न्यायाधीश हरिकृष्ण ने यह कह कर मुक़दमा ख़ारिज कर दिया कि राम चबूतरे पर मंदिर निर्माण से मस्जिद में आने जाने में दिक़्क़त होगी। जबकि वास्तविकता यह थी क़ि झगड़े के बाद वहाँ मसलमानों ने नमाज़ पढ़नी बंद कर दी थी। जबकि राम चबूतरे पर हज़ारों लोग पूजन भजन करते ही थे। परंतु शायद बहुत कम लोग जानते होंग़े कि रघुवर दास शान्ति पूर्ण तरीक़े से अदालत से अनुमति माँगते रहे । जब हरिकृष्ण से अनुमति नहीं मिली और मुक़दमा रद्द करने पर जिला न्यालय में अपील की गई, उस समय जज एफ. ई.ऐ. चेमर ने इस मामले को ख़ारिज कर अपने फ़ैसले में साफ़ लिख दिया यह “हिंदुओं के लिए दुःखद है क़ि उनके एक पवित्र स्थान पर 365 वर्ष पूर्व बाबर ने मस्जिद बना दी थी। लेकिन अब इसे सुधारा नहीं जा सकता। आज सुप्रीम कोर्ट के पंच परमेश्वर ने अद्भुत और देश हित का निर्णय कर एक मिशाल क़ायम की है।
अयोध्या का विवाद पांच सदियों से चला आ रह था तब से जब से माना जाता है कि बाबर ने मंदिर तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण कराया। आजादी के बाद से अब तक इस विवाद ने देश की राजनीति को प्रभावित किया है। इसकी वजह से हिंसा हुई, लोग मारे गए।
पांच सदी में कैसे घूमा अयोध्या का कालचक्र
1528-29: कहते हैं बाबर ने मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनवायी। अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर एक मस्जिद बनवायी गई, जिसे हिंदू अपने आराध्य देव भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं. कहा जाता है कि मुगल बादशाह बाबर के सेनापति मीर बाकी ने यहां मस्जिद बनवाई थी, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।  बाबर 1526 में भारत आया, 1528 तक उसका साम्राज्य अवध (वर्तमान अयोध्या) तक पहुंच गया।  

30 अक्टूबर 1990: मुलायम ने बचा ली बाबरी लेकिन हमेशा के लिए बदल गई यूपी की सियासत!
1853: ...जब पहली बार अयोध्या में दंगे हुए थे
कहा जाता है कि अयोध्या में इस मुद्दे को लेकर पहली हिंदू-मुस्लिम हिंसा की घटना 1853 में हुई थी। जब निर्मोही अखाड़ा ने ढांचे पर दावा करते हुए कहा कि जिस स्थल पर मस्जिद खड़ी है, वहां एक मंदिर हुआ करता था। बाबर के शासनकाल में यह मन्दिर नष्ट किया गया।  अगले 2 सालों तक इस मुद्दे को लेकर अवध में हिंसा भड़कती रही।  फैजाबाद जिला गजट 1905 के अनुसार 1855 तक, हिंदू और मुसलमान दोनों एक ही इमारत में पूजा या इबादत करते

वर्ष 1859 - 1857 में आजादी के पहले आंदोलन के चलते माहौल थोड़ा ठंडा पड़ गया था। इसके बाद 1859 में अंग्रेजों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी। साथ ही परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की इजाजत दे दी।
वर्ष 1885: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला पहली बार 1885 में फैजाबाद की अदालत में पहुंच गया। हिंदू साधु महंत रघुबर दास ने अदालत से बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनाने की इजाजत मांगी, लेकिन यह अपील ठुकरा दी गई।
वर्ष 1834: विवादित स्थल पर पहली बार दंगे भड़कने के लगभग 5 दशक बाद एक बार फिर हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के आमने-सामने हो गए। इस बार के दंगों में मस्जिद की दीवारों और गुंबदों को नुकसान पहुंचा था जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इसकी मरम्मत कराई।
वर्ष 1949: यही वह साल था जब विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्तियां मिलीं। कहा गया कि मस्जिद में ये मूर्तियां हिन्दुओं ने रखवाई थीं। मुसलमानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया और मस्जिद में नमाज पढ़ना बंद कर दिया । विवाद बढ़ने पर हिंदू और मुस्लिम पक्ष अदालत पहुंच गए। सरकार ने भी इस स्थल को विवादित घोषित कर यहां ताला लगवा दिया।

वर्ष 1950: गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में फैजाबाद की अदालत में अपील दायर कर भगवान राम की पूजा कि इजाजत मांगी। इसके अलावा महंत रामचंद्र दास ने मस्जिद में हिंदुओं द्वारा पूजा जारी रखने के लिए याचिका लगाई।
वर्ष 1959-61: इस दौरान दोनों ही पक्षों ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक पाने के लिए मुकदमे किए। पहले 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल के हस्तांतरण के लिए मुकदमा किया। इसके बाद मुसलमानों की तरफ से उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी 1961 में बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक के लिए मुकदमा कर दिया।

