राजनीति की छोटी सी गलती इतिहास की बड़ी भूल बन जाती हैः हृदय नारायण दीक्षित
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लखनऊ, 08 जून 2020
( UP Samachar Sewa) > विधान सभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा है कि राजनीति की छोटी सी गलती कभी कभी इतिहास की बड़ी भूल बन जाती है। श्री दीक्षित ने यह बात देश की एक मात्र राजनैतिक प्रशिक्षण देने वाली संस्था रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी Rambhau
Mahalagi Prabodhini Institute के प्रशिक्षण सत्र का उद्घाटन करते हुए कही। वह मुख्य अतिथि के रूप में वीडियों कांफ्रेंसंग के माध्यम से प्रशिक्षण सत्र का उद्घाटन कर रहे थे।। इस प्रशिक्षण सत्र में भारत के विभिन्न राज्यों के अतिरिक्त कई देशों के
प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
श्री दीक्षित ने कहा कि राजनीति एक अति संवेदनशील विषय है। छोटे-छोटे राजनैतिक निर्णयों से भारतीय राष्ट्रीय जीवन में बड़े-बड़े परिवर्तन आते है। वैदिक काल से लेकर अथर्ववेद, महाभारत, कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उदाहरण देते हुए उन्होंने भारत के राष्ट्रीय जीवन में राजनीति विषय की विस्तार से चर्चा
की। उन्होंने कहा कि राजनीति की छोटी सी गलती इतिहास की बड़ी भूल बन जाती है। इसी तरह राजनीति द्वारा लिया गया छोटा सा फैसला देश का सौभाग्य गढ़ देता है।
भारतीय मूल चिन्तन यरोपीय चिन्तन से भिन्न
उन्होंने भारतीय राजनीति के मूल चिन्तन को यूरोपीय चिन्तन से भिन्न बताया। उन्होंने भारत के वैदिक काल के इतिहास से लेकर अथर्ववेद, महाभारत, कौटिल्य सहित अनेको विचारको के उदाहरण देते हुए देश में राजनैतिक संस्थाओं के हुए उद्भव एवं विस्तार की चर्चा की।
श्री दीक्षित ने कहा कि हमारे देश में स्टेट का जन्म किसी समझौते से हुआ नहीं माना जा सकता है। यह धीरे-धीरे उत्पन्न हुआ है। अनुभूति के आधार पर, ज्ञान के आधार पर, सामाजिक आवश्यकताओं के आधार पर, भौतिक आवश्यकताओं के आधार पर, अध्यात्मिक आवश्यकताओं के आधार पर इस संस्था का धीरे-धीरे विकास हुआ।
अथर्ववेद में इस संस्था के विकास की व्याख्या करते हुए कहा कि पहले परिवार नामक संस्था से क्रमिक विकास होते हुए सभा का विकास हुआ। उसके बाद समिति आई।
सभा और समितियाँ ऋग्वेद , अथर्ववेद, यजुर्ववेद में विद्यमान
उन्होंने कहा कि इस देश के राष्ट्रीय जीवन का लोकतांत्रिक तत्व हमारे प्राचीनकाल से सभा और समितियों में अन्तर्निहित रहा है। सभा और समितियाँ ऋग्वेद में है, अथर्ववेद, यजुर्ववेद में विद्यमान है। बाद में बौद्ध काल से होते हुए आज तक भिन्न रूपो में
विद्यमान है। श्री दीक्षित ने कहा कि भारत के राष्ट्र जीवन की राजनीति लोक मंगल के अधिष्ठान से बन्धी हुई है। वह लोकमंगल से दाएं बाएं नहीं जा सकती है। उन्होंने कहा कि वैदिक काल में सभा और समिति बहुत ठीक से काम कर रही थी। वरूण एवं इन्द्र जैसे सुन्दर शासको की कल्पना की गयी है। महाभारत में सभा
की शक्ति घटी, विचार-विमर्श की शक्ति घटी। महाभारत में पांडव भीष्म से पूछते हैं कि गण समाज कैसे नष्ट हो जाते हैं? भीष्म ने उत्तर दिया कि जल्दी-जल्दी बैठक करनी चाहिए, बैठक न करने पर गण समाज नष्ट हो जाते हैं। वह अपनी आभा और क्षमता खो देते हैं।
राजनीतिक दलों में रही है प्रशिक्षण की व्यवस्था
श्री दीक्षित ने कहा कि हमारे देश के लोग राजनीति में विभिन्न अधिष्ठानों से जुड़े हुए भिन्न-भिन्न दलों में काम करते है। यहां पर प्रत्येक दलों में प्रशिक्षण की व्यवस्था रही है। डा0 लोहिया कार्यकता प्रशिक्षण के समर्थक थे। वह स्टडी सर्किल चलते थे।
वामपंथी भी प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाते थे। भाजपा में प्रशिक्षण शिविर का आयोजन जनसंघ काल से ही बहुत पुरानी व्यवस्था है। सबके अपने-अपने विभिन्न अवधारणाओं से जुड़े हुए कार्यक्रम होते है। विधान सभाओं में चुनाव के बाद भी नए विधायकों को प्रशिक्षण देकर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के विद्वानों को
बुलाकर कराया जाता है।
दलों के बीच टकराव नहीं प्रीतिपूर्ण संवाद होना चाहिए
विधान सभा अध्यक्ष श्री दीक्षित ने कहा कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के सभी राजनैतिक क्षेत्र एवं क्षेत्रीय दलों को भी विषय के रूप में लिया गया है। इसकी आज आवश्यकता भी है। इसमें भिन्न-भिन्न विचार आकर टकराते है और मिलते है। इन विचारों में टकराव के बजाए प्रीतिपूर्ण संवाद होना चाहिए। यह
तभी संभव है जब हम राजनीति, विज्ञान, भारत की राजनीति, भारत की राजनीति का उद्भव एवं सारी जानकारियाँ प्राप्त कर सकें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ0 विनय सहस्रबुद्धे द्वारा की गई। इस अवसर पर रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी के महानिदेशक रवीन्द्र साठे और कार्यकारी प्रमुख रवि पोखरणा भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे। |