Home News Article Editorial Gallary Ram Mandir About Contact

 

सचेत होते तो आक्सीजन संकट से बचा जा सकता था

अशोक भाटिया

Publoshed on 28.04.2021, Author Name; Ashok Bhatia  Freelance Journalist


राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप एक ऐसा ओछा हथकंडा है, जिसके सहारे स्याह को सफेद और सफेद को स्याह कर देने का कुच्रक बेहद चालाकी और मक्कारी से हर समय चलाया जाता है। नेता और दल न तो समय देखते हैं, न मौका, उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी को नीचा दिखाने में ही सुकून मिलता है। सियासी दोषारोपण की राजनीति की वजह से ही कई ऐसे राज नहीं खुल पाते हैं जिस पर से पर्दा उठने से कई गुनाहगार जेल की सलाखों के पीछे पहुंच सकते हैं। महामारी के दौर में भी यही सब देखने को मिल रहा है। इसी के चलते उन लोगों के ऊपर शिकंजा नहीं कसा जा पा रहा है जो जीवन रक्षक दवाओं, इंजेक्शन, उपकरणों और ऑक्सीजन की कालाबाजारी में लगे हैं। झूठ का सहारा लेकर कोरोना पीड़ितों को मौत के मुंह में ढकेलने की साजिश रचते हैं।

एक-एक मरीज से लाखों रुपए के बिलों की वसूली करने वाले इन फाइव स्टार अस्पतालों की आमदनी दिन दूनी रात चैगनी बढ़ती है। अरबों रुपए की इनकी प्रॉपर्टी होती है, वेतन के नाम पर करोड़ों रुपए प्रतिमाह लेते हैं, लेकिन अपने यहां 60-70 लाख रुपए की मामूली लागत से ऑक्सीजन प्लांट लगाने की इन्होंने न जानें क्यों कभी कोशिश नहीं की। कल कांग्रेस की सरकार थी, आज मोदी सरकार है, कल कोई और सरकार होगी, जब भी इस तरह की समस्याए आएंगी तो विपक्षी दल इन बातों को अनदेखा करके सत्तारुढ़ दल को कोसना-काटना शुरू कर देते हैं, जिसके चलते तमाम गुनाहागार बच निकलते हैं। आज जो प्राइवेट अस्पताल वाले ऑक्सीजन की कमी का रोना पीटना मचाए हुए हैं, उन्हें क्या इस बात का अहसास नहीं था कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी एक बड़ा फैक्टर होगा। फिर भी इन्होंने इसके लिए कोई कदम नहीं उठाया। आखिर अस्पताल वालों से अधिक सटीक जानकारी किसके पास होगी, फिर भी यह लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और अब ऑक्सीजन की कमी पर ड्रामेबाजी कर रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। निजी अस्पताल मालिकों द्वारा अपने यहां ऑक्सीजन प्लांट नहीं लगाए जाने की वजह भी है। इनके लिए वेंटीलेटर, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड आदि मशीनें आदि सुविधाएं तो मोटी कमाई का जरिया होती हैं, लेकिन ऑक्सीजन प्लांट लगाने से भला क्या कमाई होगी। इसीलिए ऑक्सीजन प्लांट लगाना निजी अस्पताल मालिकों की प्राथमिकता में रहा ही नहीं दूसरी तरफ सरकार ने भी कोई ऐसे सख्त कायदे-कानून नहीं बनाए हैं जिसके चलते निजी अस्पतालों की मनमर्जी पर शिकंजा कसा जा सके। इनकी कोई जवाबदेही नहीं हैं। इसीलिए तो कहीं अस्पताल में मरीज को भर्ती नहीं किया जा रहा है तो कहीं मरीज के मर जाने के बाद भी उसके परिवार वालों से मोटी कमाई का रास्ता खुला रखा जाता है। यहां तक कि मरे हुए शख्स के लिए अस्पताल वाले परिवार से जूस और अन्य चीजें मंगाते रहते हैं। इन्हीं तमाम वजहों से लगता है कि निजी अस्पताल के मालिक महामारी का भी फायदा उठाने में लगे हैं।