वर्ष 1983 में मुजफ्फनगर में हिन्दू सम्मेलन में श्री रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए प्रस्ताव पारित हुआ। यह प्रस्ताव कांग्रेस के नेता और मुरादाबाद से पांच बार विधायक रहे, पूर्व मंत्री दाऊदयाल खन्ना ने रखा। इसे स्वीकार किया गया।
वर्ष 1984: विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में हिंदुओं ने भगवान राम के जन्मस्थान पर मंदिर बनाने के लिए एक श्री रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। इसका अध्यक्ष गोरक्षपीठ के महंत अवैध्यनाथ को बनाया गया। महामंत्री दाऊदयाल खन्ना बने।

वर्ष 1986: हिंदुओं की अपील पर फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने पूजा करने के लिए विवादित स्थल का दरवाजा खोलने का आदेश दे दिया। एक फरवरी 1986 को ताला खुल गया। मुसलमानों ने इस आदेश का विरोध किया और बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति/बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी बनाई।I
वर्ष 1989: विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल के पास राम मंदिर की नींव रखी। वीएचपी नेता देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला की तरफ से मंदिर के दावे का मुकदमा किया। इसके बाद राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज हो गया।

वर्ष 1990: राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन तेज होता गया। इस साल गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में दंगे भड़क गए। बिहार में लालू यादव ने आडवाणी की रथ यात्रा रुकवाकर उन्हें गिरफ्तार करवा लिया। इस घटना के बाद बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसी साल मंदिर के लिए पहली कारसेवा हुई और तत्कालीन मुख्यमंत्री के आदेश पर हुई पुलिस की गोलीबारी में अनेक कारसेवकों की मौत हो गई।
06 दिसंबर 1992: हजारों कारसेवकों की भीड़ ने अयोध्या में सदियों से खड़े विवादित ढांचे को गिरा दिया। इस घटना के बाद देश भर में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन दंगों में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।
वर्ष 1992: विवादित ढांचे को ढहाने के मामले को लेकर जज एमएस लिब्रहान के नेतृत्व में लिब्रहान आयोग बनाया गया और मामले की जांच शुरू की गई।
वर्ष 1994: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित मामला चलना शुरू हुआ।
वर्ष 1997: विशेष अदालत ने विवादित ढांचे को ढहाए जाने के मामले में 49 लोगों को दोषी करार दिया। इनमें भारतीय जनता पार्टी के कुछ प्रमुख नेताओं के नाम भी शामिल थे।
वर्ष 2001: विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर बनाने की तारीख तय की। वीएचपी ने कहा कि मार्च 2002 को अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराया जाएगा।
जनवरी 2002: तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस विवाद को सुलझाने के लिए अयोध्या समिति बनाई। वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को वार्ता के लिए नियुक्त किया गया।
फरवरी 2002: विहिप ने 15 मार्च से राम मंदिर बनाने की घोषणा कर दी। इसके बाद हजारों हिंदू अयोध्या में एकत्र हो गए। फरवरी में ही गोधरा कांड हो गया जिसमें अयोध्या से लौट रहे 58 कारसेवक मारे गए।
13 मार्च 2002: सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि किसी को भी विवादित भूमि पर शिलापूजन की अनुमति नहीं होगी। केंद्र सरकार ने कहा कि अदालत के फैसले का पालन किया जाएगा।

15 मार्च 2002: विश्व हिंदू परिषद और केंद्र सरकार के बीच इस बात पर समझौता हुआ कि विहिप के नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंप देंगे। रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास और वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में लगभग 800 कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारी को शिलाएं सौंप दी।
अप्रैल 2002: हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू की।
22 जून 2002: विश्व हिंदू परिषद ने विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण की मांग उठाई।
जनवरी 2003: रेडियो तरंगों के जरिए विवादित स्थल के नीचे किसी प्राचीन इमाररत के अवशेष का पता लगाने कोशिश की गई।

