झारखण्ड की हेमन्त सोरेन सरकार ‘ चर्च के षडयन्त्रों ’ की शिकार हो गई है । पूर्वोत्तर के जन जातीय और वनवासी क्षेत्रों में जो
काम ‘ चर्च ’ नहीं कर पा रहा था । वह झारखण्ड की कांग्रेस समर्थित सरकार ने कर दिया है। झारखण्ड विधान सभा में 11 नवम्बर को ‘सरना आदिवासी धर्म कोड़ बिल ’ पारित किया गया । इस कोड़ बिल के बाद सरना जनजातीय समुदाय को हिन्दू से अलग धर्म के रूप में मान्यता का प्रावधान है। हालांकि यह बिल राज्य में
पारित होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही कानूनी रूप ले सकता है। क्योंकि, राज्य को धर्म के मामले में कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है। लेकिन, सरकार ने जो काम किया है वह बहुत गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। इससे न केवल पूरे देश के जनजातीय समुदाय में अलगाव की भावना को बल मिलेगा, बल्कि
यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी गंभीर प्रश्न खड़ा करेगा। क्योंकि झारखण्ड में माओवादियों और नक्सलवादियों की उपस्थिति कानून व्यवस्था के लिए पहले से ही चुनौती बनी हुई है। झारखण्ड राज्य में वनवासियों और जनजातियों को हिन्दू समाज से काटने का षडयन्त्र सौ साल से भी अधिक समय से चल रहा है। अठारवीं
और उन्नसवीं शताब्दी से यहां सक्रिय मिशनरियां वनवासियों और जनजातियों को गैर हिन्दू घोषित करने के लिए नित नये यत्न करती रहती हैं। लगभग पांच दशक से प्रयास शुरु हुआ कि जनजातीय समाज को हिन्दू से अलग करके एक पृथक धर्म के रूप में कानूनी रूप से पहचान दिलायी जाए। स्वतंत्रता के बाद बनी संविधान सभा
ने ‘ आदिवासी ’ शब्द को हटाकर संविधान में भी ‘अनुसूचित जनजाति शब्द ’ को बृहद अर्थ में प्रयोग किया है। लेकिन, यहां करीब सौ साल से सक्रिय ईसाई मिशनरी धर्मान्तरण करा रहे हैं। इसके लिए वे पहले जनजातियों और वनवासी समाज के लोगों को हिन्दू धार्मिक आस्था और प्रतीक चिन्हों, पूजा स्थलों के प्रति
अनास्था का भाव लाने के लिए प्रयास करते हैं। इसके लिए उन्होंने रणनीति बनायी कि जनजातियों में सबसे बड़े समूह या उपजाति ‘ सरना ’ को हिन्दुओं से अलग धर्म घोषित किया जाए। इसके लिए प्रचारित किया गया कि ‘ सरना ’ प्रकृति पूजक समाज है तथा इसका अलग धर्म है। इसके देवता और पूजा पद्यति अलग है। इसलिए
इसे हिन्दू से अलग धर्म मानकर जनगणना के कालम में ‘ सरना धर्म ’ के रूप में अंकित किया जाए । इस काम के लिए मिशनरियों ने कुछ वनवासी नेताओं और समाज के प्रमुख लोगों को भी अपने साथ जोड़ लिया है। झारखण्ड में सत्ता परिवर्तन के बाद बनी हेमन्त सोरेन की सरकार ने जाने-अनजाने चर्च के इस ‘राष्ट्र और
हिन्दू विरोधी ’ षडयन्त्र को सफल करने में योगदान कर दिया है। चर्च के इस षडयन्त्र में हेमन्त सोरेने सरकार भागीदार हो गई है। वस्तुतः इस षडयन्त्र के पीछे चर्च और कांग्रेस की ईसाई परस्त राजनीति का एक गठजोड़ काम कर रहा है। कांग्रेस का समर्थन प्राप्त हेमन्त सोरेन ‘संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ’ की
मुखिया सोनिया गांधी को खुश करने के लिए चर्च के षडयन्त्रों के आगे नतमस्तक हैं। वे ना तो अपने राज्य का हित देख पा रहे हैं और ना ही राष्ट्र का हित और अहित समझ रहे हैं। इस तरह का धर्म कोड बिल पारित करने के दुष्परिणाम देश के अन्य राज्यों में भी सामने आ सकते हैं, जहां वनवासी और जनजातीय समाज
प्रचुर संख्या में निवास करते हैं। राष्ट्रपति महोदय से इस बिल पर सम्यक रूप से राष्ट्र और समाज हित को ध्यान में रखकर ही फैसला लेने की देश के जनमानस को अपेक्षा है।
( उप्रससे )