दरअसल लोगों की संवेदनाएं मर चुकी हैं। सांसें टूटने से सांसें छीन लेने की कोशिश की जा रही है। लोग अपने परिवार की सांसों के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं लेकिन आक्सीजन का सिलैंडर नहीं मिल रहा। मिल रहा है तो उसके दाम दोगुना या तीन गुना मांगे जा रहे हैं। सांसों के अभाव में लोग अपने परिजनों को अपनी आंखों के सामने दम तोड़ता देख रहे हैं। आक्सीजन से लेकर इमान तक बिक रहा है। दवाइयों की दुकान पर लगी लम्बी कतारें लगी हुई हैं। बुखार की दवाइयां नदारद हैं। मल्टी विटामिन की गोलियां नदारद हैं नेबुलाइजर तक ब्लैक में मिल रहा है। रेमडेसिविर इंजैक्शन की किल्लत पूरे देश में है। आक्सीजन के साथ-साथ ब्लैकमेलिंग उन रेमडेसिविर इंजेक्शनों की भी है जिसकी उपयोगिता के बारे में खुद डाक्टरों में भी मतभेद हैं लेकिन एक हवा चल गई है कि रेमडेसििवर ही रामबाण है। लिहाजा अस्पतालों से चुराकर , गायब करवाकर रेमडेसिविर इंजेक्शनों की जमकर कालाबाजारी की जा रही है। हर इंजेक्शन पर मौत का बेशर्म सौदा किया जा रहा है। बेबस लोग परिजन की जान बचाने के लिए मुंहमांगा पैसा दे रहे हैं, फिर भी मरीज शायद ही बच रहा है। दूसरी तरफ मुर्दे के बाकी बचे इंजेक्शनों पर भी दुष्टात्माएं कमाई कर रही हैं। आश्चर्य नहीं कि रेमडेसिविर जैसा हाल वैक्सीनों का भी हो, क्योंकि जरूरत के मुताबिक वैक्सीन का उत्पादन अभी नहीं है। विदेश से आयात करने या भारत में ही उनके पर्याप्त उत्पादन में वक्त लगेना।

यूं सरकार ने वैक्सीन निर्माता कंपिनयों को 4500 करोड़ रुपए दे भी दिए हैं लेकिन वैक्सीन की मांग में एकदम उछाल आने से कालाबाजारियों की दिवाली नहीं मनेगी, इसकी गारंटी देने की स्थिति में कोई नहीं है, क्योंकि मांग के अनुपात में रातोंरात उत्पादन बढ़ाने का चमत्कार असंभव है। हकीकत यह है कि देश के कई राज्यों में पूरा मेडिकल सिस्टम ध्वस्त होने की कगार पर है, क्योंकि पूरे चिकित्सा तंत्र पर इतना अधिक दबाव है कि उसके झेलने की क्षमता भी खत्म सी हो गई है।सरकारें दौड़ रही हैं। उच्च स्तर पर आक्सीजन के लिए काम किया जा रहा है। विदेशों से कंटेनर मंगाए जा रहे हैं। सांसें बचाने के लिए महामिशन पर रेलवे से लेकर वायुसेना तक जुट चुुकी है। अस्पतालों में आक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। उम्मीद है कि कुछ दिनों में आक्सीजन का संकट हल हो जाएगा।

