श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलनः अनकहे तथ्य
श्रीराम के जन्मस्थान पर 5 अगस्त से मन्दिर निर्माण आरंभ होने जा रहा है। भगवान राम के इस मन्दिर पर पूर्णतः और वैधानिक अधिकार प्राप्त करने के लिए हिन्दू समाज ने लंबा संघर्ष किया है। इसके लिए विश्व हिन्दू परिषद् के नेतृत्व में लगभग 38 साल तक अनवरत आन्दोलन चला। आन्दोलन को समस्त संत समाज का आशीर्वाद प्राप्त रहा।
इस आन्दोलन की शुरुआत में कुछ ऐसी भी घटनाएं घटीं जो चकित करती हैं।
यद्यपि इस आन्दोलन का बीजारोपण मुरादाबाद के कांग्रेस नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पूर्व मंत्री दाऊदयाल खन्ना ने हिन्दू जागरण मंच के संयोजक दिनेश चन्द्र त्यागी के साथ मिलकर किया। लेकिन, आन्दोलन के प्रति कांग्रेस के अन्य नेताओं की दृष्टि और सोच कैसी थी ? यह जानना भी आज जरूरी है।
पहली प्रेस कांफ्रेस का समाचार प्रकाशित ही नहीं हुआ
बात 6 अप्रैल 1984 की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्थन और आशीर्वाद से हिन्दू जागरण मंच ने तीनों धर्मस्थलों की मुक्ति के लिए सन् 1982 से लेकर 1984 तक वातावरण बना लिया था। इस मुद्दे
को हिन्दू जनमानस का अपार जनसमर्थन मिल रहा था । इससे उत्साहित होकर आन्दोलन से जुड़े नेताओं दाऊदयाल खन्ना और दिनेश चन्द्र त्यागी ने निर्णय किया कि इस विषय को देशभर की जनता के सामने रखा जाए। इसके लिए दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस करने का निर्णय लिया गया। यह प्रेस कांफ्रेस प्रेस क्लब आफ इण्डिया पर 6 अगस्त 1983 को आयोजित हुई। प्रेस
कांफ्रेंस ‘धर्म रक्षा समिति’ के बैनर पर आयोजित की गई थी। इस विषय पर यही पहली प्रेस कांफ्रेंस थी। पत्रकारों ने विषय को ध्यान से सुना, प्रश्नोत्तर भी हुए, किन्तु दिल्ली के किसी भी राष्ट्रीय समाचार पत्र ने समाचार प्रकाशित नहीं किया।
तब डा. कर्ण सिंह सहमत न थे
दिल्ली में उसी दिन श्री खन्ना और श्री त्यागी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और ‘विराट हिन्दू सम्मेलन’ का गठन करके हिन्दुत्व के विषयों को उठा रहे डा. कर्ण सिंह से भेंट करने का निश्चय किया।
छह अगस्त 1983 को ही श्री राम जन्मभूमि के विषय पर डा.कर्ण सिंह से इन नेताओं की भेंट हो गई। विषय को सुनने के बाद डा.कर्ण सिंह ने कहा कि ‘ पुरानी बातों को उखाड़ना उचित नहीं है, इससे साम्प्रदायिकता बढ़ेगी। हम लोगों को एक अलग स्थान पर राम मन्दिर बना लेना चाहिए’।
इसके पूर्व भी मथुरा में 27 फरवरी 1983 को विराट हिन्दू समाज का सम्मेलन आयोजित था। यहां भी दाउदयाल खन्ना गए थे। किन्तु सम्मेलन में कर्ण सिंह ने विषय उठाने के लिए श्री खन्ना को समय नहीं दिया। वहीं यह भी सत्य है जब पूरे देश में राम मन्दिर का मुद्दा जनचर्चा का विषय बन गया। जनभावना इसके अनुरूप प्रकट होने लगी तब डा. कर्ण सिंह ने ही एक
कदम आगे बढ़कर संसद में श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया तथा आन्दोलन के समर्थक बन गए।
जब गुलजारी लाल नंदा ने दी सम्मेलन छोड़ने की धमकी
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री (कार्यवाहक) गुलजारी लाल नंदा उस विराट हिन्दू सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे, जो 6 मार्च 1983 को मुजफ्फरनगर में हिन्दू जागरण मंच पश्चिम उत्तर
प्रदेश ने आयोजित किया था। इस सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह प्रो. राजेन्द्र सिंह ( रज्जू भैया) भी उपस्थित थे। सम्मेलन में जब दाऊदयाल खन्ना ने तीनों धर्म स्थलों की मुक्ति के लिए प्रस्ताव रखने की बात की तो श्री नन्दा नाराज हो गए। उन्होंने विरोध किया और सम्मेलन छोड़कर जाने की धमकी भी दी। लेकिन, अन्य
प्रमुख व्यक्तियों के समझाने तथा विषय पर चर्चा करने के बाद श्री नन्दा सहमत हो गए। यहां तीनों धर्म स्थलों को मुक्त करके उनपर पूर्ण अधिकार हिन्दू समाज को सौंपने संबंधी प्रस्ताव पहली बार पारित हुआ।
लेखक परिचयः स्वतंत्र पत्रकार
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