मार्च 2003: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया, जिसे ठुकरा दिया गया।
अप्रैल 2003: हाईकोर्ट के आदेश पर पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की जांच के लिए खुदाई शुरू की। पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि विवादित स्थल की खुदाई में मंदिर से मिलते-जुलते कई अवशेष मिले हैं। इस रिपोर्ट ने हिंदू पक्ष के दावे पर मुहर लगा दी 29 अगस्त, 1964 को मुंबई के संदीपनि आश्रम में जन्मी विश्व हिंदू परिषद ने लगभग 20 वर्ष बाद 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित अपनी पहली धर्म संसद में अयोध्या, मथुरा और काशी के धर्मस्थलों को हिंदुओं को सौंपने का प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव को ओंकार भावे ने धर्मसंसद में रखा था। इसके बाद 21 जुलाई, 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में बैठक कर विहिप ने रामजन्मभूमि यज्ञ समिति का गठन किया। इसका अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ को व महामंत्री दाऊदयाल खन्ना को बनाया गया, जबकि महंत रामचंद्रदास परमहंस व महंत नृत्यगोपाल दास उपाध्यक्ष चुने उसी वर्ष सात अक्टूब
को विहिप ने सरयू तट पर रामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प लिया और अगले दिन इस मसले पर जनजागरण के उद्देश्य से एक पदयात्रा शुरू की। पदयात्रा की पूर्व संध्या पर अयोध्या के वाल्मीकि भवन में बैठक कर रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के 35 सदस्यीय संरक्षक मंडल का गठन किया गया। इस बैठक में मौजूदा केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने यह कह कर हलचल मचा दी कि वह मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा करने वाले पहले कारसेवक होंगे। यात्रा 14 अक्टूबर को लखनऊ पहुंची, जहां बेगम हजरत महल पार्क में हुई विशाल सभा में विहिप के महासचिव अशोक सिंहल ने प्रस्ताव रखा कि रामजन्मभूमि का स्वामित्व अविलंब जगद्गगुरु रामानंदाचार्य को सौंप दिया जाय। तब तक श्री राम जन्मभूमि न्यास का गठन नहीं हुआ था। यह मंदिर निर्माण की मांग को लेकर पहली जनसभा थी।
अयोध्या से निकली यात्रा को दिल्ली तक जाना था और वहां भी जनसभा तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ज्ञापन देने की योजना थी, लेकिन यात्रा उत्तर प्रदेश की सीमा में ही थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर को कर दी गई। इंदिरा जी की हत्या से उपजी राष्ट्रव्यापी शोक लहर का असर स्वाभाविक रूप से मंदिर आंदोलन की गति पर भी पड़ा। कुछ दिनों की खामोशी के बाद 1985 में विहिप ने मंदिर निर्माण से जुड़ी गतिविधियां फिर तेज की और श्री रामजन्मभूमि न्यास का गठन किया। तेजी से घूमे घटनाक्रम में एक फरवरी 1986 को विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश जिला व सत्र न्यायाधीश ने दिया और उसी दिन ताला खुल गया और वहां पूजापाठ शुरू हो गया। अगले ही दिन विहिप ने भगवदाचार्य स्मारक सदन में बैठक कर रामजन्मभूमि का स्वामित्व श्री रामजन्मभूमि न्यास को सौंपने की मांग इस बैठक में महंत अवेद्यनाथ, परमहंस रामचंद्रदास व महंत नृत्यगोपाल दास के अलावा विहिप के कई शीर्ष नेता माैजूद थे। विहिप की सक्रियता का ही नतीजा था कि 1989 में पालमपुर अधिवेशन में भाजपा ने रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण को अपने चुनाव घोषणापत्र में शामिल करने का एलान कर दिया। नौ नवंबर 1989 को विहिप ने पूरे देश में शिलापूजन कार्यक्रम की घोषणा कर माहौल गर्म कर दिया। 24 जून 90 को विहिप के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक हरिद्वार में हुई जिसमें 30 अक्टूबर (देवोत्थानी एकादशी) से मंदिर के लिए कारसेवा करने का एलान किया गया। एलान के मुताबिक बड़ी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार की तमाम सख्ती के बावजूद विवादित ढांचे पर चढ़ कर न सिर्फ झंडा फहराया बल्कि ढांचे काे आंशिक रूप से क्षति भी पहुंचाई। हालांकि ढांचे की रक्षा के लिए सुरक्षाबलों ने गोलीबारी की जिसमें कई कारसेवकों की जान भी गंवानी पड़ी।
इसके दो दिन बाद अयोध्या में ही एकत्र रहे हजारों कारसेवकों ने फिर ढांचे को निशाना बनाया और उनका मुकाबला एक बार फिर पुलिस की गोलियों से हुआ। इस दिन भी कई कारसेवक हताहत हुए। इस घटनाक्रम ने पूरे देश के हिंदुओं में ज्वार पैदा कर दिया। छह दिसंबर, 92 की घटना को भी इसी घटनाक्रम की परिणति के रूप में देखा जाता है। विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर के लिए सिर्फ आंदोलन का रास्ता ही अपनाया हो ऐसा भी नहीं है परिषद ने जब-जब सुलह समझौते की कोशिश हुई तो उसमें भी सक्रिय भागीदारी की। इसी तरह की कोशिश एक दिसंबर 90 व 14 दिसंबर 90 को अयोध्या में हुई जब बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के साथ विहिप ने द्विपक्षीय वार्ता की। हालांकि यह बातचीत सफल नहीं हुई। इस मामले में नौ नवम्बर 2019 को तर्क और तथ्य की रोशनी में सुप्रीम कोर्ट के पंच परमेश्वर की तरह हिंदू और मुसलमान दोनो की भावना का ख्याल किया और आज़ भारत के मुसलमान और हिंदू दोनो गर्व कर रहे है क़ि वो भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में रहते है ।

( लेखिका मुलतः अयोध्या निवासी वरिष्ठ पत्रकार और रामजन्मभूमि आन्दोलन की सक्रिय कार्यकत्री रही हैं )

 

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