इस संकट की घड़ी में कई लोग व्यक्तिगत स्तर पर और अनेक सामाजिक समस्याएं अपना माननीय कर्त्तव्य मान कर जरूरी सुविधाएं जुटाने और मुहैया कराने की कोशिश कर रही हैं लेकिन जरूरत की तुलना में यह राहत बहुत थोड़ी है। लोगों ने आक्सीजन सिलैंडर और बिना जरूरत के दवाइयां स्टाक कर ली हैं। इंदौर में तो रेडमेसिविर की शीशी में कुछ भी भरकर 40-40 हजार में बेचने की घटना खौफ पैदा करने वाली है लेकिन मदद हो और उसे भुनाया न जाए तो राजनेता ही क्या? चाहे शव वाहन हो या एम्बुलैंस, दवाइयां हों या पीपीई किट हो या कफन, कुछ भी देने या मुहैया कराने पर नेताओं के नाम का ठप्पा और फोटो उसी तरह प्रचारित की और करवाई जा रही है, मानो कोविड के कारण स्वर्गवासी होने वाले अपने साथ उसे ले जाकर परलोक में नेताओं के पक्ष में प्रचार करने वाले हैं।सेवा को घटिया आत्मप्रचार का बूस्टर देने की यह सोच भी हैवानियत का ही दूसरा पहलू है। प्रचार तो कभी भी हो सकता है, ‘यह हमने किया’, इसका ढोल कभी भी पीटा जा सकता है, मगर कम से कम श्मशान घाटों को तो राजनीतिक वायरस से मुक्त रखें। वहां जाने वाला हर शख्स कोविड वायरस से पहले ही परेशान है।

एक डारावनी खबर और है। कोविड वायरस का तीसरा म्यूटेंट भी भारत में पाया गया है। यह कितना खतरनाक होगा, इसका अभी अंदाजा भी ठीक से नहीं लगाया जा सकता। कइयों के मन में सवाल होगा कि कोविड का दूसरा म्यूटेंट पहले से ज्यादा खतरनाक क्यों है, तो इसकी वजह यह है कि यह वायरस अपने में आनुवंशिक बदलाव तेजी से कर रहा है। यानी वैज्ञानिक एक का तोड़ खोज पाते हैं तो वह दूसरा रूप धर कर संहार शुरू कर देता है। परिणामस्वरूप शरीर में दुश्मन वायरस को नियंत्रित करने वाली रक्षक एंटीबॉडीज भी चकमा खा जाती है। निकृष्टता के नए मानदंड हमें देखने को मिलेंगे, यह सोचना भी मुश्किल था। शिवपुरी के एक अस्पताल मेंं वार्ड ब्वाय द्वारा पैसे लेकर एक का आक्सीजन मास्क हटाकर दूसरे को लगा देना शायद हैवानों को भी लजा देगा। चंद सांसों के लिए लोग गिड़गिड़ा रहे हैं और सांसों के अभाव में स्वजनों को अपनी आंखों के सामने दम तोड़ता हुआ देख रहे हैं।

कोविड जैसी संक्रामक महामारी से मरने वालों के शवों को छूने तक से परिजनों के परहेज की घटनाएं पिछले साल भी देखने को मिली थीं। कोविड से मरने वालों की लाश देखकर पड़ोसी दरवाजे बंद कर लेते हैं और शैतान मृतक के शरीर से गहने तक उतार ले जाते हैं। शायद इसलिए, क्योंकि दुनिया तो जीने वालों की है। उधर निजी अस्पतालों में शव देने के लिए भी लाखों रुपए मांगे जा रहे हैं। शव मिला तो अंतिम संस्कार के लाले हैं। श्मशान घाट और कब्रिस्तान में भी अंतिम संस्कार के लिए नंबर लग रहे हैं और अंत्येष्टि जरा जल्दी हो जाए, इसके लिए रसूखदारों से सिफारिश लगवाने की नौबत आ गई है। ऐसे में यमराज के यहां क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है। ऐसे में असली देवदूत वही प्रशासन के लोग हैं जो सिर्फ मानवता के नाते अंजान शवों को भी अग्नि दे रहे हैं। अदृश्य वायरस के खिलाफ लड़ाई युद्ध की तरह है जिसे किसी भी कीमत पर जीतना जरूरी है। इसके साथ ही हैवहनों को चारों खाने चित करना भी जरूरी है। अगर हमने हैवानों को नहीं हराया तो फिर अराजकता फैल जाएगी। मानवता की रक्षा के लिए हमें इंसान बनना ही होगा।

यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि देश में जो हालात हैं, उसका मुकाबला करने के लिए सभी राजनैतिक दलों को एकजुट होकर काम करना चाहिए। इससे सबसे बड़ा फायदा तो यही होगा कि जनता में विश्वास जगेगा, दूसरे महामारी के नाम पर लूटपाट करने वालों पर भी शिकंजा कसेगा। जिस दिन महामारी के दौर में लूटपाट करने वालों को पता चल जाएगा कि उन्हें कहीं से कोई राजनैतिक संरक्षण नहीं मिलेगा, उसी दिन से इनके होश ठिकाने आ जायेंगे। लेकिन इसके उलट हो क्या रहा है, नेतागण नीचा दिखाने की सियासत में फंसे हैं। कांग्रेस के शासन वाले राज्यों- पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ झारखंड ने 01 मई से शुरू होने वाले अगले चरण के टीकाकरण अभियान पर अभी से जिस तरह संदेह जताना शुरू कर दिया है, उससे यही लगता है कि देश में आपदा के समय भी ओछी राजनीति करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जा रहा है। बस कोई 19 तो कोई 20 है। कांग्रेस शासित चार राज्यों ने एक मई से टीकाकरण अभियान की हवा निकालने की अभी से तैयारी कर ली है। इसीलिए तो राज्य की कांग्रेस सरकारें केंद्र सरकार पर टीकों पर कब्जा कर लेने का आरोप लगा रही हैं। मकसद येनकेन प्रकारेणः केवल संकीर्ण राजनीतिक हित साधना है। यदि थोड़ी देर को यह मान भी लिया जाए कि इस आरोप में कुछ सत्यता है तो सवाल उठेगा कि आखिर अन्य गैर भाजपा शासित राज्यों के सामने वैसी कोई समस्या क्यों नहीं, जैसी इन चार राज्यों के समक्ष कथित तौर पर आने जा रही है? इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि केंद्र सरकार अपने हिस्से के टीके राज्यों को देने के लिए ही खरीद रही है। वास्तव में यह पहली बार नहीं, जब कांग्रेस की ओर से कोरोना संक्रमण अथवा टीकाकरण को लेकर क्षुद्र राजनीति की जा रही। कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो टीकाकरण अभियान की तुलना नोटबंदी तक से कर चुके हैं। उन्हें हमेशा की तरह यही लगता है कि मोदी सरकार टीकाकरण अभियान के सहारे अपने पूंजीपति दोस्तों को फायदा पहुंचा रही है।



लेखक परिचयः अशोक भाटिया , स्वतंत्र पत्रकार
 

Article Tags: Mayawati
 
मायावती के दर्द को भी समझें
   
दीयों से घर जगमगाने के साथ समाज को भी आत्मनिर्भर व रोशन करने का संकल्प ले
   
पंचशील को भूलें, तिब्बत स्वायत्ता के लिए आगे बढ़ें
   
बिकरू में क्यों मात खा गई पुलिस
   
हमारे अधीश जी
   
निजी स्कूलों को नियंत्रित कर सरकार शिक्षकों की भर्ती करे
   
जल संकट एक और खतरे की घंटी
   
यूजीसी की नई सौगात
   
सकारात्मकता का नया सवेरा

 

भारतीय संस्कृति और कोरोना वायरस
 
प्रकृति और मनुष्य

 

 
»
Lord Budha  
»
 About Us  
»
U.P.Police  
»
Tour & Travels  
»
Relationship  
 
»
Rural  
»
 News Inbox  
»
Photo Gallery  
»
Video  
»
Feedback  
 
»
Sports  
»
 Find Job  
»
Our Team  
»
Links  
»
Sitemap  
 
»
Blogs & Blogers  
»
 Press,Media  
»
Facebook Activities  
»
Art & Culture  

»

Sitemap  
© up-webnews | Best viewed in 1024*768 pixel resolution with IE 6.0 or above. | Disclaimer | Powered by : omni-NET

 

Send mail to upsamacharseva@gmail.com with questions or comments about this web site.
Copyright © 2019 U.P WEB NEWS
Last modified: 10/30/20